गुरुवार, 19 मई 2016

चुनाव-परिणामों के बाद कुछ बातें भाजपा से

चुनाव-परिणामों  के बाद कुछ बातें भाजपा से : कविता वाचक्नवी 


#भाजपा #BJP यद्यपि असम में जीत गयी है, यह अच्छी बात है, यह केवल @PMO India #Narendra Modi जी के चलते सम्भव हुआ है। भाजपा नेताओं को इस से खुशी मनाने की आवश्यकता नहीं। 


राष्ट्रीय स्तर पर अभी खतरे बहुत हैं और उन खतरों के सामने भाजपा ने चुनौती प्रस्तुत नहीं की। केरल और बंगाल में उसे जो व जैसा करना चाहिए था, वह वैसा नहीं किया। राष्ट्रीय ऐक्य व सुरक्षा की दृष्टि से यह लापरवाही घातक है। कई घातक संकेत इसमें छिपे हैं। जिन कार्यकर्त्ताओं ने स्वयं को अधिक महत्त्व न मिलने के बाद शिकायतों के अम्बार लगा दिए, उनका नकारात्मक योगदान भी इसमें कम नहीं, भले ही वे लोग दल या #मोदी जी के प्रति अपनी निष्ठा के चिट्ठे दिखाते रहें या कसमें खाते रहें। आप यदि सच में निस्स्वार्थ स्वयंसेवक हैं तो बदले में आपको किसी भी प्रकार की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। आपका प्रतिदान केवल राष्ट्र की सुरक्षा सुनिश्चित होना है; जब तक वह नहीं होती तब तक आपको बिना किसी अपेक्षा के अथक काम करना है और उसके बाद भी करना है। 


ऐसा नहीं है कि भाजपा में गलत या स्वार्थी लोग / नेता नहीं हैं; वे भरपूर हैं। पर उनके चलते आप राष्ट्र को तिलाञ्जलि नहीं दे सकते, न उनके भरोसे देश को छोड़ सकते। मेरे जैसे लाखों लोग भाजपा के पक्षधर इसलिए हैं , क्योंकि हम राष्ट्र के साथ हैं। मैं तो भाजपा की सदस्य या मतदाता भी नहीं हूँ। फिर भी हम लोग भाजपा के साथ हैं तो इसलिए कि हमें #मोदी जी की दूरदर्शिता, देशभक्ति, ईमानदारी और कर्मठता पर अथाह विश्वास है। हमारी वरीयता भारत और भारतीय हैं (केवल वे भारतीय जो भारत को राष्ट्र के रूप में पूजनीय मानते हैं)। हम मोदी जी के साथ उनकी इस निष्ठा और उन पर अथाह विश्वास के चलते हैं ; भाजपा के प्रति अंध आस्था के चलते नहीं। 


इसलिए यदि भाजपा के कार्यकर्त्ता और स्वयंसेवक लड़खड़ाते या अपेक्षा करते या तज्जन्य शिकायतें करते हैं तो वे मूलतः भाजपा को कमज़ोर करते हैं। दूसरी ओर उन्हें समझना चाहिए कि दो चार नेताओं को छोड़ कर भाजपा के किसी नेता को जनता ने नहीं चुना अपितु जनता ने मोदी प्रशासन को चुना है। हमें किसी नेता से कोई बड़ी आशा भी नहीं, वे भी मोदी जी को कमजोर करने वाले कारकों में सम्मिलित हैं। अतः उन नेताओं के भरोसे देश को नहीं छोड़ा जा सकता। केरल और बंगाल की विफलता उसी का फल है। यह विफलता भाजपा की विफलता नहीं अपितु राष्ट्र की सुरक्षा में विफलता है ; कार्यकर्त्ताओं की विफलता है, उनके जीवनव्यवहार और सेवाभाव की कमी की द्योतक है। 


इस विफलता में छिपे घातक संकेतों को पकड़ने की #दूरदर्शिता लाइए और फूँक-फूँक कर कदम उठाइए। मेरे लिए इन दो राज्यों के परिणाम विशेषतः चिन्तादायक और सतर्क करने वाले हैं। ध्यान रखिए कि राष्ट्र अभी सुरक्षित नहीं है। इस असुरक्षा की जिम्मेदारी हम सब की है। स्थानीय भाषाओं में काम करने वाले निष्ठावान कार्यकर्त्ताओं की आवश्यकता है, सोशल मीडिया पर उन भाषाओं के कार्यकर्त्ताओं का सहयोग करने की आवश्यकता है, अंग्रेज़ी में भी विचार को विस्तार देने और सबसे बढ़कर निरपेक्ष भाव से स्वयंसेवक होने की, सेवा को अपना जीवनदर्शन बनाने की, राष्ट को प्रथम रखने की, न कि स्वयं को या कुछ और को। 


चुनाव-क्षेत्र को ही अपना कर्मस्थल न समझिए, समूचा भारतीय व वैश्विक मानव-मन आपका कर्मक्षेत्र होना चाहिए। #KavitaVachaknavee

शुक्रवार, 6 मई 2016

मेरे चरणचिह्न काजल-सिक्त

मेरे चरणचिह्न काजल-सिक्त : कविता वाचक्नवी


मैं ही राष्ट्र हूँ, मैं ही भारत,
मैं ही लोकतन्त्र
मैं ही मैं काँग्रेस हूँ
और केवल एकमात्र मैं ही मैं समूचा राज-वंश भी।

मेरे ख़तरे में पड़ते ही राष्ट्र खतरे में
मेरे खतरे में ही आते ही लोकतन्त्र चिरनिद्रा में
मुझ पर ख़तरा आते ही काँग्रेस पर आक्रमण
मेरे रँगे हाथ पकड़े जाने की आशंका ही राज-वंश का अस्तित्व मिटाने की साजिश;

मेरा विस्तार अपरिमित है
मेरे रूप और महिमा अपार
देश को धू धू जलाने की युक्तियाँ अपरम्पार
वंश और परिवारियों समेत सबके
भूमिसमाधि ले चुके रहस्यों वाले महाप्रस्थान के बावजूद
मैं कालजयी हूँ रक्तजायों सहित,

मेरे डैने सर्वग्रासी हैं
मेरी छाया देश की जड़ों को गला देने वाली
वंश की देहरी पर मेरे चरणचिह्न काजल-सिक्त


मेरे जिह्वा-गह्वर के अतल में, हे 'नर-पुंगव' ! ब्रह्माण्ड घूमता है
घूम जाएगा तुम्हारा मस्तिष्क भी
घुमाने के खेल युगाब्द से मेरा ही एकाधिकार हैं

By #KavitaVachaknavee

(यह कविता नहीं है)

बुधवार, 4 मई 2016

वे यदि ये न करें तो क्या करें

वे यदि ये न करें तो क्या करें : कविता वाचक्नवी 

मुझे नहीं लगता कि किसी लेखिका को लेकर नजरिया उसके लेखक होने, न होने, से ताल्लुक रखता है। वस्तुतः यह वह दृष्टि है जो उसके स्त्री होने के सत्य के साथ जुड़ी है; वह लेखक है, या कोई अन्य स्त्री; इस से उसके प्रति दृष्टि बदलने की अपेक्षा करना दूर की कौड़ी है। हिन्दी समाज में महिला लेखकों को इसका दंश जो झेलना पड़ता है उसकी जड़ें स्त्री के लेखक होने की अपेक्षा, वह जिस संसार और जिस वर्ग (हिन्दी लेखकों) में कार्यरत है, उसमें जमी हैं। क्योंकि दुर्भाग्यपूर्ण कड़वी बात यह है कि हिन्दी लेखक जिस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, वह पिछड़ा (कई अर्थों में), बचा खुचा, हीनभावना से त्रस्त, चरित्र से दोगला, मूल्यों से बेवास्ता, और बहुधा अपढ़, सामन्तवादी, दोहरा और दोगला है। हिन्दी के इने गिने लेखक ऐसे होंगे, जो यदि लेखक न होते तो और भी बहुत कुछ होते। या लेखक होने के अतिरिक्त और भी कुछ हैं। अन्यथा अधिकांश हिन्दी बिरादरी लेखक होने की धन्यता पा-भर गई है; वास्तव में हो न हो। ऐसे किसी भी समाज अथवा वर्ग में स्त्री के प्रति बर्ताव की अन्य आशाएँ ही निरर्थक हैं। वह स्त्री के पक्ष में लिख रहा है तो इसलिए नहीं कि वह स्त्री का पक्षधर है अपितु इसलिए कि यह उसके लेखक बने रहने की चुनौती है , डिमांड है। और जिस हिन्दी लेखक समाज की बात लोग करते हैं उसमें कितने ऐसे हैं, जो दोगले नहीं है ? अलग-अलग प्रसंगों में लगभग 80 प्रतिशत बिरादरी दोगली निकलेगी; क्या महिलाएँ और क्या पुरुष !



स्त्री होने के नाते मान कर चलना चाहिए कि यहाँ ऐसे ही विरोध, तिरस्कार, चरित्र हनन, सबक, बॉयकॉट, लेखक के रूप में निष्कासन किन्तु स्त्री के रूप में बगलगिरी, आदि आदि ही हैं। यह इसलिए नहीं कि आप, वह या मैं स्त्री हैं; अपितु इसलिए कि वे पुरुष हैं, उनकी दृष्टि कुत्सित है, वे दोगले हैं, वे लेखक न होते तो और किसी लायक नहीं हैं, उनका असली चरित्र यही है, वे जाने कैसी जोड़ तोड़ के कारण लेखक बने हैं, वे (अस्तित्व की एकमात्र पहचान) लेखक बने रहने की बाध्यता के चलते कुछ भी लिखते हैं, उनके संस्कार उनके व्यवहार को बाध्य करते हैं, उनका चरित्र उन्हें उकसाता है, वे जिस भी पद या स्थान पर हैं - हैं तो एक ही बिरादरी के, और वे यदि ये न करें तो क्या करें !! (जून 2011)
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