मेरी एक शाम : ज़ावेद अख्तर जी, प्रसून जोशी व शबाना जी के साथ
- (डॉ.) कविता वाचक्नवी
अभी अभी एक गरिमापूर्ण आयोजन से लौटी हूँ |
प्रसून जोशी और ज़ावेद अख्तर जी को ३०/६/११ (आज) सायं ६.३० बजे `वातायन' द्वारा, लगभग ७०-८० लोगों की उपस्थिति में ब्रिटिश पार्लियामेंट के हाऊस ऑफ़ कॉमन्स में आयोजित एक प्रतिष्ठित समारोह में उनके काव्यलेखन के लिए पुरस्कृत किया गया |
इस अवसर पर प्रसून जोशी ने अपनी कुछ कविताओं का पाठ भी किया | एक गीत तरन्नुम में भी सुनाया जो सर्वाधिक मार्मिक था कि कैसे एक बेटी अपने पिता से विवाह के लिए मना करते हुए एक एक कर सुनार, व्यापारी और जाने किस किस से उसका विवाह न करवाने की प्रार्थना करती है, क्योंकि वह न हिसाबी किताबी है ... न सोने चाँदी की महिमा समझ सकती है ..... आदि आदि ; किन्तु अंत में कहती है कि मेरा ब्याह, बस, किसी लोहार से करवा देना बाबा ! जो मेरे जीवन की तमाम बेड़ियाँ काट सके |
मैंने इसके कुछ अंशों की वीडियो भी ली है जो फिर किसी दिन बाँटूँगी |
अख्तर साहब ने भी अपनी कई रचनाएँ सुनाईं | मुझे उनकी स्मृति पर दंग रह जाना पड़ा | मुक्त छंद की भी अपनी कितनी रचनाएँ उन्हें ज़ुबानी याद हैं | आश्चर्य हुआ | उपस्थितों के आग्रह पर कुछेक और रचनाएँ उन्हें सुनानी पडीं | `शतरंज' और `वक्त' ने खूब तालियाँ बटोरीं |
कविता की दृष्टि से अख्तर साहब का बिम्ब निर्माण अनूठा है और बेहद नाज़ुक व अमूर्त किन्तु सचल बिम्बविधान रचते हैं वे | लोक का संस्कार उनमें गहरे रचा पचा है | जीवनानुभव में रची पची भाषा उनकी काव्यात्मक होती है ; जबकि प्रसून के पास भी लोक है और बड़ा जीवंत है किन्तु ज़ावेद जी के अनुभव में बसे काल और प्रसून के अनुभव में बसे काल की अपनी अपनी अलग छवियाँ है अतः रचनाओं में लोक का कालिक अंतर स्पष्ट दिखाई देता है |
प्रसून की भाषा और कहन आम आदमी की भाषा से गहरे जुड़ते हैं | बिम्ब दैनंदिन जीवन ( जो अब नागरी चर्या में लगभग लुप्तप्राय है ) के छोटे छोटे अवसरों से उठाए हुए हैं और उन्हें बड़ी अर्थवत्ता प्रदान की गयी है | संवेदना बहुत गहरी है | प्रसून के भरोसे फ़िल्मी गीतों में कविता के बचे रहने की बड़ी आस ज़िंदा रहती है |
प्रसून की भाषा और कहन आम आदमी की भाषा से गहरे जुड़ते हैं | बिम्ब दैनंदिन जीवन ( जो अब नागरी चर्या में लगभग लुप्तप्राय है ) के छोटे छोटे अवसरों से उठाए हुए हैं और उन्हें बड़ी अर्थवत्ता प्रदान की गयी है | संवेदना बहुत गहरी है | प्रसून के भरोसे फ़िल्मी गीतों में कविता के बचे रहने की बड़ी आस ज़िंदा रहती है |
हाँ एक बात और ! फिर से पुष्टि हुई कि रचनाकार / लेखक दूसरे सलेब्रिटिज़ की तुलना में कुछ अधिक सहज होते हैं |
कार्यक्रम का एक रोचक पक्ष शबाना जी को अपने ब्लैकबेरी से ज़ावेद जी के फोटो खींचते देखना था |
कार्यक्रम का एक रोचक पक्ष शबाना जी को अपने ब्लैकबेरी से ज़ावेद जी के फोटो खींचते देखना था |
कार्यक्रम के उपरांत मैंने अनौपचारिक क्षणों के भी कई चित्र लिए | कुल लगभग ५०-६० चित्र व कुछेक वीडियोज़ हैं |
सभी तो नहीं यहाँ लगा रही, हाँ, उनमें से कुछेक ये रहे - (क्लिक कर के बड़े आकार में देखा जा सकता है ) ->
ध्यातव्य है कि लन्दन के नेहरु सेंटर एवं यू के हिंदी समिति के तत्वाधान में लोर्ड बैरोनैस फ्लैदर के संरक्षण में आज ३० जून सायं ब्रिटिश पार्लियामेंट के हाउस ऑव लॉर्ड्स के एक एतिहासिक कक्ष में `वातायन : पोएट्री ऑन साउथ बैंक ' के वार्षिक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया.
आयोजन में कवि और लेखक श्री प्रसून जोशी एवं श्री जावेद अख्तर को वातायन कविता सम्मान से सम्मानित किया गया. मुख्य अतिथि के रूप में अभिनेत्री शबाना आज़मी, लोर्ड देसाई तथा डॉ. मधुप मोहता की उपस्थिति ने कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की .
लेखक, संगीतकार और फिल्मकार डॉ. संगीता दत्ता के संचालन में संपन्न इस समारोह का शुभारम्भ रीना भारद्वाज (गायिका ‘यह रिश्ता’) द्वारा सरस्वती वंदना के गायन से हुआ.
लेखक, फिल्मकार नसरीन मुन्नी कबीर ने प्रसून जोशी के साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डाला. प्रसून के गीत ‘तारे जमीं पर’ का अंग्रेज़ी काव्यान्तरण कवयित्री, लेखक और फिल्मकार रुथ पडेल ने प्रस्तुत किया तो प्रसून ही के एक अन्य गीत ‘मेरी माँ ’ को कवयित्री/ लेखिका इंडिया रस्सल ने भाषान्तरित कर पढ़ा |
कार्यक्रम की अध्यक्षता कैम्ब्रिज विश्विद्यालय के पूर्व प्राध्यापक एवं लेखक डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने की तथा प्रस्तावना यू के हिंदी समिति के अध्यक्ष, `पुरवाई' और `प्रवासी टुडे' के संपादक डॉ. पद्मेश गुप्त ने प्रस्तुत की.
वातायन की संस्थापकाध्यक्ष और प्रवासी टुडे की प्रबंधसंपादक दिव्या माथुर ने अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया.
सभी चित्र मेरे कैमरे से. बिना अनुमति प्रयोग कर कॉपीराईट का उल्लंघन न करें |
अपडेट ( 9 दिसंबर 2011)
ऊपर प्रारम्भ में मैंने प्रसून जोशी की एक रचना का उल्लेख किया है जिसमें बेटी अपने पिता को संबोधित करती गाती है। उक्त गीत का पाठ उपलब्ध करवाने की बात कह कर मैं भूल गई थी किन्तु आज स्मरण आने पर वह गीत यथावत् प्रस्तुत कर रही हूँ। नीचे प्रसून जोशी द्वारा इसी कार्यक्रम में उस गीत का वीडियो भी है, जिसमें लगभग 8:30 से 10:56 तक इस गीत का सस्वर पाठ है।
बाबुल जिया मोरा घबराए, बिन बोले रहा न जाए।
बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो, मोहे सुनार के घर मत दीजो।
मोहे जेवर कभी न भाए।
बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो, मोहे व्यापारी के घर मत दीजो
मोहे धन दौलत न सुहाए।
बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो, मोहे राजा के घर न दीजो।
मोहे राज करना न आए।
बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो, मोहे लौहार के घर दे दीजो
जो मेरी जंजीरें पिघलाए।
बाबुल जिया मोरा घबराए।
कविताजी, बधाई एक अच्छी और यादगार शाम के लिए।
जवाब देंहटाएंएक यादगार भेट के संस्मरण और अवसर पर सुंदर चित्रों से अवगत कराने के लिए आभार। लोहार ज़ंजीरों को काट भी सकता है, मज़बूत ज़ंजीरे बना भी सकता है .... सावधान :)
जवाब देंहटाएंईमेल द्वारा प्राप्त सन्देश -
जवाब देंहटाएंकविता वाचक्नवी जी
खूबसूरत स्मृतियाँ और चित्र हम सब के साथ बाँटने के लिए आभार , अधिकतर साहित्यिक , सांस्कृतिक कार्यक्रम औपचारिकतायें मात्र होते हैं, आपके सार्थक संवेदनशील शब्दों को पढ़कर और चित्रों को देखकर लगा कि कार्यक्रम निश्चित ही जीवंत रहा होगा , ऐसे जीवंत कार्यक्रमों का हिस्सा बनना अच्छा और सार्थक लगता है वैसे आपकी कलम भी सशक्त शब्द बिम्ब बांधने के लिए प्रसिद्ध है
PREM JANMEJAI
EDITOR VYANGYA YATRA
SHEIKH SARAI - II
NEW DEALHI -110017
ईमेल द्वारा प्राप्त सन्देश -
जवाब देंहटाएंप्रिय कविता जी ,
समारोह की चित्रमय और शब्द-बिंबमय प्रस्तुति ने वहाँ स्वयं उपस्थित न हो पाने की कमी को पूरा कर दिया । सुंदर कुछ न कुछ बोलते हुए चित्र मन को छू गए ।
जावेद और प्रसून जोशी जैसे गीतकारों की दो पीढ़ियों को एक मंच पर इन चित्रों के माध्यम से देखा जाना भी अविस्मरणीय रहेगा ।
धन्यवाद !
Vashini Sharma
Agra-7 U.P
India
ईमेल द्वारा प्राप्त सन्देश -
जवाब देंहटाएंWah kavita ji... maaan gaye aapki speed ko.. salaam..
Padmesh
(LONDON)
ईमेल द्वारा प्राप्त सन्देश -
जवाब देंहटाएंKavita Ji
Mai samajta tha mai speedy gonzalez hoon leking aap ne kamaal kiya. I was standing next to you and doing the video...
Very nice thoughts and pictures.
Bakul Kumar (Dr)
ईमेल द्वारा प्राप्त सन्देश -
जवाब देंहटाएंसुंदर दृश्य... स्मरणीय भेंट... ये तो, सौ सुनार की तो एक लोहार की हो गई :)
चंद्र मौलेश्वर
पूरी रिपोर्ट पढ़ अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंयहाँ बाद में पहुँचा हूँ, सब्र ही नही हुआ...वहाँ चित्रों पर कमेंट दे आया।
जवाब देंहटाएंईमेल से प्राप्त सन्देश -
जवाब देंहटाएंarey waah, tumney to ham sab ko peechhe chhod diya, kya hi achchha likha hai,
share karney ke liye danyavad.
With all good wishes,
Divya Mathur FRSA
www.divyamathur.net
समारोह का विवरण पढते हुए मुझे लगता रहा कि मैं वहीं कहीं था, शब्दों के बहुत पास से गुजरते हुए कविता की गरिमा को खोजने में लगा था| आप में से किसी ने मुझे देखा नहीं | फुर्सत नहीं थी आपको, आपके साथियों को| न देखा, अच्छा ही हुआ, मेरे एकांत को बुरा लगता | कभी फिर आयोजन कीजिए, ज़रूर........ फिर आऊँगा |अभी तो आपको शुभकामनाएं ......
जवाब देंहटाएंअजित जी, चन्द्रमौलेश्वर जी, जनमेजय जी, वशिनी जी, पद्मेश जी, बकुल जी, दिव्या जी, प्रवीण जी, राजेश्वर जी तथा देवराज जी ! आप सभी की आशंसा ने बल दिया. अच्छा लगा कि एक छोटी सी टिप्पणी को आप सभी ने सराहा | स्नेह बनाए रखें|
जवाब देंहटाएं@ देवराज जी,
जवाब देंहटाएंअचम्भित हुई व हर्षित भी, यह देख कर कि आप को स्मरण रही, आप पधारे व अपने कुछ शब्द मेरी झोली में भी डालना उचित समझा. धनी हुई.
आप अपना एकांत बचाए रखना चाहते हैं, सो ही सुध नहीं आती हमारी. कितनी -कितनी बार कॉल किए. फरवरी मार्च में तो संभवतः ३०-४० बार. पुनः यहाँ से अप्रैल, मई, जून में. झक मार कर शर्मा जी से पूछा तो सूचना मिली कि आप कोलकाता में हैं, नं. बदल गया है.
न आपने, न उन्होंने सूचना देनी आवश्यक समझी. आपको तो, चलो एक बार को यह मान कर भरमा लेते हैं, कि नेट पर बहुधा नहीं रहते. परन्तु हैदराबाद वाले लोगों के व्यवहार से तो स्तब्ध ही हूँ. कुछ न ही कहा जाए तो बेहतर है. मानो तर्पण कर के अपने अपने जीवन में आगे बढ़ने वाले, लीन-तल्लीन लोग हैं वे. कहाँ किसी के लिए स्थान या फुर्सत होगी भला ?
शिकायती जीव हूँ !
badhai...achchhe aayojan men shamilhone ke liye chitr to milgaye,aayojan ki koi ''rapat' bhi mil jatee to ''sadbhavana darpan' ke august ank men le letaa.
जवाब देंहटाएंvaise aapne jitana diyaa, use bhi aapke aur javed ji ke chitr ke saath lagaya to ja sakata hai. baad men kuchh aur vistaar de sake to behatar hoga.
जवाब देंहटाएं@ गिरीश जी,
जवाब देंहटाएंशेष जानकारी मैं आपको ईमेल कर देती हूँ. धन्यवाद.
वाह! शानदार चित्र.
जवाब देंहटाएंवास्तव में आयोजन बहुत गरिमापूर्ण रहा होगा.
रोचक प्रस्तुति के लिए आभार.
जून में यू.के./यूरोप के टूर पर जाना हुआ,
चित्र देखकर याद ताजा हो गई.
आनन्द आया रिपोर्ट पढ़कर और तस्वीरें देखकर.
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जवाब देंहटाएंSamachar Padhkar Bahut Achchha laga. badhai sweekaren!
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