शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

लोहा सारा गला हुआ है : एक पुरानी कविता : (डॉ.) कविता वाचक्नवी


पानी बरसेगा
- (डॉ.) कविता वाचक्नवी
अपनी पुस्तक " मैं चल तो दूँ " (2005 ) से उद्धृत 

Waiting for the Rain
Artist: Ruth Burnik 









सुनती हूँ - "पानी बरसेगा"
जंगल, नगर, ताल प्यासे हैं
मुरझाया पेड़ों का बाना।

इतने दिन का नागा करती
वर्षा की पायल की आहट
सुनने को पत्थर आकुल हैं
लोहा सारा गला हुआ है
उसको पानी में ढलना है,

सलवट-सलवट कटा हुआ
पैरों के नीचे
पृथ्वी का आँचल पुकारता
पानी....पानी....पानी....पानी....।

बादल अपने नियत समय पर
इसको
उसको
सबको
उनको
पानी देंगे
तब आएँगे।
अभी समय
नहीं आया है।

सुनती हूँ -
पानी बरसेगा.....।
      



11 टिप्‍पणियां:

  1. "लोहा सारा गला हुआ है
    उसको पानी में ढलना है"
    बहुत सुंदर प्रयोग!

    जवाब देंहटाएं
  2. पानी बरसेगा..इतनी अकुलाहट व्यर्थ न जायेगी।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूबसूरत रचना ''मुरझाया पेड़ों का बाना''

    जवाब देंहटाएं
  4. Kavita Jee -

    Ye NAGA shabd to bihar ke aadiwaasi istemaal karte hai. Shayad pahli bar mainey is shabd ka istemaal dekha.

    Dhanyawaad.

    जवाब देंहटाएं
  5. ‎Rajeev Kumar जी,

    बिहार के आदिवासी समुदाय द्वारा इस शब्द के प्रयोग की जानकारी मेरे लिए नई है, इसके लिए धन्यवाद । `नागा' शब्द पंजाबी में भी इसी अर्थ में प्रयुक्त होता है।

    जवाब देंहटाएं
  6. नागा शब्द हमारे यहां ब्रजभाषा में भी प्रयुक्त होता है जब कोई रोज आने वाला मजदूर किसी दिन नहीं आता है तो वह दिन उसकी नागा होती है.. जैसे इस महीने दूध वाले की चार नागा है अर्थात् वह चार दिन नहीं आया।
    बहुत अच्छी कविता
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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