- कविता वाचक्नवी
फूल बरसे थे नहीं
औ’ भीड़ ने मंगल न गाए
ढोलकों की थाप
मेहँदी या महावर
हार, गजरे, चूड़ियाँ
सिंदूर, कुमकुम
था कहीं कुछ भी नहीं,
कुछ छूटने का भय नहीं।
गगन ने मोती दिए थे
लहलहाती ओढ़नी दी थी धरा ने
और माटी ने महावर पाँव में भर-भर दिया था
सूर्य-किरणें अग्निसाक्षी हो गई थीं
नाद अनहद गूँजता
अंतःकरण में सर्वदा निःशेष।
दूब ने परिणय किया वट-वृक्ष से
बँध-बँध स्वयं ही,
आप वट ने बढ़, भुजाओं में उसे
लिपटा लिया था।
घिर हवा के ताप में, जल, दूब सूखी ;
प्रीत के वट-वृक्ष!
अब तुम क्या करोगे?
यह कविता, अपनी पुस्तक "मैं चल तो दूँ" (२००५), सुमन प्रकाशन से
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उत्तम शब्द बिम्ब।
जवाब देंहटाएंवट का बढ़ कर दूब को लिपटा लेना दूर की सूझ लगी।
बहुत बढिया रचना है बधाई।
जवाब देंहटाएंWAAH .... APRATIM...ATISUNDAR....GEET ME BHAVABHIVYAKTI,BIBM VIDHAAN KAMAAL KA KIYA HAI AAPNE....
जवाब देंहटाएंBAHUT HI SUNDAR RACHNA....
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जवाब देंहटाएंSundar...bahut sundar Kavita ji....!!
Surendra Nath Tiwari
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जवाब देंहटाएंकविता जी
बहुत गहरी अभिव्यक्ति !
सादर ,
प्रतिभा.
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जवाब देंहटाएंकविता जी
बहुत दिनों से संवाद नहीं कर पा रही हूँ, कुछ व्यक्तिगत व्यस्तताएं रही। आज आपकी कविता पढ़ी, बहुत ही अच्छी लगी। प्रीत के वटवृक्ष अब तुम क्या करोगे, अच्छा चिंतन है। मैं तो इतना ही कहूंगी कि प्रीत तो वटवृक्ष ही बनती है बस हम जहाँ चाहते हैं वहीं नहीं होती। अक्सर जंगल में उपज जाती है और शहर सूने ही रहते हैं।
dr. smt. ajit gupta
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जवाब देंहटाएंआदरणीय कविता जी,
दूब और वट-वृक्ष के माध्यम से आपने कविता में
गहन परिकल्पना और गूढ अर्थ निरूपित किया है
बधाई,
सादर,
कमल
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जवाब देंहटाएंदूब ने परिणय किया वट-वृक्ष से
बँध-बँध स्वयं ही,
आप वट ने बढ़, भुजाओं में उसे
लिपटा लिया था।
परिणय की सुंदर कल्पना। अच्छी कविता के लिए बधाई
मौलेश्वर
Bahoot hi sundar apki etani shudh hindi me likhane ja mere pass koi shabad bhi nahi
जवाब देंहटाएंआदरणीया,कविताजी, आपकी कविता, दो तीन बार पढी। पाठकको अपने आपको भुला देनेकी क्षमता है, इस कवितामें। अहिंदी भाषी होनेसे कुछ शुद्ध हिंदी लिखनेमे भी कुछ हिचकिचाहट ही होती है। किंतु, बहुत दिनोंसे इतनी सुंदर कविता नहीं पढी थी। रूपक (हि कहेंगे ना?) भी बहुत सही चुना है। यह प्रेरणा विशेष, और रचना कम प्रतीत होती है।अभिनंदन।
जवाब देंहटाएं:प्रीत के वट-वृक्ष" शीर्षक यह कविता कई वर्ष पूर्व लिखी थी| लिखी क्या थी, बस अपने आप लिखी गई थी| आप सब ने इसे पढ़ा, अपनी राय भी दी, आपका बड़प्पन है और मेरे लिए बड़े गौरव की बात |
जवाब देंहटाएंवस्तुतः सारा श्रेय उस अन्तः प्रेरणा का है जिसके किए यह कविता लिखी गई|
आप सभी के प्रति हृदय से कृतज्ञ हूँ| आपका सद्भाव सिर-माथे |
नेह बरसाएंगे
जवाब देंहटाएंवट के वृक्ष
होने तक
और
वृक्ष के वट
अक्षय वट
होने तक।
सुंदर भावाभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं।
एक सुन्दर कविता… पाठक को बांधने की शक्ति है इसमें…
जवाब देंहटाएंsunder bhav..................
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना |
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबधाई
kavita me sunder upmaye aur sunder bibm hai
जवाब देंहटाएंkamal ke bhav yad rakhne yogya kavita hai
bahut bahut badhai
rachana
bahut achche...
जवाब देंहटाएंकमाल की कल्पना और शब्दों का संयोजन ...
जवाब देंहटाएंbahut sunder kavita hai
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