अहिंसा तथा हिंसा : डॉ. कविता वाचक्नवी
अहिंसा क्या है, जानने से पहले जानना होगा कि हिंसा क्या है। क्योंकि, 'अहिंसा' स्वतन्त्र शब्द नहीं, अपितु 'हिंसा' का निषेधात्मक शब्द ही है। आगे बढ़ें, उस से पूर्व बलपूर्वक कहना अनिवार्य है कि समाज में सभी को कम-से कम यह अवश्य समझना चाहिए कि सर्वाधिक हिंसक समाजों को, आतंकवादियों को सर्प्रथम 'अहिंसा' पढ़ाई जानी चाहिए।
जो समाज आत्मरक्षा तक के लिए समर्थ नहीं, या उद्यत नहीं, या उग्र नहीं, या तत्पर नहीं, उसे या उन लोगों को आत्मरक्षा के लिए समर्थ होने या युद्धक होने का निषेध कर, निष्क्रिय करना, अहिंसा नहीं, अपितु हिंसा है ; क्योंकि ऐसा कर हम उन्हें मारे जाने के लिए उकसा रहे होते हैं। और ठीक वही अपराध कर रहे होते हैं, जिस अपराध का दण्ड आत्महत्या के लिए उत्प्रेरित करने के फलस्वरूप दिया जाता है।
वैसे अहिंसा का नाम लेने वालों को अहिंसा का वास्तविक अर्थ नहीं पता होता, वे उसे किसी शारीरिक क्रिया तक सीमित मानते हैं।
वस्तुतः हिंसा का वास्तविक अर्थ है - वैर भाव से प्रेरित हो मन, वचन, या कर्म से कुछ भी करना। और इस से भी बढ़ कर यह जानना आवश्यक है कि हिंसा / अहिंसा केवल मनुष्य के प्रति ही की जा सकने वाली क्रिया नहीं है। पशुओं, प्राणियों, वनस्पतियों, संस्कृतियों, विचारों, सुखों, इतिहास, कलाओं आदि किसी को भी दु:ख, क्षय, या हानि पहुँचना, छीनना आदि हिंसा हैं।
इसलिए अहिंसा की आड़ में अपने मनचाहे लाभ / स्वार्थ की इच्छा की पूर्ति व्यापक हिंसक मनोभाव व व्यवहार है।
अहिंसा शब्द देने वाले ऋषियों की बात के वास्तविक अर्थ को छोड़, अपने मनचाहे अर्थ में उसे बताना-कहना, बड़ा स्वार्थ और विष है, हिंसक व्यवहार व ही सके क्रिया है।
सेना का पराक्रम, राम की शक्ति पूजा या कृष्ण, चाणक्य की कूटनीति की परम्परा आदि हिंसा नहीं हैं।
अहिंसा का नाम लेकर अपनी जीभ के स्वाद के लिए पशुओं का वध करना विश्व की सबसे बड़ी, व्यापक व क्रूर हिंसा है। तत्पश्चात् आतंकवाद व हिंसक प्रजातियों का मज़हबी उन्माद व तलवार का शासन या गैस चैम्बर, और उस से भी बढ़कर हिंसा के उदाहरण जानने हों तो वर्ष 2017 में प्रो. स्टीफन कोटकिन्स द्वारा 'वॉल स्ट्रीट जरनल' में उनका शोध पढ़ें।
साम्राज्य के विस्तार या मज़हबी उन्माद ने विश्वमानव का जो क्षय किया है, उसे कभी स्वीकार न करना अहिंसा ही है क्योंकि स्वीकार न करने वाला ही हिंसक का असमर्थन कर रहा होता है। हमें हिंसक की हिंसा का निषेध करने में सक्षम बनना होगा, ताकि हिंसा समाप्त हो सके।
भारतीय वैदिक समाज ने जिस अहिंसा की संकल्पना दी, वह निर्वैरता व अकारण किसी भी प्राणी या पदार्थ से छल या संघात / संहार न करना है।
अपनी जीभ के स्वाद की सन्तुष्टि हेतु किये गए पशु वध में जो व्यक्ति भागीदार कभी न बना हो, वह आगे आए और अहिंसा का उदाहरण प्रस्तुत कर अगले चरण छल, कपट, वैर, आहत करना आदि की ओर बढ़ने के उपायों पर विचार करे। सब से सरल उपाय है, वैदिक ऋषियों का स्वाध्याय और तदनुरूप क्रियात्मक जीवन शैली।
अलमतिविस्तरेण !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी प्रतिक्रियाएँ मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं।
अग्रिम आभार जैसे शब्द कहकर भी आपकी सदाशयता का मूल्यांकन नहीं कर सकती।
आपकी इन प्रतिक्रियाओं की सार्थकता बनी रहे कृपया इसका ध्यान रखें।