(डॉ.) कविता वाचक्नवी
निर्मल जल के
बर्फ हुए आतंकी मुख पर
कुंठाओं की भूरी भूसी
लिपटा कर, जो
वर्तमान की वह पगडंडी
जो इस देहरी तक आती थी
धुर लाशों से अटी पडी़ है,
ओसारे में
मृत देहों पर घात लगाए
हिंसक कुत्तों की भी भारी
भीड़ लगी है।
कोई रोटी के कुछ टुकडे़
छितरा, समझे
श्वासों को उसने
प्राणों का दान दिया है
और वहीं दूजा बैठा है
घात लगाए
महिलाओं, बच्चों की देहों को बटोरने
एक ओर विधवाएँ
कौरव दल की होंगी
एक ओर द्रौपदी
किंतु आज तो
कृष्ण नहीं हैं
नहीं वाल्मीकि तापस हैं,
मै वसुंधरा के भविष्य को
गर्भ लिए
बस, काँप रही हूँ
यहीं छिपी हूँ
विस्फोटों की भीषण थर्राहट से विचलित,
भीत, जर्जरित देह उठाए।
त्रासद, व्याकुल बालपने की
उत्कंठा औ’ नेह-लालसा
कुंठा बनकर
हिटलर या लादेन जनेगी
और रचेगी
ऐसी कोई खोह
कि जिसमें
हथियारों के युद्धक साथी को लेकर
छिप
जाने कितना रक्त पिएगी।
असुरक्षित बचपन
मत दो
मेरे बच्चों को,
उन्हें फूल भाते हैं
लेने दो
खिलने दो
रहने दो मिट्टी को उज्ज्वल
पाने दो सुगंध प्राणों को।
जाओ कृष्ण कहीं से लाओ
यहाँ उत्तरा तड़प रही है!!
वाल्मीकि!
सीता के गर्भ
भविष्य पल रहा!!
बर्फ हुए आतंकी मुख पर
कुंठाओं की भूरी भूसी
लिपटा कर, जो
गर्म रक्त मटिया देते हैं
वे, मेरे आने वाले कल के कलरव पर
घात लगाए बैठे हैं सब।
वे, मेरे आने वाले कल के कलरव पर
घात लगाए बैठे हैं सब।
वर्तमान की वह पगडंडी
जो इस देहरी तक आती थी
धुर लाशों से अटी पडी़ है,
ओसारे में
मृत देहों पर घात लगाए
हिंसक कुत्तों की भी भारी
भीड़ लगी है।
मैं पृथ्वी का
आनेवाला कल सम्हालती
डटी हुई हूँ
नहीं गिरूँगी...
नहीं गिरूँगी....
पर इस अँधियारे में
ठोकर से बचने की भागदौड़ में
चौबारे पर जाकर
बच्चों को लाना है,
इन थोथे औ’ तुच्छ अहंकारी सर्पों के
फन की विषबाधा का भी
आनेवाला कल सम्हालती
डटी हुई हूँ
नहीं गिरूँगी...
नहीं गिरूँगी....
पर इस अँधियारे में
ठोकर से बचने की भागदौड़ में
चौबारे पर जाकर
बच्चों को लाना है,
इन थोथे औ’ तुच्छ अहंकारी सर्पों के
फन की विषबाधा का भी
भय
तैर रहा है....।
तैर रहा है....।
कोई रोटी के कुछ टुकडे़
छितरा, समझे
श्वासों को उसने
प्राणों का दान दिया है
और वहीं दूजा बैठा है
घात लगाए
महिलाओं, बच्चों की देहों को बटोरने
-
-
- बेच सकेगा शायद जिन्हें
- किसी सरहद पर
- और खरीदेगा
- बदले में
- हत्याओं की खुली छूट, वह।
-
एक ओर विधवाएँ
कौरव दल की होंगी
एक ओर द्रौपदी
-
-
- पुत्रहीना
-
सुलोचना
मंदोदरी रहेंगी........।
मंदोदरी रहेंगी........।
किंतु आज तो
कृष्ण नहीं हैं
नहीं वाल्मीकि तापस हैं,
मै वसुंधरा के भविष्य को
गर्भ लिए
बस, काँप रही हूँ
यहीं छिपी हूँ
विस्फोटों की भीषण थर्राहट से विचलित,
भीत, जर्जरित देह उठाए।
त्रासद, व्याकुल बालपने की
उत्कंठा औ’ नेह-लालसा
कुंठा बनकर
हिटलर या लादेन जनेगी
और रचेगी
ऐसी कोई खोह
कि जिसमें
हथियारों के युद्धक साथी को लेकर
छिप
जाने कितना रक्त पिएगी।
असुरक्षित बचपन
मत दो
मेरे बच्चों को,
उन्हें फूल भाते हैं
लेने दो
खिलने दो
रहने दो मिट्टी को उज्ज्वल
पाने दो सुगंध प्राणों को।
जाओ कृष्ण कहीं से लाओ
यहाँ उत्तरा तड़प रही है!!
वाल्मीकि!
सीता के गर्भ
भविष्य पल रहा!!
*अपनी पुस्तक "मैं चल तो दूँ" (२००५) से
वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत गहराई तक गयी है लेखनी आपकी ...किसी का भी दिल दहलाने के लिए काफी है यह वास्तविक भय ! आशा की किरण कहीं से नहीं दिखती ! फिर भी लगता है हम बच जायेंगे कविता जी :-) हमेशा की तरह हाथ पर हाथ लेकर बैठ रहने वालों का सोच मैं भी परोस रहा हूँ ...
सोचने को मजबूर करती आपकी यह रचना, लगता है अमर रहेगी !
अब आपकी चोट कैसी है ?? हार्दिक शुभकामनायें !!
आभार इतनी उम्दा रचना के लिए...बधाई.
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna...
जवाब देंहटाएंसोचने को मजबूर करती है यह कविता..
जवाब देंहटाएंआने वाले कल को सुरक्षित करने के लिए संघर्ष करते वर्तमान का यथार्थ.............
Bahut hi sundar kavita...
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण कविता......पुराना मुहावरा भी अच्छा लगता है..आप जिस कुशलता से शब्दों को लय में डाल कर अवगुंठित कर लेती हैं..अद्भुत कृत्य सम्वेदना को इस तरह से सम्भाल कर चलने का...
जवाब देंहटाएंBahut hii ghazab Kavita , jhakjhor deti hai, kaash koi yeh pathyakram mein daal deta.
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
जवाब देंहटाएंबढ़िया है!
जवाब देंहटाएंक्या आपने हिंदी ब्लॉग संकलन के नए अवतार हमारीवाणी पर अपना ब्लॉग पंजीकृत किया?
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Behad khoobsurat ........kabbhi appko samy mile toh mere blog pe aa kar mardarshn de ..emin apne app ko dhany samjhugi
जवाब देंहटाएंhttp://ritusugandh.blogspot.com/
behad gahan rachana bahut kuch kah gayi
जवाब देंहटाएंbahin ji apki yah kawita dil ki gahraeeyon tk chhoo gayi hai.
जवाब देंहटाएंपहली बार आपके ब्लॉग पर आई और बेहतरीन कवितायेँ पढने को मिलीं..
जवाब देंहटाएं.. Uproqt kavita padhne par kuch aur kah sakun iss laayak main nahi hun..
जवाब देंहटाएंAapko evam apki lekhni ki mera Naman!!