(यह लेख 23 अगस्त 2007 को अपने प्रथम हिन्दी ब्लॉग अथ (http://360.yahoo.com/kvachaknavee) पर लिखा था। yahoo द्वारा वह ३६० की ब्लॉग सर्विस बंद की जा चुकी है। उस ब्लॉग पर प्रकाशित अपनी सामग्री को धीरे धीरे यहाँ स्थानान्तरित कर रही हूँ। )
- कविता वाचक्नवी
--------------------------------------------------------------------------------------------------दुआ में याद रखियेगा
आज यकायक पाकिस्तान निवासी अपने एक वरिष्ठ रचनाकार पत्रकार मित्र से बात हुई ।
अब भला यह कैसे संभव था कि कविता या साहित्य के अतिरिक्त किसी और विषय पर बात होती ? उन्होने अपनी कुछ पंक्तियाँ सुनाईं। बहुत अच्छी लगीं सो यहाँ सहेज रही हूँ -
" कुछ न खोया कुछ न पाया उम्र-भर
जिंदगी को यों गँवाया उम्र-भर
जिसके दिल में थी शजर की आरजू
धूप ने उसको जलाया उम्र-भर
रास आया ही नहीं ये और बात
घर तो हमने भी बनाया उम्र-भर
इक मकाँ अपना बनाने के लिए
बोझ दुनिया का उठाया उम्र-भर"
जिंदगी को यों गँवाया उम्र-भर
जिसके दिल में थी शजर की आरजू
धूप ने उसको जलाया उम्र-भर
रास आया ही नहीं ये और बात
घर तो हमने भी बनाया उम्र-भर
इक मकाँ अपना बनाने के लिए
बोझ दुनिया का उठाया उम्र-भर"
और जाते जाते जो पंक्ति कही ------
"अपना खयाल रखियेगा---- दुआ में याद रखियेगा"
मेरे मन में लाहौर फिर सुलगने लगा है , शायद बँटवारे में उजड़ कर आए हुए परिवारों की पीढियाँ भी उसी पीडा में जलती हैं जिसमें उनके पुरखे कभी जले थे; और जिस आग ने फूँक दिया था आने वाली सब पुश्तों का भविष्य !
मुझे बुआ, दादी, फूफा, नानी की यादों में जगता ४७ का अँधेरा दिन भर निगला करता है । एक फ़िल्म है जिसका कोई अन्त नहीं, वही पलकों के पीछे चला-छला करता है।
Dividing up a library at the time of 1947 partition [Photo: Life Magazine , August 1947]
A painful period... Partition, one of history?s largest migrations, 1947.
In 1947, the border between India and its new neighbour Pakistan became a river of blood, as the exodus erupted into rioting. These pictures are by Margaret Bourke-White from Khushwant Singh's book Train to Pakistan, Roli Books. WARNING: Some images may cause distress.
Over 10 million people were uprooted from their homeland and travelled on foot, bullock carts and trains to their promised new home.
In a couple of months in the summer of 1947, a million people were slaughtered on both sides in the religious rioting. Here, bodies of the victims of rioting are picked up from a city street.
The massive exchange of population that took place in the summer of 1947 was unprecedented. It left behind a trail of death and destruction. The Indian map was slashed to make way for a new country - Pakistan.
"The street was short and narrow. Lying like the garbage across the street and in its open gutters were bodies of the dead," writes Bourke-White's biographer Vicki Goldberg of this scene.
।
With the tragic legacy of an uncertain future, a young refugee sits on the walls of Purana Qila, transformed into a vast refugee camp in Delhi.
Men, women and children who died in the rioting were cremated on a mass scale। Villagers even used oil and kerosene when wood was scarce.
Families were cut to half as men were killed leaving women to fend for themselves.
- कविता वाचक्नवी
जो इतिहास को भूल जाते हैं, वे उसे दुहराने को अभिशप्त होते हैं।
जवाब देंहटाएंये दाग दाग उजाला ये शबगजीदा मंजर
जिस सहर का इंतजार था ये वो तो नहीं।
(उर्दू कम आती है इसलिए ग़लतियाँ क्षम्य होनी चाहिए)
याद दिलाने के लिए धन्यवाद,
कविता जी कुछ दर्द इतिहास के पन्नो मे दर्ज है.. हम जैसे लोगो ने स्वंतत्र भारत में आंखे खोली और इस दर्द को शायद महसूस ना कर पाये हो जो उस वक्त सच्चे हिन्दुस्तानियो ने झेला था..आज हम जश्न मनाते है आजादी का लेकिन इसका सही मतलब खोते जा रहे है..
जवाब देंहटाएं-प्रतिबिम्ब बडथ्वाल.
http://www.barthwal-barthwal.blogspot.com/
http://merachintan.blogspot.com/
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जवाब देंहटाएंye yesa itihas he jise hame kibhi nahi bhulna chahiye shayad ham un logo ke dukha or takalif ka andaza kabhi nahai laga sakate jinhone ye sabh zela kabhi nahi...bas hame ye sochna chahiye ki ye huaa kiyu.
जवाब देंहटाएंaaj jab un palo ko picture ke roop me dekhte haine jinko kabbhi hum ne vastvik rup se dekha hi nahi to ye ehsas hota hai ki desh ka vibhajan dono samudai ke liye kitna dukhad aur vidhvanshak tha.
जवाब देंहटाएंकविता जी नमस्कार,
जवाब देंहटाएंचित्र देख कर मन द्रवित हो उठा लगभग ४२ वर्ष पूर्व जब १२ वीं क्लास में था तब मुझे कहीं से ट्रेन टू पाकिस्तान पुस्तक पढ़ने को मिली थी.वह पुस्तक अपनी ऐसी छाप छोड़ गयी थी जो आज तक विचलित करती है.निशनदेह इतिहास से बढ़ कर कोई पुस्तक कोई ज्ञान नहीं होता जो इतिहाश से सीखता नहीं इतिहास पढता नहीं उसका इतिहाश में कोई आता पता होता नहीं.आपके सारे प्रयासों की जितनी प्रसंसा की जाये कम है .
ham ne dekhaa thaa jo khwaab hee aur thaa
जवाब देंहटाएंab jo dekhaa tp panjaab hee aur thaa
Wednesday,May 09, 2012 3:49:00 AM बजे मेरे नाम से (किंचित् अशुद्ध) और मुझे ही संबोधित कर लिखी टिप्पणी करने वाले सज्जन से निवेदन है कि वे कृपया अपने नाम व परिचय से टिप्पणी करें।
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी बेहद महत्वपूर्ण है और उस में ऐसा कुछ भी असंगत या अशोभन नहीं है कि आपको अपना नाम छिपा कर मेरे नाम का सहारा लेना पड़े।
Aaj bhi kitane Pakistan taiyar hain banane ko? Kabhi socha hai aapne? Rajnaitik swarthon ke chalte desh ki asmita ko kahin andhere kono me dhakeldiya hai. Aaj ham agar is baat ko nahin samajh paye to aane wala samay hame kabhi bhi maaf nahin karega. Kai baar sochata hun, jab ham school me padhne jaate the to hamare teachers hame veeron ki gathaon ko sunate the. Desh ko azad karane ke liye Hindu, Musalmaan, Sikh Isaai aadi kis tarah ekzut ho kar lade the. Zalianwala Bag jaise kaand hamare itihaas ke ve kaale panne hain jo aaj bhi desh wasiyon ke seene me shool ki tarah chubhate hain. Desh ke do tukade na hote agar Rajnatik jang na hoti. Lekin sabak kisane liya? Aaj bhi kya ho raha hai? Kahane ko to hamne Sarv dharm sadbhav ka naara diya desh ko,lekin chunav aaj bhi jatiya aadhar par lade jate hain. Ticket dete waqt yeh dekha jata hai ki kis jati ya samuday ki bahulata hai us kshetr me. Koi bhiparty ho, kisi bhi vichardhara se judi hui party ho. Hindu Musalman to ganga jamuni sabhyata ke smvahak hain. Uname aapsi dwesh failane wale vishw ke is mahan loktantr ki maryada se khilwad kar rahe hain. Hindustan-Pakistan ke bantware ka dard abhi khatm nahin hua hai. "Lamho ne khata ki sadiyon ne saza paai". Ab nahin sambhale to main nahin samajhata ke aane wale samay me is waqt ki bhool ki bharpaai ho paayegi
जवाब देंहटाएंवाह क्या खुब कहा है शायर ने कि 'घर हमने भी बनाय उम्र भर। बहुत खुब। जिन्दगी का फलसफा यूँ करके ही है।
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