दौड़
(डॉ.) कविता वाचक्नवी
(कविता का पहला ड्राफ्ट )
दौड़ में शामिल लोग
चौकन्ने होते हैं
संबंध बनाने में,
विजेता कहलाए जाने के लिए
स्थापित विजेताओं के प्रति विनम्र होने में,
सुर्खियों में रहने के लिए
प्रचारक तंत्र के प्रति
और
विजेता घोषित करने वाले निर्णायकों के साथ भी;
दौड़ते हैं बार बार
उसी दौड़ पट्टी पर
जहाँ हर बार
अधिक बार
जीतने की संभावनाएँ प्रबलतर हों
दौड़ में पछाड़ सकने वाले से
पिछड़ जाने के खतरों के प्रति
सावधान लोग
दौड़ के प्रतिद्वंद्वियों से
हरदम सचेत रह कर
बौना करने की जुगत रचाते
थकते नहीं कभी
और दौड़ते रहते हैं
दौड़पट्टी की गोलाकार अंतहीन चौहद्दियों में
पस्त हो जाने की हद तक
विजेता घोषित होने तक
या फिर
पराजित हो जाने के
परिणामों के बाद तक .....
वे नहीं जानते
पिछड़ना खूबसूरत हो सकता है
या दौड़ से बाहर रहना भी कला ;
यह दौड़ जो बाहर है
हर बार विजेता बदल जाते हैं इसमें ,
खिलाड़ी रोज नए आते हैं
और
वह दौड़ जो भीतर है
वह है सर्वदा
अंतहीन
नितांत अकेले हो जाने तक
अपने अंत तक
अर्वाचीन !!
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(डॉ.) कविता वाचक्नवी
(कविता का पहला ड्राफ्ट )
दौड़ में शामिल लोग
चौकन्ने होते हैं
संबंध बनाने में,
विजेता कहलाए जाने के लिए
स्थापित विजेताओं के प्रति विनम्र होने में,
सुर्खियों में रहने के लिए
प्रचारक तंत्र के प्रति
और
विजेता घोषित करने वाले निर्णायकों के साथ भी;
दौड़ते हैं बार बार
उसी दौड़ पट्टी पर
जहाँ हर बार
अधिक बार
जीतने की संभावनाएँ प्रबलतर हों
दौड़ में पछाड़ सकने वाले से
पिछड़ जाने के खतरों के प्रति
सावधान लोग
दौड़ के प्रतिद्वंद्वियों से
हरदम सचेत रह कर
बौना करने की जुगत रचाते
थकते नहीं कभी
और दौड़ते रहते हैं
दौड़पट्टी की गोलाकार अंतहीन चौहद्दियों में
पस्त हो जाने की हद तक
विजेता घोषित होने तक
या फिर
पराजित हो जाने के
परिणामों के बाद तक .....
वे नहीं जानते
पिछड़ना खूबसूरत हो सकता है
या दौड़ से बाहर रहना भी कला ;
यह दौड़ जो बाहर है
हर बार विजेता बदल जाते हैं इसमें ,
खिलाड़ी रोज नए आते हैं
और
वह दौड़ जो भीतर है
वह है सर्वदा
अंतहीन
नितांत अकेले हो जाने तक
अपने अंत तक
अर्वाचीन !!
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कुछ निजी आक्रोश में खीज कर झल्लाहट से कही गयी अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंस्पष्ट उजागर है ..| शब्द-समूह का चयन रुचिकर है |
वाकई में बहुत सुंदर रचना है. ये जिंदगी हार-जीत में एक दौड़ ही तो है...जब तक इंसान थकता नहीं.
जवाब देंहटाएंदौड़ना, दौड़ना, दौड़ते रहना
जवाब देंहटाएंऔर इसी दौरान संबंध भी बना लेना
मुझे तो बड़ा दुष्कर लगता है
जो कर पाते हैं
सच में
बड़े काबिल हैं
@ सिद्धार्थ जी,
जवाब देंहटाएंयह तेरा मेरा का भी हो सकता है, भाई भतीजे का भी, लॉबिंग का भी, वाद / प्रतिवाद का भी, घराने घराने का भी .... जैसे बीसियों तरीके और सैकड़ों कारण हैं इस `कैसा' व `किस' के। हर क्षेत्र की दौड़ के अलग अलग गठबंधन होते हैं।
जरा गौर से देखिएगा तो सकारण के इन संबंधों के बनने बिगड़ने की समानांतर प्रक्रिया और पोलपट्टी साफ दिखाई देगी।
आपने इतने गौर से पढ़ा बहुत अच्छा लगा।
दौड़ लगी है, देखो देखो,
जवाब देंहटाएंगिरते पड़ते मिटते देखो..
अंतिम अंश बहुत सुन्दर बन पड़ा है.
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकार करें.
अच्छी रचना है. .....'मैं चल तो दूं ' के साथ पढी जा सकती है.
कल 24/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
सार्थक विचार
जवाब देंहटाएंकितने सधे शब्दों में अंधी दौड़ में शामिल ...लोगो की बात कर दी...उनकी सोच ...सबको पीछे छोड़ने और खुद को दौड़ में बनांए रखने कि जुगाड़ ....किसी भी हद तक
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ मुझे ये कविता अपनी सी लगी ...आभार
और जो दौड है अंदर ..अंतहीन ... बहुत सार्थक बात कही है ..
जवाब देंहटाएंSundar aur sarthak prastuti...
जवाब देंहटाएंAabhaar..
मेरे ब्लॉग में भी पधारें..
जवाब देंहटाएंमेरी कविता