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बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

स्त्रीविमर्श स्त्री को शोषण का अधिकार देने/दिलवाने का अभियान नहीं है : कविता वाचक्नवी

स्त्रीविमर्श स्त्री को शोषण का अधिकार देने/दिलवाने का अभियान नहीं है : कविता वाचक्नवी


कुछ मित्र/पाठकों ने सन्देश भेज पूछा है कि मैं तो सदा से स्त्री व स्त्रीविमर्श सम्बन्धी लेखन व कार्यों के प्रति प्रतिबद्ध/ पैरोकार रही हूँ, फिर १२ फरवरी के अपने लेख में "दूसरों के जीवन में काँटे बोने और टीवी देखने के अतिरिक्त कुछ नहीं करतीं" जैसी स्त्री-विरुद्ध टिप्पणी कैसे लिख गयी।  


Image result for women empowerment paintingsतो प्रिय पाठको / मित्रो ! आपको स्त्री-विमर्श का आशय, अभिप्राय और उद्देश्य इत्यादि समझना बहुत अनिवार्य है। मेरा स्त्री-विमर्श स्त्री को शोषण का अधिकार देने/दिलवाने का अभियान नहीं है; और सिद्धान्ततः भी स्त्रीविमर्श इस अवधारणा पर नहीं टिका। स्त्री-विमर्श और स्त्री-सशक्तीकरण मूलतः शोषित स्त्री को शोषण से मुक्त करवा उसे सबल बनाने व लैंगिक असमानता को दूर कर समानता का अधिकार दिलवाने का अभियान हैं ताकि वे भी समाज की उन्नति में बराबर की सहभागी हो सकें; न कि उसे समाज के किसी अन्य वर्ग के शोषण का अधिकार दिलवाने का। जो लोग स्त्री-विमर्श का उपयोग इसके विपरीत अथवा इतर अर्थों में करते हैं वे मूलतः अपनी स्वार्थसिद्धि और अज्ञानता का ही परिचय देते हैं। यदि स्त्री का सशक्तीकरण दूसरों के शोषण हेतु है तो फिर उनमें और समाज के दूसरों स्त्री-शोषकों में अन्तर ही क्या रह गया। ऐसे में स्त्री-विमर्श के हम जैसे पैरोकारों का दायित्व समाज को ऐसी शोषक स्त्री के शोषण से मुक्ति दिलवाने का भी हो जाता है। 


जिस प्रकार कोई न्यायालय किसी अपराधी को इसलिए क्षमा या दया नहीं दे सकता कि उसके अपराधी बनने के मूल में अमुक-अमुक व्यक्ति और अमुक-अमुक घटना का हाथ है तो परिस्थितिवश वह अपराधी बन गया, अतः उसे क्षमा कर दिया जाए ! न ! कदापि नहीं ! ऐसे में तो उन्हें दोहरा दण्ड मिलना चाहिए कि एक तो स्वयं अपराध किया और साथ ही दूसरों को अपराधी बनाने वाला घटनाक्रम और परिस्थितियाँ रचीं। इसी प्रकार भले ही स्त्री हो या पुरुष, वह भले ही किन परिस्थितियों में शोषण का अपराध करे, उसे उसके अपराध के लिए दोषी ठहराया जाना होगा। किसी को इसलिए क्षमा नहीं किया जा सकता कि वह स्त्री है या पुरुष। अपराध, दण्ड और क्षमा में किसी भी व्यक्ति को रिज़र्वेशन नहीं मिलना चाहिए। अन्यथा समाज का ढाँचा चरमरा जाएगा और असन्तुलन, असमानता व अत्याचार बढ़ेगा। इसलिए स्त्री-सशक्तीकरण स्त्रियों को दूसरों के प्रति दुर्व्यवहार, छल, कपट, प्रपञ्च, शोषण और अत्याचार करने का लाईसेन्स देने / दिलवाने का अभियान नहीं है। जो इसका उपयोग इन अर्थों में करते हैं, वे अपराधी हैं, भर्त्सना-योग्य हैं और स्त्री-मुक्ति के प्रत्येक अभियान को उनकी निन्दा व विरोध करना चाहिए। 


जो पुरुष स्त्री-विमर्श की आड़ में अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं, उनको उठा बाहर फेंकना चाहिए और जो स्त्रियाँ घरों में या बाहर अपने स्त्री होने का लाभ लेते हुए समाज के किसी भी वर्ग के विरुद्ध किसी भी प्रकार की धूर्तता, चालाकी, वितण्डा या लाभ उठाने की मनोवृत्ति दिखाती हैं या कार्य करती हैं, तो उनकी भी खबर ली जानी चाहिए और उनका किसी भी प्रकार समर्थन / सहयोग नहीं किया जाना चाहिए। स्त्री-सशक्तीकरण का अर्थ पुरुष का शोषण करना भी नहीं होता। यह शोषण का हथियार नहीं, अपितु आपकी आत्मरक्षा का उपाय और सामर्थ्य प्रदान करने का अभियान है, ताकि कोई आपकी अस्मिता पर आघात न करे ; किन्तु आप आत्मरक्षा के अतिरिक्त संहार और शोषण में इस हथियार को प्रयोग करने लगेंगी तो आपको भी उसी प्रकार धिक्कार मिलेगा जैसा आपका शोषण करने पर पुरुष को मिलता है ! 
- Kavita Vachaknavee





शुक्रवार, 6 मई 2016

मेरे चरणचिह्न काजल-सिक्त

मेरे चरणचिह्न काजल-सिक्त : कविता वाचक्नवी


मैं ही राष्ट्र हूँ, मैं ही भारत,
मैं ही लोकतन्त्र
मैं ही मैं काँग्रेस हूँ
और केवल एकमात्र मैं ही मैं समूचा राज-वंश भी।

मेरे ख़तरे में पड़ते ही राष्ट्र खतरे में
मेरे खतरे में ही आते ही लोकतन्त्र चिरनिद्रा में
मुझ पर ख़तरा आते ही काँग्रेस पर आक्रमण
मेरे रँगे हाथ पकड़े जाने की आशंका ही राज-वंश का अस्तित्व मिटाने की साजिश;

मेरा विस्तार अपरिमित है
मेरे रूप और महिमा अपार
देश को धू धू जलाने की युक्तियाँ अपरम्पार
वंश और परिवारियों समेत सबके
भूमिसमाधि ले चुके रहस्यों वाले महाप्रस्थान के बावजूद
मैं कालजयी हूँ रक्तजायों सहित,

मेरे डैने सर्वग्रासी हैं
मेरी छाया देश की जड़ों को गला देने वाली
वंश की देहरी पर मेरे चरणचिह्न काजल-सिक्त


मेरे जिह्वा-गह्वर के अतल में, हे 'नर-पुंगव' ! ब्रह्माण्ड घूमता है
घूम जाएगा तुम्हारा मस्तिष्क भी
घुमाने के खेल युगाब्द से मेरा ही एकाधिकार हैं

By #KavitaVachaknavee

(यह कविता नहीं है)

शनिवार, 1 मार्च 2014

ज्ञान का एक दुर्लभ खज़ाना ऑनलाईन : कविता वाचक्नवी

ज्ञान का एक दुर्लभ खज़ाना ऑनलाईन : कविता वाचक्नवी


पूर्व राष्ट्रपति ए.पी. जे. अब्दुल कलाम के अथक प्रयासों से प्रारम्भ की गई परियोजना Digital Library of India का मूर्त रूप आज भारतीय ऐतिहासिक पुस्तकों और पत्रिकाओं के एक ऐसे विशाल संग्रह का नाम बन चुका है, जिसमें आप एक बार जाने के पश्चात जाने कितने घंटे, दिन, माह और बरस बिताना पसंद करेंगे| यहाँ विभिन्न भाषाओं की दुर्लभ पुस्तकें और पत्रिकाएँ आपको मिल सकती हैं जो आप को किसी पुस्तकालय तक में धक्के खाने और भटकते खोजने पर भी संभवतः ना मिलें|


भाषा / वर्ष / विषय / अनुक्रम का चयन कर आप वहाँ डाऊनलोड के लिए उपलब्ध रीडर द्वारा इन पुस्तकों/ पत्रिकाओं को ऑनलाईन इनके मूल रूप में पढ़ सकते हैं|

लाखों पृष्ठों में समाहित यह एक ऐसा ऐतिहासिक संग्रह और कार्य है कि जाने आने वाली कितनी पीढियाँ इस से लाभान्वित और गौरवान्वित होंगी| पुनरपि अभी बहुत कार्य शेष है और निरंतर प्रगति पर है|

आप इस लिंक को अवश्य बुकमार्क कर लें व सहेज कर रख लें| नीचे इस परियोजना में सहायक और संलग्न संस्थाओं की सूची दी गई है -

Partners : India :
Coordination and Research Centre in India : Indian Institute of Science, Bangalore

Academic Institutions 
  • Anna University, Chennai, Tamil Nadu 
  • Arulmigu Kalasligam College of Engineering (AKCE), Srivilliputur, Madurai, Tamil Nadu 
  • Goa University, Goa 
  • Indian Institute of Astrophysics, Bangalore,Karnataka 
  • Indian Institute of Information Technology, Allahabad, Uttar Pradesh 
  • International Institute of Information Technology, Hyderabad, Andhra Pradesh 
  • Osmania University, Hyderabad 
  • Punjab Technical University, Punjab 
  • Shanmugha Art, Science, Technology & Research Academy, Tanjavur, Tamil Nadu 
  • University Of Hyderabad, Hyderabad 
  • University of Pune, Pune, Maharashtra 
Religious and Cultural Institutions 
  • Kanchi University, Kanchi, Tamil Nadu 
  • Poornapragna Vidyapeetha, Bangalore 
  • Salarjung Museum, Hyderabad 
  • Sringeri Mutt, Sringeri, Karnataka 
  • Tirumala Tirupati Devasthanams, Tirupati, Andhra Pradesh 
  • Tibetan Monasteries and Literature on Jainism
Government and Research Agencies 
  • Academy of Sanskrit Research , Melkote, Karnataka 
  • CDAC- Noida 
  • Indian Institute of Astrophysics, Bangalore,Karnataka 
  • Maharashtra Industrial Development Corporation (MIDC), Mumbai, Maharashtra 
  • Rashtrapathi Bhavan, New Delhi 
United States of America
  • Carnegie Mellon University
China 
  • Beijing University 
  • Chinese Academy of Science 
  • Fudan University 
  • Ministry of Education of China 
  • Nanjing University 
  • State Planning Commission of China 
  • Tsinghua University 
  • Zhejiang University 

इसके अतिरिक्त मैसूर विश्व विद्यालय ने अपना पूरा पुस्तकालय डिजिटलाईज़ करवा लिया हुआ है। 

हिन्दी पुस्तकों की दृष्टि से वर्धा विश्वविद्यालय का हिन्दी समय तो नवीन स्रोत है ही, इसके अतिरिक्त 'होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केन्द्र' भी पठनीय है। 

कुछ अन्य स्थल ये भी हैं - 

नेशनल लायब्रेरी नाम की इस राजकीय परियोजना को भी देखा जा सकता है - 


इस नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी लिंक को देखना भी प्रासंगिक होगा - 


NCERT की हिन्दी पुस्तकें भी ऑनलाईन उपलब्ध हैं - 


कई लोगों ने निजी तौर पर भी बहुत बढ़िया प्रयास किए हैं जिनमें यह प्रमुख है 'अपनी हिन्दी' - http://www.apnihindi.com/


और तो और, मोबाईल के लिए ऑनलाईन हिन्दी पुस्तकालय भी उपलब्ध है, जिसका उपयोग मैं यात्रा आदि में नियमित पढ़ने के लिए करती हूँ। एण्ड्ररॉयड के लिए यह एप्लीकेशन यहाँ उपलब्ध है - 

कुछ दुर्लभ हिन्दी पुस्तकें यहाँ भी -

मंगलवार, 6 अगस्त 2013

ऐतिहासिक 'चित्रपट' (साप्ताहिक) की दुर्लभ प्रति और मुखपृष्ठ पर 'हरिऔध'

ऐतिहासिक 'चित्रपट' (साप्ताहिक) की दुर्लभ प्रति और मुखपृष्ठ पर हरिऔध : कविता वाचक्नवी


आज एक दुर्लभ वस्तु हाथ लगी है। ' चित्रपट' पत्रिका का वर्ष 1934 नव-वर्षांक (वर्ष दो)। इसके मुखपृष्ठ पर कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' की रचना प्रकाशित है। 


यह अंक सम्पादक श्री ऋषभचरण जैन द्वारा समालोचनार्थ भेंट की गई हस्ताक्षरित प्रति है, जो Tübingen विश्वविद्यालय जर्मनी में संरक्षित है। यह अंक लगभग 310 पृष्ठों का है। 

कई रोचक तथ्य इस अंक को देखने से पता चलते हैं, जिनमें से एक यह कि वर्ष 1934 तक भी अपने देश का नाम विधिवत् 'भारतवर्ष' ही लिखा/कहा जाता था। इसे देख कर मुझे सुखदानुभूति हो रही है :) 


मुखपृष्ठ का चित्र देखें -


गुरुवार, 20 नवंबर 2008

मेरे गीत : मेरे स्वर

मेरे गीत : मेरे स्वर

आज सुनिए मेरी एक पुरानी रचना मेरे ही स्वर में| रेकोर्डिंग व ध्वनि संपादन का सारा श्रेय जाता है मेरे सबसे छोटे बेटे उद्गाता अनघ (UDGATA ANAGH) को, ..... अपने अति व्यस्त शेड्यूल से समय निकाल कर अंततः उसे यह काम करना पड़ा था|













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