पानी बरसेगा
- (डॉ.) कविता वाचक्नवी
Artist: Ruth Burnik |
सुनती हूँ - "पानी बरसेगा"
जंगल, नगर, ताल प्यासे हैं
मुरझाया पेड़ों का बाना।
जंगल, नगर, ताल प्यासे हैं
मुरझाया पेड़ों का बाना।
इतने दिन का नागा करती
वर्षा की पायल की आहट
सुनने को पत्थर आकुल हैं
लोहा सारा गला हुआ है
उसको पानी में ढलना है,
सलवट-सलवट कटा हुआ
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- पैरों के नीचे
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पृथ्वी का आँचल पुकारता
पानी....पानी....पानी....पानी....।
बादल अपने नियत समय पर
इसको
उसको
सबको
उनको
पानी देंगे
तब आएँगे।
पानी....पानी....पानी....पानी....।
बादल अपने नियत समय पर
इसको
उसको
सबको
उनको
पानी देंगे
तब आएँगे।
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- अभी समय
- नहीं आया है।
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सुनती हूँ -
पानी बरसेगा.....।
BAHUT HI SUNDAR PANKTIYA
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर....सुनते हैं पानी बरसेगा....।
जवाब देंहटाएं"लोहा सारा गला हुआ है
जवाब देंहटाएंउसको पानी में ढलना है"
बहुत सुंदर प्रयोग!
अति सुंदर
जवाब देंहटाएंपानी बरसेगा..इतनी अकुलाहट व्यर्थ न जायेगी।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना ''मुरझाया पेड़ों का बाना''
जवाब देंहटाएंKavita Jee -
जवाब देंहटाएंYe NAGA shabd to bihar ke aadiwaasi istemaal karte hai. Shayad pahli bar mainey is shabd ka istemaal dekha.
Dhanyawaad.
Rajeev Kumar जी,
जवाब देंहटाएंबिहार के आदिवासी समुदाय द्वारा इस शब्द के प्रयोग की जानकारी मेरे लिए नई है, इसके लिए धन्यवाद । `नागा' शब्द पंजाबी में भी इसी अर्थ में प्रयुक्त होता है।
sunne ko pathar aakul hai ,loha saara gala huya hai .achcha geet hai badhai
जवाब देंहटाएंachhi rachna hai
जवाब देंहटाएंनागा शब्द हमारे यहां ब्रजभाषा में भी प्रयुक्त होता है जब कोई रोज आने वाला मजदूर किसी दिन नहीं आता है तो वह दिन उसकी नागा होती है.. जैसे इस महीने दूध वाले की चार नागा है अर्थात् वह चार दिन नहीं आया।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता
सादर