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शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

अमेरिका में उग्र विरोधप्रदर्शन क्यों

अमेरिका में उग्र विरोधप्रदर्शन क्यों : कविता वाचक्नवी


#अमेरिका के #युवा बच्चे और युवा पीढ़ी राष्ट्रपति ट्रम्प #President #Trump के चुनाव के बाद और #Europe में #Brexit के बाद, दुःख और क्षोभ में सड़कों पर और सब प्रकार के विरोध में जुटी है। यह इसलिए नहीं कि इनकी कोई राजनैतिक विचारधारा है या वे किसी दल के पक्षधर और विरोधी हैं, या इसलिए भी नहीं कि ये हिलेरी या जर्मन नीतियों के समर्थक हैं; अपितु इसलिए क्योंकि ये सरल हृदय, निष्कपट और निष्पाप हैं, इन्हें चालाकी, छल, प्रपञ्च, दुराव, कपट और झूठ आदि का अनुभव नहीं, ये किसी पर भी भरोसा कर लेते हैं और सबसे बड़ी बात यह कि इन्हें लिबरल्ज़, लेफ्टिस्ट्स, सेक्युलर्ज़, नस्लीय, जाति-वर्गऔर संख्या आदि को देश से बड़े मानने वालों की सच्चाई का कोई अनुभव नहीं, इन्हें उनकी सच्चाई और असली रंग नहीं पता, इन्हें हाथी के अलग-अलग दाँतों वाली बात का पता ही नहीं, इन्हें नहीं पता कि समता, दया, प्रेम, उदारता, ममत्व, सहानुभूति, सह-अस्तित्व, साम्य, सामाजिक न्याय, वर्ग-हीनता, शोषण-मुक्ति जैसे हजारों शब्दों का सहारा केवल चुनाव जीतने और इन्हीं को संकट में डालने के लिए किया जाता है और इन्हें यह भी नहीं पता कि इसके क्या दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, कि कैसे लेने और देने की भाषा अलग होती है और कैसे चालाक लोग दो चेहरे वाले होते हैं, कि कैसे इनकी ही सहायता ले इनके विरूद्ध षड्यंत्र रचा जाता है, कि कैसे 'फेसवैल्यू' पर नहीं जाना चाहिए, इन्हें नहीं पता कि इन सब के पीछे कौन-सी और किन की धूर्त चाले काम कर रही हैं । ये इतने सरल हैं कि झट से पिघल जाते हैं, दुष्परिणामों का इन्हें कोई अनुमान नहीं, इन्हें झट से बहकाया जा सकता है, ये किसी पर भी भरोसा कर लेते हैं, इनके निष्कलुष हृदय मानव-मात्र को सरल और सच्चा समझते हैं और इसीलिए इन्हें 'टार्गेट' किया जाता है, लुभावनी और द्रवित कर देने वाली बातों से इन्हें बरगलाया, भड़काया और भावुक किया जाता है और ये पिघल जाते हैं, प्रत्येक पर भरोसा कर लेते हैं। इसीलिए ये आज उन षड्यंत्रकारी शक्तियों के समर्थन में दिखाई देते हैं। यह वैसा ही है जैसे छोटे बच्चों को कम आयु में कभी-कभी अपने माता-पिता अपने शत्रु लगते हैं जब वे बच्चों के दूरगामी हितों के कारण कुछ कड़े और कड़वे निर्णय लेते हैं।


इसलिए, संसारभर के तथाकथित विचारको, साम्यवादियो, वामियो, अल्पसंख्यक तुष्टि-कारको, सेक्युलरो और राष्ट्र-भञ्जको ! हमारे सीधे सरल बच्चों के बहकने को अपनी जीत नहीं, अपितु उनकी सरलता और सिधाई समझिए। आज नहीं तो कल वे आपकी धूर्तता, षड्यन्त्र और चतुराई समझ जाएँगे। ये भारत के पले-बढ़े उन बच्चों जैसे नहीं हैं जो माँ के गर्भ से ही तेरा-मेरा और स्वार्थ या दूसरे के सर पर पैर रख कर आगे बढ़ना सीख कर आए हों ! पुरानी पीढ़ी ने अपने ढंग से नई पीढ़ी को आपके चंगुल में फँसने से बचा लिया है। 


शुक्रवार, 24 जून 2016

ब्रिटेन का भविष्य अब संसद (सांसत) में !

ब्रिटेन का भविष्य अब संसद (सांसत) में : कविता वाचक्नवी



‪#‎ब्रिटेन‬ की अर्थव्यवस्था, समाज और राजनीति में भारी उथल-पुथल मचा हुआ है। जनमत में योरोपीय महासंघ से अलग होने को बहुमत जो मिला है। 


इस वस्तुस्थिति के दो पक्ष हैं। एक तो यह कि वस्तुतः इस जनमत से आज की तिथि में ब्रिटेन महासंघ से न अलग हुआ है , न अलग होने जा रहा है। पहली बात तो यह कि जनमत के पश्चात् अब यह निर्णय देश की संसद में लिया जाना शेष है (यद्यपि संभावना यही है कि सांसद भी अपने अपने क्षेत्रों की जनता के विरोध में नहीं जाएँगे), फिर दूसरी बात यह कि यदि वे भी अलग होने पर मुहर लगा दें तो आधिकारिक रूप से महासंघ से अलग होने में 2 वर्ष का समय लगेगा, प्रक्रिया पूरी होने में।

दूसरा पक्ष यह कि मुद्रा ने डुबकी लगाई है जिससे राष्ट्र का सकल मुद्रा भण्डार निस्संदेह कमतर हुआ है, बृहद व्यापारिक प्रतिष्ठानों ( विशेषतः जो विदेशी मूल वालों द्वारा संचालित हैं) के विदेशी मूल के कर्मचारियों में अनिश्चय है। इस मध्य मात्र गत 2 घण्टे में ब्रिटेन ने 350 बिलियन पाउण्ड के अंतरराष्ट्रीय निवेश खो दिए हैं,  यह राशि योरोपीय महासंघ की चालीस वर्ष  की सदस्यता राशि के बराबर है।  पर ये सब छोटी बातें हैं। 

इन सबके मध्य सबसे भयंकर स्थिति यह है कि देश टूटने की कगार पर आ गया है, विशेषतः स्कॉटलैंड और आयरलैंड राज्य (जिन्होंने महासंघ के साथ रहने के पक्ष में मत दिया) वे अब अब देश से अलग होकर स्वतन्त्र देश के रूप में अपने भविष्य पर पुनर्विचार करने लगे हैं और आगामी 2 वर्ष में यह कभी भी घट सकता है। उत्तरी आयरलैण्ड के लोगों ने तो आज ही से अपनी नागरिकता बदलने की कवायद भी प्रारम्भ कर दी है।

इन सब स्थितियों को देखते हुए ब्रिटिश सांसदों (विशेषतः जो योरोपीय महासंघ से अलग होने का समर्थन करते हैं) पर संसद में अपना मत देते समय यह उत्तरदायित्व (बल्कि दबाव) होगा कि वे महासंघ से अलग होने की पैरवी करते समय देश के भी टुकड़े करने की पैरवी करेंगे।

संसद का निर्णय ही इस देश का इस देश के भौगौलिक रूप में भविष्य को भी तय करने वाला होगा। अन्यथा महासंघ से अलग होना यानि इस देश का दो या तीन भागों में विभक्त होना सिद्ध हो सकता है।

ध्यातव्य है कि यह सारा खेल अति-उदारवादी विचारधारा  के गर्भ से जन्मा और उसी की प्रचण्ड प्रतिक्रिया है। इसका सीधा प्रभाव अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव पर भी पड़ेगा।
 भारत इस से कुछ संकेत ग्रहण कर सके तो हितकर होगा।

  ‪#‎KavitaVachaknavee‬ #‎Brexit‬ ‪#‎UK‬
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