शहर आग की लपटों में -1
- कविता वाचक्नवी
यू.के. के दंगों के समाचारों के चलते कई मित्रों ने संदेश, ईमेल और फोन कर के हमारी कुशलता जाननी चाही और दंगों के कारणों के बारे में भी।
मैं देर तक रात के अंधेरे शून्य में चीख़ों और रक्त से भरे निहत्थों और दूसरी ओर संविधान का नाजायज लाभ उठाते चेहरों की सच्चाईयों की तुलना करती सोने के उपक्रम करती जागती रहती हूँ। नींद आती नहीं। भीतर सन्नाटा है और बाहर पुलिस की गाड़ियों के सायरन सहित सदा की भांति कई तरह के शोर ही शोर ..........
अपडेट
- कविता वाचक्नवी
यू.के. के दंगों के समाचारों के चलते कई मित्रों ने संदेश, ईमेल और फोन कर के हमारी कुशलता जाननी चाही और दंगों के कारणों के बारे में भी।
हम कुशल हैं। जानना रोचक होगा कि एकदम बेतुकी बात पर सब शुरू हुआ। पुलिस को एक व्यक्ति खतरनाक और संदिग्ध लगा, उसे पकड़ने चली पुलिस के साथ मुठभेड़ में वह मारा गया। जिस पर उसके 300 साथियों ने बवाल मचाया और पुलिस पर पथराव किया, 1-2 दुकानों में तोड़फोड़ कर कार आदि को आग लगा दी।
इस घटना का लाभ उठाने के लिए जंकी टाईप (ड्रग्स आदि लेने वाले, बिना काम किए बेरोजगार रह कर सरकारी लाभ और बेनेफिट्स पर मौज करने वाले) कुछ लोगों ने इसे सरल मार्ग समझ कर जगह-जगह एकत्र हो कर दुकानें लूटना और फिर उन्हें जला देना शुरू कर दिया। बहुधा इसमें वर्ग-विशेष के लोग ही सम्मिलित हैं और साथ हैं वे गोरे जो जंकी कहलाते हैं।
इस का सब से महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि यहाँ के नियमानुसार पुलिस किसी भी प्रकार का बल प्रयोग नहीं कर सकती। अन्यथा करेगी तो वह कानूनन अपराध हो जाएगा। वह केवल उन्हें गिरफ्तार कर अदालत को सौंपने का अधिकार रखती है। न यहाँ की पुलिस को भारत की तरह लाठी-डंडे, लातें-घूंसे, अश्रू गैस आदि टोटके अपनाने का अभ्यास है, कभी आवश्यकता ही नहीं पड़ी और न ही संविधान इसकी अनुमति देता है। ऊपर से गैरबालिगों के प्रति तो कदापि कोई कठोरता नहीं बरती जा सकती है। उन्हें तो और भी कई प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त हैं। लगभग, जैसे किसी के शरीर को कोई हाथ नहीं लगा सकता, यह कहा जा सकता है। इतने अधिकार प्रत्येक नागरिक के हैं। किन्तु कहते हैं न कि सज्जनता भी बुरी होती है और सज्जनता का लाभ उठाने वाले कभी भी बस चले तो कुछ भी कर जाते हैं। बस वही इस देश के कानून और व्यवस्था के साथ हुआ है। लोग नाजायज लाभ उठाने की इच्छा, भावना और गतिविधि के चलते इसे आगे बढ़ा रहे हैं।
कल ही अपनी एक भारतीय मित्र से परस्पर हालचाल लेने के लिए फोन पर संपर्क हुआ तो उसने हँसते हुए यहाँ की पुलिस के विवश खड़े होने और भारत की पुलिस की बर्बरता का मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि यहाँ की सरकार को चाहिए कि वह भारत से पुलिस-सहायता मँगवा लें। झट से सब चीज पर काबू पा कर सबक सिखा देगी और ऐसे दंगइयों से निपटना तो उसके लिए कोई बड़ा काम नहीं है। उन्हें मारपीट, लातें घूंसे और एनकाउंटर तक कर के सबूत मिटाने का अभ्यास है। मारपीट न करेगी तो कम से कम आँसू गैस और पानी के फव्वारे मार मार कर ही लोगों को खदेड़ देगी।
मैं देर तक रात के अंधेरे शून्य में चीख़ों और रक्त से भरे निहत्थों और दूसरी ओर संविधान का नाजायज लाभ उठाते चेहरों की सच्चाईयों की तुलना करती सोने के उपक्रम करती जागती रहती हूँ। नींद आती नहीं। भीतर सन्नाटा है और बाहर पुलिस की गाड़ियों के सायरन सहित सदा की भांति कई तरह के शोर ही शोर ..........
अपडेट
अद्यतन समाचार यह है कि इस स्थित के निराकरण के लिए आम जनता की ओर से पहल करते हुए पश्चिमी लंदन के साउथ हॉल में भारतीय सिख समुदाय के लोगों ने इसका समाधान निकालते हुए तीन रातों से गुट बनाकर, रात भर जागते हुए, हाथों में बर्तन और धातु की दूसरी घरेलू चीजें लेकर अपने घरों, मोहल्लों व दुकानों की सुरक्षा करने में सफलता पाई और किसी भी अनहोनी को उस क्षेत्र में घटने नहीं दिया। ध्यातव्य है कि साउथ हॉल लंदन का वह क्षेत्र है जहाँ अधिकांश भारतीय रहते हैं। इस समाचार व एकजुटता पूर्वक किए उनके साहस की इस एकमात्र घटना को मीडिया ने प्रमुखता से रेखांकित किया है कि केवल एक वर्ग ने साहसिक विरोध कर अपने बूते कैसे अनहोनियों को रोकने में सफलता पाई।
क्रमशः
क्रमशः
Irene Rattan ने संदेश में लिखा -
जवाब देंहटाएंA deep analysis, an insight into what really transpired behind the scenes...Thank you for the social comment and i can understand the pain such thoughtless violence can create.
आग हर तरफ फैल रही है .. किसी न किसी के रूप में ॥
जवाब देंहटाएंइतनी भी छूट सही नहीं। लाठीचार्ज तो नहीं पर आँसू गैस और फव्वारे के इस्तेमाल का प्रयोग जनसम्पत्ति की रक्षा हेतु करने में कोई बुरायी नहीं।
जवाब देंहटाएंयह आग बुझनी होगी।
जवाब देंहटाएं*रिपोर्ताज लेखन में तथ्य, विचार और भावुकता के संतुलन का उदाहरण है यह आलेख.
जवाब देंहटाएं**अपना ख़याल रखिएगा.
***''दुखिया दास कबीर है , जागे अरु रोवै.'' [कबीर]
Kavita ji, yah sab ham log roj akhbaron me padh rahe hain.bahut hi dukhad hai yah sab..ise rokna hi chahiye...ap sakushal hain jan kar prasannata huyi...shubhkamnaon ke sath.
जवाब देंहटाएंHemant
अद्यतन समाचार यह है कि इस स्थित के निराकरण के लिए आम जनता की ओर से पहल करते हुए पश्चिमी लंदन के साउथ हॉल में भारतीय सिख समुदाय के लोगों ने इसका
जवाब देंहटाएंसमाधान निकालते हुए तीन रातों से गुट बनाकर, रात भर जागते हुए, हाथों में बर्तन और धातु की दूसरी घरेलू चीजें लेकर अपने घरों, मोहल्लों व दुकानों की सुरक्षा करने में सफलता पाई और किसी भी अनहोनी को उस क्षेत्र में घटने नहीं दिया। ध्यातव्य है कि साउथ हॉल लंदन का वह क्षेत्र है जहाँ अधिकांश भारतीय रहते हैं। इस समाचार व एकजुटता पूर्वक किए उनके साहस की इस एकमात्र घटना को मीडिया ने प्रमुखता से रेखांकित किया है कि केवल एक वर्ग ने साहसिक विरोध कर अपने बूते कैसे अनहोनियों को रोकने में सफलता पाई।
कितना दुखद है यह सब, वह भी उस देश में जहां के बारे में कहा जाता है कि सभ्य और सुशील लोग बसते है?
जवाब देंहटाएंपर पुलिस को थोड़ कठोर होना ही चाहिए और कानून को भी।
शाबस की भारतवंशियों ने गांव की अपनी परंपरागत साहस को विदेश की धरती पर दिखया।
जय हिंद।
वस्त्उ स्थिति से अवगत कराने के लिए शुक्रिया. कविता जी आप का ब्लॉग बहुत सुन्दर है . नियमित विज़िट करने का प्रयास करूँगा .
जवाब देंहटाएंजब पुलिस को बल प्रयोग की अनुमति नहीं है, तो सिर्फ गिरफ्तार करने के प्रयास में उस व्यक्ति की मृत्यु कैसे हो गयी..। पुलिस को उस व्यक्ति की कौन सी गतिविधि संदिग्ध लगी, इस बिन्दुओं पर ब्रिटेन की पुलिस का क्या कहना है।
जवाब देंहटाएंसत्यनारायण शर्मा कमल जी ने लिखा है -
जवाब देंहटाएंआ० कविता जी,
अन्याय का प्रतिरोध करना सिख समुदाय का जन्मजात गुण है | पूरे विश्व में उनकी सी बहादुर और साहसिक कौम दूसरी नहीं |
आशा है यह उफान शांत हो रहा होगा | मेरे भांजे का बेटा भी लन्दन में साफ्टवेअर इंजीनिअर है |
सादर,
कमल
डॉ. अजित गुप्ता ने लिखा है -
जवाब देंहटाएंदंगे के इस स्वरूप का और कानून के प्रकार का पता नहीं था, यह तो चिन्तनीय विषय है।
dr. smt. ajit gupta
7 charak marg udaipur
9414156338
visit my blog - ajit09.blogspot.com
डॉ. दीप्ति गुप्ता ने ईमेल से लिखा है -
जवाब देंहटाएंकविता जी हमने स्टार चैनल, टाइम्स आफ इंडिया में यह खबर पढ़ी और बहुत अफसोस हुआ. हिंसा आजकल एक वैश्विक चेहरा बन गई है.
आप यू.के. में है. यह हमें पता नहीं था. हम सोचते थे कि आप टोरंटो में रहती हैं.
आप ठीक रहिए, बस !! . अन्य सभी के लिए भी शान्ति और सुरक्षा की कामना.....
सस्नेह,
दीप्ति
डॉ. प्रवीण चोपड़ा लिखते हैं -
जवाब देंहटाएंअपने कुशल क्षेम के बारे में सूचित करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद.....ईश्वर का शुक्र है कि आप सकुशल हैं। परमात्मा सब को सुमति प्रदान करे.... कभी फुर्सत के समय आप सेहतनामा अवश्य देखियेगा.. और मुझे आप की फीडबीक का इंतज़ार रहेगा.....कैसे उसे ठीक ठाक किया जा सकता है!! एक तरह से साइट अभी अंडर-कंस्ट्रकशन ही है।
सादर,
प्रवीण चोपड़ा
अपडेट पर प्रतिक्रया देते हुए ई-पंडित ने पुनः ईमेल से लिखा -
जवाब देंहटाएंआपकी कुशलता के बारे में जानकर राहत मिली। सिख समुदाय द्वारा उठाया गया कदम प्रशंसनीय है।
Tarlochan Pangli लिखते हैं -
जवाब देंहटाएंinsan janam se vidriho hai sabh asabh to bas kahne ki bat hai.
अनीता कपूर लिखती हैं -
जवाब देंहटाएंthank god...vahan rahe wale sub mitron ke theek thaak hone ke khabar hai..
जानकारी देने के लिए धन्यवाद. फेसबुक पर हुई बातचीत में अगर कुछ नया है तो उसे भी यहां रख दें. सभ्य समाजों की नब्ज पहचानने में आपका ब्लाग मदद कर रहा है. ताजा हाल बताती रहिए. आभार - अनूप सेठी
जवाब देंहटाएंअनूप सेठी जी !
जवाब देंहटाएंइस प्रकरण का दूसरा भाग कल लिखा था, उसे भी आप इसके साथ जोड़ कर पढ़ें ।
उसे यहाँ देख सकते हैं - http://vaagartha.blogspot.com/2011/08/2.html
धन्यवाद।
अजीब कानून व्यवस्था हॆ-इंग्लॆण्ड की!क्या इससे असामाजिक तत्वों को बढावा नहीं मिलता?
जवाब देंहटाएंसभी आत्मीयों का आभार।
जवाब देंहटाएंइस शृंखला की कुल चार कड़ियाँ अब तक हुई हैं। कृपया शेष 3 कड़ियों को भी क्रम से अगले लेखों के रूप में यहीं पढ़ें और अपने विचार दें।
(आत्मानुशासन)
जवाब देंहटाएंयह शब्द मेरे लिए नया है
क्या इसका अर्थ जान सकता हूं
@ आगत शुक्ला (आकल्प) जी
जवाब देंहटाएंयह शब्द `आत्म' और अनुशासन से मिल कर बना है. जिसका अभिप्राय है - किसी नियम क़ानून या व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा निर्धारित किए नियम और अनुशासन का पालन करने की स्थिति से इतर वह स्थिति जब व्यक्ति स्वेच्छा से अपनी ओर से ऐसा ढल चुका होता है कि उसके सभी कार्य व्यवहार एकदम अनुशासित होते हैं.
अपने को, स्वेच्छा से, स्वयं अनुशासन बद्ध तरीके से ढाल कर जीवन चलाना.
वह अनुशासन दैनिक जीवन और व्यवहार में सदा सर्वदा रचा पचा हो. किसी डर, भय, चिंता या दबाव आदि के न होने की स्थिति में भी अथवा बड़े से बड़ा लोभ / लाभ होने की स्थिति में भी व्यक्ति उसे न तोड़े, छोड़े.