बच्चे और प्रधानमन्त्री : साधारण से असाधारण तक : कविता वाचक्नवी
आजकल प्रत्येक समझदार व्यक्ति इस बात से चिन्तित है कि समाज की भावी पीढ़ी सही मार्ग पर कैसे चले, उसका सही निर्माण कैसे हो, उसे अच्छे संस्कार कैसे मिलें, वह अधिक सामाजिक कैसे हो, वह अधिक मानवीय व अधिक योग्य कैसे हो। जो लोग स्वयं माता-पिता बन चुके हैं वे तो और भी अधिक चिन्तित रहते हैं और पैसा खर्च कर-कर कर जाने सुबह से रात तक अपने बच्चों को क्या-क्या सिखाने के लिए यहाँ से वहाँ भेजते हैं या ले जाते हैं। प्रत्येक सचेत ही नहीं, बल्कि बुरे-से-बुरे व्यक्ति भी माता-पिता बनने पर अपनी सन्तान को एक अच्छा, बेहतर व भला नागरिक बनाना चाहते हैं (यह बात दीगर है कि वे इसमें अपनी कमियों या अपनी असमर्थताओं के कारण कई बार सफल नहीं होते)।
हमारे समय में भी, जब हम छोटे-छोटे थे तो हमारे व हमारे साथियों के माता-पिता हमें ऐसी प्रत्येक जगह ले जाते थे, दिखाते थे, समझाते थे, पढ़ाते थे, जहाँ/जिस से कुछ भी अच्छा हो रहा हो और कोई भी अच्छा संस्कार मिलता हो, या जिस से हम में योग्यता, आत्मविश्वास, सद्गुण, गौरव की भावना अथवा प्रेरणा मिलती हो /बढ़ती हो। उस समय भले हमें अच्छा लगता हो या न लगता हो, किन्तु अब बड़े होने पर उनका मूल्य पता चला है कि उन घटनाओं ने हमारे निर्माण में कितनी महती भूमिका निभाई है और आज यदि हम साधारण से थोड़ा भी कुछ विशेष हैं तो उन्हीं सब के कारण।
फिर धीरे-धीरे जैसे-जैसे टीवी आया, बच्चों और परिवार का समाज से व सत् + संग (अच्छे लोगों की संगत) आदि सब से नाता टूट गया। रही-सही कसर कंप्यूटर ने पूरी कर दी कि बच्चे अपने माता-पिता तक की नहीं सुनते जब वे कंप्यूटर पर किसी खेल में लगे होते हों। बच्चों पर उनके माता-पिता का ही बस नहीं चलता। भारतीय भाषा समाजों की स्थिति तो और भी खराब है क्योंकि हमने नेट पर उनके लिए कोई विकल्प ही उपलब्ध नहीं करवाए। अतः ले-दे कर बच्चे नेट पर गलत-सलत चीजों में समय बर्बाद करते रहते हैं और माता-पिता अवश से इस प्रतीक्षा में रहते हैं कि काश कोई हमारे बच्चों को ऐसा मिल जाए जो उन्हें कुछ समझा सके, सिखा सके या जिस से वे कोई सही बात समझ-सीख सकें।
ऐसे में देश के प्रधानमन्त्री बच्चों से एक सम्वाद स्थापित करना चाहते हैं, तो यह प्रत्येक माता-पिता के लिए एक अवसर है कि इस घटना से उनके बच्चे को किसी प्रेरक अनुभव की संभावना है। राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आज़ाद ने भी युवा पीढ़ी से संवाद स्थापित किया था, वे स्वयं उन्हें पढ़ाने का उदाहरण बने। मोदी आज युवा से भी आगे जाकर बालकों और किशोरों को कुछ उद्बोधन देना चाहते हैं तो यह माता-पिता के लिए एक हितकारी अवसर है, किसी भी माता-पिता को इसमें आपत्ति नहीं हो सकती। पर देश को बर्बाद करने वाले राजनीति के खिलाड़ियों की तो असली रुचि सदा से इस देश की भावी पीढ़ी का विनाश करने में रही है। इसलिए उन्हें डर लग रहा है कि देश की भावी पीढ़ी कहीं देशभक्त प्रधानमन्त्री से देशभक्ति का पाठ न पढ़ ले। अगर देशभक्ति का पाठ पढ़ लिया तो गंदी राजनीति करने वालों की दाल नहीं गलने देंगे ये बच्चे युवा होने पर। वैसे भी जिसने अपनी ही सन्तान पर कभी ध्यान नहीं दिया और मतिमन्द सन्तान बनाई, उस से देश के बच्चों का यह हित देखा नहीं जा रहा। इसलिए इसमें भी राजनीति के पाँसे फेंक रहे हैं। माता-पिता से चाहते हैं कि वे अपनी ही सन्तान के दुश्मन हो जाएँ। एक सुअवसर को खो दें। कैसे-कैसे प्रपंची लोग भरे पड़े हैं !!
सच तो यह है कि कोई भी समझदार और जिम्मेदार माता-पिता इस अवसर का लाभ लेने से अपनी सन्तान को वंचित नहीं करना चाहेगा व न ही वंचित रहना चाहिए।
bachcho se samvad behtar disha ki or ek kadam hai
जवाब देंहटाएंजितने ज्यादा पहरे होंगे बच्चे उतने ही उत्सुक होंगे। यह देश का सौभाग्य है कि हमें ऐसे प्रेरणा देने वाले प्रधानमंत्री मिले हैं, इनका लाभ जितना मिल जाए उतना लेना चाहिए। हमें तो स्वयं को लगता है कि उनके प्रत्येक भाषण को ध्यान से सुनं और आत्मसात करें। बच्चाें में बहुत उत्साह है, ये राजनीतिज्ञों के रोकने से नहीं रूकेंगे, अब आशा बन गयी है।
जवाब देंहटाएंजिस पर विश्वास हो और जिसके लिए मन में सम्मान हो उसकी बात को सुनना व गुनना देश के भावी नागरिकों के सोच को सकारात्मक दिशा ही देगा ,अब तक के नेताओं का आचरण जैसा रहा वैसी भावना उनके प्रति रही ,और ,अधिकतर दृष्टि धुँधलाती रही .अब अगर कोई नई पीढ़ी की आँखों में रोशनी जगाना चाहता है तो व्यर्थ के आक्षेप क्यों ?
जवाब देंहटाएंउम्दा पंक्तियाँ।।।
जवाब देंहटाएं"जिसने अपनी ही संतान पर कभी ध्यान नही दिया और मति-मन्द संतान बनायीं, उससे देश के बच्चो का यह हित देखा नही जा रहा है"