रविवार, 9 फ़रवरी 2014

आज एक भावुक संस्मरण

आज एक भावुक संस्मरण मेरा  :  कविता वाचक्नवी


मुझे हिन्दी को नेट पर प्रयोग करते 8 वर्ष हो गए हैं। इन आठ वर्षों में विश्व-भर के पाठकों का जो कल्पनातीत स्नेह आदर व प्यार मुझे मिला है, उसके अनूठे किस्से हैं। लोगों ने ऐसे-ऐसे शब्दों और ऐसे ढंग से अपना स्नेह व्यक्त किया है कि यदि मैंने उनका लेखा-जोखा बनाया होता तो स्वयं मुझे व पढ़ने वालों को विश्वास न होता कि सच में लोगों ने ऐसे शब्द लिखे-कहे होंगे। गिनती के कुछ कड़वे अनुभव भी हैं किन्तु कइयों हजार लोगों के अपार स्नेह के सामने इन 8-10 कटु अनुभवों का कोई मोल नहीं। 


शायद ही किसी के 'सम्मान-पत्र' या 'प्रशस्ति पत्र' में वे शब्द लिखे जाते होंगे जो शब्द मुझे मेरे पाठकों ने 2006 से नेट पर व उस से पूर्व 1998 से 2006 तक पत्रिकाओं में या व्यक्तिगत पत्रादि लिख कर भेजे हैं। अपने 10-15 पुरस्कार और दो-चार सौ बार हुए अपने अभिनन्दन आदि के अवसरों पर भी कभी ऐसा आह्लाद या रोमाञ्च मुझे नहीं हुआ जैसा पाठकों से मित्र बने और मित्र से आत्मीय बने अनगिनित अनजान लोगों के प्रेम से सुख मिला और आह्लाद हुआ है। मेरा रोम-रोम इन लोगों के प्रति स्नेह के भार से दबा हुआ है। उसे बखाना भी नहीं जा सकता। यद्यपि मैंने उनके लिए व्यक्तिगत रूप से कभी भी कुछ विशेष नहीं किया। मैं अपने इन शब्दों द्वारा आपको या किसी को भी उस कल्पनातीत प्रेम, सम्मान व आदर का एक हजारवाँ हिस्सा भी नहीं बता पा रही जो इन लोगों ने मुझे दिया है। संसार-भर में फैले ये लोग मेरी आत्मा का अंश जैसे बन गए हैं। पल-पल इनकी ऋणी हूँ। 


यों तो लाखों घटनाएँ हैं किन्तु आज यह सब लिखने का एक विशेष कारण है। एक सज्जन हैं, जो यहीं फेसबुक पर मुझसे जुड़े। कभी अधिक संवाद नहीं हुआ। वर्ष में संभवतः एक बार का अनुपात होगा जब दो-चार वाक्यों का आदान प्रदान हुआ होगा। किन्तु गत दिनों उन्होने मुझे बताया कि उनके यहाँ संतान का जन्म होने वाला है और मुझे कहा कि - "मेरी प्रार्थना है कि आप ही कोई नाम रख दें ..परिवार में बड़े के नाम पर मेरी माँ ही जीवित है, कहती है तू ही कोई नाम रख दे....."। 


ईश्वर कृपा से उन्हें स्वस्थ सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ। बालक का नाम रखा गया। उन्होने मुझे लिखा " thank u so much ! i will never forget u in my entire life." मैंने पूछा ऐसा क्या कर दिया मैंने तो बोले - " nothing special madam! it's happen because of blessings of persons like u. Sudha murthy, APJ Kalam , M.M Malviye , Vinoba Bhave are my role model, now u are my role model too. Regards ....." । 


उनके बड़प्पन ने दिल छू लिया मेरा। और आज वे बोले - "एक अनुरोध है, न मत कहियेगा ! ... अपने ख़ुशी के मौके पर अपनी माँ के साथ -साथ आपको भी कुछ भेंट देना चाहता हूँ ........कोई हिंदुस्तानी चीज जो आपको वहाँ न मिलती हो ....ये मेरी श्रद्धा है, जब भी कोई धर्म संकट आता है , आपकी शरण ही आता हूँ ..आप ऐसा मत सोचियेगा कि कोई आर्थिक या व्यवसायिक लाभ के लिए आप से जुड़ना चाहता हूँ ......आभार" 


मैं उनके संस्कार, भावना और इस सरल आत्मीयता से आकण्ठ भावुक हो उठी। कोई इतनी दूर बैठा व्यक्ति अपने ऐसे अनमोल अवसर पर अपनी माँ के समतुल्य आदर मान देने के लिए तत्पर है, यह प्रेम क्या कुछ भी देकर पाया जा सकता है ? मैं तब से भावुक हूँ। उनके व उनके परिवार के प्रति मन से जाने कितने प्रेम व स्नेह के भाव उमड़ रहे हैं।

यह है 5 दिन का नवजात 'अगस्त्य' 
ऐसे पिता की संतान को श्रेष्ठ व्यक्ति होने से संसार की कोई शक्ति रोक नहीं सकती। वह बेटा धन्य है जिसने ऐसे पिता के घर जन्म लिया और वह माँ धन्य है जिसने ऐसे संस्कारवान पुत्र को जन्मा। मैं इन सज्जन का नाम जानबूझ कर नहीं दे रही ताकि उनकी प्राईवेसी भंग न हो। किन्तु सच है कि मैं बहुत छोटी हूँ इस स्नेह व आदर के समक्ष ! 'अगस्त्य' के लिए मेरा रोम-रोम असीस भेजता है आपको ! 


हम प्रतिदिन दिन से रात तक सब ओर नकारात्मक व मनुष्य की बुराई के समाचार सुनते हैं, ऐसे में अच्छाई कैसे आगे बढ़ेगी। अच्छाई को हमें ही लिख कर आगे बढ़ाना होगा। इसलिए इस घटना को लिखना आवश्यक समझा। पाठकों से निवेदन है कि उनके सुपुत्र अगस्त्य के लिए अपने आशीष दें और उनकी खुशी में सहभागी बनें।

शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

क्या पता था एक दिन तुम भी ......

!! कीकर !!    :     कविता वाचक्नवी
वसन्त और वैलेंटाईन दिवस की वेला में विशेष .....
© अपनी पुस्तक 'मैं चल तो दूँ' (2005) से उद्धृत





बीनती हूँ
           कंकरी
औ’ बीनती हूँ
           झाड़ियाँ बस
नाम ले तूफान का
           तुम यह समझते।


थी कँटीली शाख
मेरे हाथ में जब,
एक तीखी
नोंक
उंगली में
गड़ी थी,
चुहचुहाती
बूँद कोई
फिसलती थी
पोर पर
तब
होंठ धर
तुम पी गए थे।



कोई आश्वासन
            नहीं था
प्रेम भी
            वह 
            क्या रहा होगा
            नहीं मैं जानती हूँ
था भला
मन को लगा
बस!
और कुछ भी
क्या कहूँ मैं।



फिर
न जाने कब
चुभन औ’ घाव खाई
सुगबुगाते
 दर्द की
वे दो हथेली
खोल मैंने
सामने कीं
         "चूम लो
          अच्छा लगेगा"
तुम चूम बैठे


घाव थे
सब अनदिखे वे
खोल कर
जो
सामने
मैंने किए थे
          और 
तेरे
चुम्बनों से
तृप्त
सकुचातीं हथेली
भींच ली थीं।


क्या पता था
एक दिन
तुम भी कहोगे
        अनदिखे सब घाव
        झूठी गाथ हैं
        औ’
        कंटकों को बीनने की
        वृत्ति लेकर
        दोषती
        तूफान को हूँ।



आज
आ-रोपित किया है
पेड़ कीकर का
मेरे
मन-मरुस्थल में
       जब तुम्हीं ने,
क्या भला -
अब चूम
चुभती लाल बूँदें
हर सकोगे
पोर की
पीड़ा हमारी?


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