बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

दुःस्वप्न का यथार्थ : कविता वाचक्नवी

दुःस्वप्न का यथार्थ : कविता वाचक्नवी

#आर्कटिक #ब्लास्ट के कारण रविवार रात से जो स्थिति बिगड़नी प्रारम्भ हुई कि हमारे यहाँ सोमवार को तापमान शून्य से 13 डिग्री सेल्सियस नीचे चला गया। पूरे राज्य में कोहराम व ताण्डव मच गया। ऊपर से 'पॉवर ग्रिड' और 'पॉवर जेनेरेटर' तहस-नहस हो गये।  

अभी भी नगर के 14 लाख घरों में 4 दिन से बत्ती नहीं है, बहुत-से क्षेत्रों में पानी नहीं है, स्थान-स्थान पर पानी के पाईप जम जाने से फट चुके हैं, सड़कों पर बर्फ है तो उस से वाहन फिसलने से होने वाली दुर्घटनाएँ घट रही हैं, यातायात सिग्नल काम नहीं कर रहे,  लोगों के घरों व भवनों में आग लग रही है किन्तु पानी का प्रेशर न होने के कारण फायर ब्रिगेड आग बुझाने में असमर्थ है, स्कूल-ऑफिस बन्द हैं, बिजली न होने से इन्टरनेट और फोन सेवा बाधित है, और मोबाईल चार्ज ही नहीं हो सकते, भयावह ठण्ड में बिना ताप व हीटिंग के कई लोग प्राण गँवा चुके, बिजली न होने से चूल्हे नहीं जल सकते तो कई लोगों के पास पेट भरने का कोई विकल्प नहीं है, कुछ लोग कार-इञ्जिन स्टार्ट कर स्वयं को ठण्ड से बचाने बैठे तो कार्बन मोनो-ऑक्साईड से प्राण चले गए, कुछ लोग घर के भीतर कोयले या लकड़ी का अलाव जला बैठे तो भी मोनो-ऑक्साईड से जीवन चला गया। ऊपर से ऐसे भयावह समय में जब हिम-तूफान चल रहा है, कर्मचारी कार्य करने में असमर्थ हैं। घरों से बाहर निकलने में असमर्थ हैं। दुकानें-बाजार बन्द हैं। ऊपर से कोरोना का कहर जारी है। अस्पतालों में भी जेनेरेटर कुछ नष्ट हो गए। ऐसे में स्वास्थ्यकर्मी कोरोना से लड़ें, इस परिश्थिति से या इसके कारण होने वाली समस्याओं से? 

'ह्यूस्टन' (टेक्सस) समझिए कि अमेरिका का केरल है, एकदम दक्षिण में व मेक्सिको बॉर्डर पर बहुत गर्म व रेतीला प्रदेश है। भीषण गर्मी पड़ती है, अतः लोगों के पास शीत झेल सकने हेतु न गरम वस्त्रों की व्यवस्था है, न हिम पर चल सकने वाले जूतों की। घर भी ठण्ड झेल सकने लायक नहीं बने हैं। जिन स्थानों पर हिमपात और शीत सामान्य घटना है, वहाँ तदनुसार प्रबन्ध भी हैं। किन्तु सोचिए कि यदि केरल में यकायक हिमतूफान आ जाये तो क्या स्थिति होगी। बस ह्यूस्टन व आसपास का क्षेत्र इसी दुर्भाग्य से जूझ रहा है। 

सौभाग्य से हमारे घर में गैस का फायरप्लेस है, जिसे मैंने स्वयं  कुछ वर्ष पूर्व faux wood logs ( कृत्रिम लकड़ी के लट्ठ जो मूलतः सीमेण्ट जैसे किसी पदार्थ से बने होते हैं) से सजावटी प्रयोग हेतु तैयार किया था। उस ने हमारी जीवन रक्षा की है। उस पर डिब्बा बन्द खाद्य-सामग्री गर्म कर व चाय आदि बना हमने यह सप्ताह बिताया। उसी से चिपक धरती पर बैठे-बैठे तीन दिन बिताए। 

हम सुरक्षित हैं, सकुशल हैं, स्थिति पहले से ठीक है, यद्यपि हिम-तूफान अभी इस सप्ताह जारी है । हमारी बत्ती फिलहाल लौट आई है, कब तक रहेगी, नहीं पता। कार की बैटरी से अपने मोबाईल को चार्ज कर जीवित रखे हुए हूँ। 

राज्य को भीषण आपदा ग्रस्त क्षेत्र घोषित किया गया है। 
 निराश्रितों व पशुओ-पक्षियों की कल्पना कर देखिये। कई लोगों की छतें हिम का बोझ न सह पाने के कारण फट गई हैं और पिघला हिम घरों में बाढ़ का-सा पानी भर रहा है। पीने के पानी के पाईप फटने के कारण पानी उबाल कर पीने की चेतावनी जारी की गई है, किन्तु बिजली के बिना चूल्हे कैसे जलेंगे कि पानी उबाला जा सके !! 
ईश्वर रक्षा करें। 




रविवार, 14 फ़रवरी 2021

अहिंसा तथा हिंसा : डॉ. कविता वाचक्नवी

अहिंसा तथा हिंसा :   डॉ. कविता वाचक्नवी



अहिंसा क्या है, जानने से पहले जानना होगा कि हिंसा क्या है। क्योंकि, 'अहिंसा' स्वतन्त्र शब्द नहीं, अपितु 'हिंसा' का निषेधात्मक शब्द ही है। आगे बढ़ें, उस से पूर्व बलपूर्वक कहना अनिवार्य है कि समाज में सभी को कम-से कम यह अवश्य समझना चाहिए कि सर्वाधिक हिंसक समाजों को, आतंकवादियों को सर्प्रथम 'अहिंसा' पढ़ाई जानी चाहिए।

जो समाज आत्मरक्षा तक के लिए समर्थ नहीं, या उद्यत नहीं, या उग्र नहीं, या तत्पर नहीं, उसे या उन लोगों को आत्मरक्षा के लिए समर्थ होने या युद्धक होने का निषेध कर, निष्क्रिय करना, अहिंसा नहीं, अपितु हिंसा है ; क्योंकि ऐसा कर हम उन्हें मारे जाने के लिए उकसा रहे होते हैं। और ठीक वही अपराध कर रहे होते हैं, जिस अपराध का दण्ड आत्महत्या के लिए उत्प्रेरित करने के फलस्वरूप दिया जाता है।
वैसे अहिंसा का नाम लेने वालों को अहिंसा का वास्तविक अर्थ नहीं पता होता, वे उसे किसी शारीरिक क्रिया तक सीमित मानते हैं।

वस्तुतः हिंसा का वास्तविक अर्थ है - वैर भाव से प्रेरित हो मन, वचन, या कर्म से कुछ भी करना। और इस से भी बढ़ कर यह जानना आवश्यक है कि हिंसा / अहिंसा केवल मनुष्य के प्रति ही की जा सकने वाली क्रिया नहीं है। पशुओं, प्राणियों, वनस्पतियों, संस्कृतियों, विचारों, सुखों, इतिहास, कलाओं आदि किसी को भी दु:ख, क्षय, या हानि पहुँचना, छीनना आदि हिंसा हैं।

इसलिए अहिंसा की आड़ में अपने मनचाहे लाभ / स्वार्थ की इच्छा की पूर्ति व्यापक हिंसक मनोभाव व व्यवहार है।
अहिंसा शब्द देने वाले ऋषियों की बात के वास्तविक अर्थ को छोड़, अपने मनचाहे अर्थ में उसे बताना-कहना, बड़ा स्वार्थ और विष है, हिंसक व्यवहार व ही सके क्रिया है।

सेना का पराक्रम, राम की शक्ति पूजा या कृष्ण, चाणक्य की कूटनीति की परम्परा आदि हिंसा नहीं हैं।
अहिंसा का नाम लेकर अपनी जीभ के स्वाद के लिए पशुओं का वध करना विश्व की सबसे बड़ी, व्यापक व क्रूर हिंसा है। तत्पश्चात् आतंकवाद व हिंसक प्रजातियों का मज़हबी उन्माद व तलवार का शासन या गैस चैम्बर, और उस से भी बढ़कर हिंसा के उदाहरण जानने हों तो वर्ष 2017 में प्रो. स्टीफन कोटकिन्स द्वारा 'वॉल स्ट्रीट जरनल' में उनका शोध पढ़ें।

साम्राज्य के विस्तार या मज़हबी उन्माद ने विश्वमानव का जो क्षय किया है, उसे कभी स्वीकार न करना अहिंसा ही है क्योंकि स्वीकार न करने वाला ही हिंसक का असमर्थन कर रहा होता है। हमें हिंसक की हिंसा का निषेध करने में सक्षम बनना होगा, ताकि हिंसा समाप्त हो सके।

भारतीय वैदिक समाज ने जिस अहिंसा की संकल्पना दी, वह निर्वैरता व अकारण किसी भी प्राणी या पदार्थ से छल या संघात / संहार न करना है।

अपनी जीभ के स्वाद की सन्तुष्टि हेतु किये गए पशु वध में जो व्यक्ति भागीदार कभी न बना हो, वह आगे आए और अहिंसा का उदाहरण प्रस्तुत कर अगले चरण छल, कपट, वैर, आहत करना आदि की ओर बढ़ने के उपायों पर विचार करे। सब से सरल उपाय है, वैदिक ऋषियों का स्वाध्याय और तदनुरूप क्रियात्मक जीवन शैली।
अलमतिविस्तरेण !
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