सोमवार, 24 दिसंबर 2012

स्त्री, यौन-हिंसा व समाज : कविता वाचक्नवी

स्त्री, यौन-हिंसा व समाज  : कविता वाचक्नवी  







बलात्कारों के विरुद्ध इतने हंगामे और विरोध के बीच भी गत सप्ताह-भर में कितने बलात्कार भारत में हुए हैं, इसका अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि प्रति २० मिनट पर एक स्त्री बलात्कार की शिकार होती है भारत में. यह केवल दर्ज अपराधों का आंकड़ा है. अतः वास्तव में यह दर क्या होगी, इसकी कल्पना से रोंगटे खड़े हो जाएँगे ३, ५ व ८ वर्ष की बच्ची से तो आगामी दिन ही बलात्कार की सूचना समाचारपत्रों में थी. 


इसी बीच इम्फाल में १८ दिसंबर को ही एक २२ वर्ष की अभिनेत्री व मॉडल Momoko को भरी भीड़ में से खींच कर उसके साथ यौनिक व्यभिचार के लिए ले जाया गया . इसके विरुद्ध सड़कों पर विरोध के लिए उतरी भीड़ पर पुलिस द्वारा चलाई गयी गोली से दूरदर्शन के एक पत्रकार मारे गए हैं.


इस बार की दिल्ली की यह दुर्घटना छोड़ दें तो इस से पूर्व जब-जब भी महिलाओं के पक्ष में कुछ लिखा तब -तब लोग (अधिकाँश पुरुष बिरादरी ) ताबड़तोड़ विरोध, धमकियाँ, अश्लील टिप्पणियाँ, गाली गलौज करने के लिए जुट जाते रहे हैं. यह हाल आम भारतीय का नहीं बल्कि बहुधा राजनेता, नामचीन लोग, और साहित्य के पहरुए तक महिलाओं के प्रति इतनी अश्लील भाषा, अश्लील व्यवहार, अश्लील लेखन, अश्लील मानसिकता व अश्लील दृष्टि के शिकार हैं कि घिन व शर्म आती है. 'फेसबुक' पर ही मेरे द्वारा गोहाटी वाली घटना का विरोध करने पर 'हेमंत शेष' की आपत्ति व अश्लीलता वाला प्रकरण भी अभी ताजा ही है. दूसरे अनेक ख्यातनामों के किस्से भी साहित्य के लोग जानते ही हैं कि अमुक अमुक की स्त्री के प्रति दृष्टि कैसी है, बातें कैसी व व्यवहार कैसा है. 


स्त्री घर में हो, बाजार में हो, कार्यालय में हो, विद्यालय / कॉलेज में हो, बस / गाड़ी में हो, दिन में हो, रात में हो, ब्याही हो, अनब्याही हो, अकेली हो, दुकेली हो ..... प्रत्येक स्थान, प्रत्येक स्थिति व प्रत्येक अवसर /अवस्था में उसके साथ हर आयु वर्ग का पुरुष छेड़ छाड़ से लेकर अश्लील हरकत तक करने में स्वतन्त्र होता है और स्त्री यह सब देखती - झेलती है. ऐसे लोग अपनी क्लीवता, तुच्छताओं, कुंठाओं व दुर्बलताओं के कारण स्त्री को मनुष्य तक होने का अधिकार न देकर घृणित कार्य करते हैं या उस पर शासन करने की हिंसक प्रवृत्ति के शिकार हैं। ऐसे लोग मानव सभ्यता पर कलंक हैं....


फिलहाल दिल्ली के इस बलात्कार व उसके विरोध में उठ खड़े हुए जनसमूह के शोर से आक्रान्त होकर भले ही कुछ लोग अभी देखादेखी या सामाजिकता व दिखावे के लिए स्त्री व उसकी अस्मिता की पक्षधरता में बयान दे रहे हों या स्वयं को शालीन सिद्ध करते हुए स्त्रीपक्षीय छवि गढ़ने में लगे हों...... किन्तु सत्य यही है कि अधिकाँश पुरुषवर्ग स्त्री को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता व उसे 'मनोरंजन व दैनिक उपयोग की वस्तु' के रूप में ही स्वीकार करता है. जब तक समाज के एक एक व्यक्ति का यह कुसंस्कार नहीं दूर होता तब तक स्त्री की दशा भारतीय व दक्षिण एशियाई समाज में कदापि सुधरने वाली नहीं है. सड़कों पर उतरा जनसमूह स्त्री के प्रति मर्यादा का एजेंडा लेकर उसकी पक्षधरता में वस्तुतः नहीं है, अपितु यह विरोध व आन्दोलन भारतीय जनता में भरे जनाक्रोश की अभिव्यक्ति अधिक है. इस जनाक्रोश को सही दिशा देने की आवश्यकता कुछ इस तरह है कि दंड का प्रावधान भी किया जाए और दूसरी और समाज के जन जन को स्त्री के प्रति नैतिक, पारिवारिक, मानवीय, सामाजिक उत्तरदायित्वों की दैनंदिन जीवन में आवश्यकता समझ में आए . अन्यथा स्त्री के विरुद्ध अपराधों का क्रम अपनी जड़ों से सुधरता नहीं दीखता. आमूलचूल परिवर्तन के लिए स्त्री के प्रति एक एक व्यक्ति का रवैया बदलना आवश्यक है. जबतक स्त्री घर परिवार में सही मान सम्मान की अधिकारिणी नहीं बन जाती तब तक समाज व खुले में उसके लिए मान सम्मान की  कल्पना वृथा है और अधूरी व दिखावटी रहेगी। 




14 टिप्‍पणियां:

  1. अक्षरशः सत्य है , क्या कहा जाए , स्त्री कहीं भी रहे किसी भी दशा में रहे, जब तक मौका नहीं है हमें जौहर दिखाने का तभी तक सुरक्षित है

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  2. सही है... जिसने भीड़ की आँखें देखी हैं वह भीड़ की प्रशंसा सुनकर खुश नहीं होता।

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  3. is purus pradhan bharatiya samaj se stri ke prati samman ki asha rakhna hi bekaar hain..

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  4. shat pratishat satya
    stri ki bhawnao ka dohan,sharirik mansik soshan ka koi bhi mouka nahi jane deta purush warg,.. suraksha kahin nahi hai,..:(

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  5. यथार्थ ही कहा आपने| पुरुष-सत्ता केंद्रित व्यवस्था के पूरी तरह निष्प्रभावी हुए बिना स्त्री को मानवी के रूप में स्वीकार किया जाना अति कठिन है| भारत की जो वर्त्तमान दशा ई, उसमें मूल्यहीनता की ओर तेज़ी से बढ़ना तथा प्राचीन परम्पराओं का नाम कीर्तन करते चले जाना-- ये दोनों प्रक्रियाएं एक साथ चल रही हैं| अक्सर तो प्राचीन का गुणानुवाद अपनी कुण्ठित मानसिकता को ढके रखने के लिए ही अधिक होता है|
    मणिपुर में स्थिति और भी उलझी हुई है| वहाँ के वर्त्तमान संकट में स्त्री-देह पर जातीय विद्वेष की राजनीति बड़ी खूबसूरती से खेली जा रही है|और अपराधी के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही इस लिए संभव नहीं हो पा रही है कि वह एक ऐसे संगठन का सदस्य है, जिस पर भारत सरकार के विशेष रूप से कृपालु होने की जन-चर्चा चल रही है|यह स्त्री के यौनिक-अपमान की घटना से कहीं अधिक स्त्री-देह के बहाने राजनैतिक तथा साम्राज्यवादी स्वार्थों के घिनौने खेल की दुर्घटना है|हमें सावधान होकर इसका विश्लेषण करना होगा|

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  6. परिवार और समाज के लोगों को संस्कारित होना होगा। नियम-कानून,प्रतिबन्ध बाह्य घटक हैं जो व्यवस्था के भाग हैं किंतु यह काफी नहीं है किसी सभ्य समाज के लिये। कल यह जानकर आश्चर्य हुआ कि अमेरिका में भारत स भी अधिक बलात्कार होते हैं ...जबकि वहाँ के समाज में मुक्त यौनसम्बन्धों के प्रति इतनी कठोर मानसिकता नहीं है। हमारे यहाँ यह पाप है फिर भी हम पाप करने से हिचकते नहीं। लखनऊ मंडल के समाज में उम्र के बन्धन से परे केवल पुरुष ही स्त्री के चरणस्पर्श करता है ...ऐसी परम्परा है। वृद्ध आदमी दो महीने की शिशु कन्या के भी चरणस्पर्श कर स्वयं को धन्य मानता है। मुझे लगता है कि ऐसी परम्परायें पूरे भारतीय समाज में सुस्थापित और प्रचलित होनी चाहिये। मुझे इस परम्परा पर गर्व है और मैं इसका पालन करता हूँ। मैंने अपने बेटे को भी प्रारम्भ से ही यह संस्कार दिया है।

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  7. aapke baato se asahmat hoon... ye duniya purush aur mahila dono se mil kar bani hai.. aur adhiktar purush aisa karte hain ye kattai sach nahi hai...

    haan durdasha mahilaon ka kab khatm hoga, ye aham vishay hai...

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  8. आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  9. कविता जी आपका लेख अपनी जगह ठीक है किंतु तमाम बातो के साथ हमे लगातार सह शिक्षा वाले विद्यालयो की माँग भी करनी होगी। जहाँ बच्चा लडकी और लडके मे भेद करने वाली भावना से हट कर एक रूप मे विकसित हो सके। ये रेपिस्ट ज्यादातर पिछडे हुए समाज के पुरुषवादी मानसिक सोच वाले समाज से आते हैं।जो बच्चे सह शिक्षा के अंतर्गत पढते हैं उनमे ऐसी भावना जन्म नही लेती या कि वह बच्चे अपने लडकी दोस्त का सम्मान करते हैं। मुझे लगता है कि सभी सरकारी विद्यालयो मे सह शिक्षा अनिवार्य कर देनी चाहिए। सामाजिक परिवर्तन का यह एक बडा उपाय मुझे समझ मे आता है।

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  10. A simple question: What does the women of this country want - Respect or Freedom. I know the answer is 'Both'. But respect comes with responsibilities and freedom is achieved by getting rid of fears. But concept of freedom is getting rid of society and social responsibilities. Concept of freedom today is getting rid of culture and socially binding norms. How will a society learn to respect women in this case? How will women themselves learn to protect themselves from the driving forces of lust? Are we prepared to either curb the celebrations of wine and women like new year, which has in effect, diluted pure Indian cucltures also OR we should purify these western festivals also with the power of spirituality, thereby eliminating entertainment through wine and women. If people of country are not ready to stand for the culture where women are worshipped, respect of higest order, then keep trying and learning.

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  11. जब तक पुरुष के संरक्षण में रहेगी कीमत चुकानी पड़ेगी.नारी को अपनी शक्ति और स्वाभिनमान जगाना बहुत आवश्यक है.नर चाहे जिस वर्ग का हो अपने स्तर पर नारी को मनोविलास का उपकरण मानता है. अपने ही समान एक व्यक्ति होने का सम्मान देने के उसमें संस्कार ही नहीं विकसित हुये.अपने लिये सारी छूटें लेकर स्त्री को नियंत्रित रखना अपना अधिकार समझता है.बालिका में शुरू से वर्जनाओं के स्थान पर संतुलित विकास एवं विचार और लड़कों में 'कुछ खास' होने की भावना से विरत करने की भी आवश्यकता है

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  12. बढ़िया सटीक ,सार्थक लेख ,नारी को जागना ही पढ़ेगा : इसी से मिलती
    नई पोस्ट : "जागो कुम्भ कर्णों" , "गांधारी के राज में नारी "
    '"सास भी कभी बहू थी ' ''http://kpk-vichar.blogspot.in, http://vicharanubhuti.blogspot.in

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