अनुभव ऐसा भी ..... : कविता वाचक्नवी
एक सप्ताह पहले केंब्रिज से रात में रेलगाड़ी में बैठते ही पाया कि सामने के कोने में सीट पर बैठी एक लड़की स्टेशन पर उतर गई । उतरते समय वह अपना 'ब्लॅकबरी' सीट पर भूल से छोड़ गई। मोबाईल था भी 'अनलॉक' तो मामला गंभीर था। थोड़ी देर प्रतीक्षा की ... पूरे डिब्बे में कोई और न था, इसलिए मेरे पति ने फोन उठा लिया,ताकि लंदन में स्टेशन पर उतर कर रेलवे विभाग के किसी अधिकारी को सौंपा जा सके। तभी 15 मिनट बाद उस मोबाईल पर 'mum calling' के साथ घंटी बजने लगी । मेरे पति ने कॉल लिया तो उधर से उसी लड़की की आवाज आई कि गलती से उसका मोबाईल कहीं गिर गया है। इन्होंने उसे बताया कि वह हमारे पास है। अतः अब या तो हम उसे रेलवे विभाग को सौंप दें अथवा जैसा वह चाहे वैसा कर दें। तब तय हुआ कि वह अपनी सुविधा से जब संभव होगा घर पर आकर ले जाएगी। हमने उसे अपने घर का पता, संपर्क नम्बर आदि आदि दे दिया।
आज उस महिला की माँ घर आई .... । कृतज्ञता के भार से विह्वल थी और बताती रही कि उसकी बेटी इस मोबाईल के खोने से अत्यंत घबराई हुई व चिंतित थी। असल में आधुनिक मोबाईल हमारे कंप्यूटर से अधिक सम्हालने की चीज होते हैं। धारक की सभी संबन्धित जानकारियाँ तो मोबाईल में होती ही हैं, साथ ही सभी तरह के खातों को संचालित करने का केंद्र भी मोबाईल ही होता है.... अति गोपनीय व संवेदनशील जानकारियाँ इस से खुल जाती हैं। अतः उसका व्यग्र व तनावग्रस्त होना स्वाभाविक था।
बार-बार कृतज्ञता प्रकट करती रही। ज़ोर देकर आभार स्वरूप कुछ धनराशि वह मेरी बेटी को देने का यत्न करती रही किन्तु बेटी ने कड़ाई से राशि लेने से मना कर दिया... तो वह महिला और भी भावुक हो उठी।
हमें तो अपार सुख मिला ही .... मुझे बेटी पर गर्व भी हुआ...॥ भारतीयों की जो छवि यहाँ के समाज में है उसे थोड़ा-सा सुधार सकने का यह एक नन्हा-सा प्रयास रहा। अपने मूल देश से बाहर रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति भले ही किसी भी देश का नागरिक बन जाए किन्तु वह एक प्रकार से अपने मूल देश का राजदूत/एम्बेसेडर होता है ...... इस बात का भान बना रहे तो संसार कितना मानवीय हो जाए।
फेस बुक पर भी मैंने इस पर टिप्पणी की थी । आप के और आप के पति के नेक व्यवहार की भूरिभूरि प़शंसा करता हूँ । आप जैसे लोगों पर हर भारतीय गर्व कर सकता है । ंंआप की बेटी नेभी एक उदाहरंण प्रस्तुत किया । उसे मेरा आशीर्वाद दीजिए । नव वर्ष के अनुभवों को लिखती रहिये ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा किया आपने... छोटी छोटी बातें भी आपके व्यक्तित्व को परिलक्षित करती हैं। लोग प्रभावित होते हैं।
जवाब देंहटाएंसच है, एक एक घटना बड़ा संदेश दे जाती हैं।
जवाब देंहटाएंयही तो संस्कारशीलता कहलाती है !
जवाब देंहटाएंयह तो हर एक मानव का सामाजिक दायित्त्व है !
जवाब देंहटाएंआप के इस वाकया में जो विदेशों में भी बाहर देश वालों के प्रति भेद या द्वेष की भावना व्याप्त है पता चला , और हो क्यों नहीं जब अपने देश के अन्दर ही भेद -भाव की मारम-मार है। लेकिन आपके द्वारा किया गया उपकार ये भारतियों की पहचान है और बहुत गर्व की बात है की आपने विदेश में इसे एक बार फिर प्रस्तुत किया।
जवाब देंहटाएंआधुनिक यंत्र उपयोगी तो हैं ही,लेकिन जाने-अनजाने में ये कभी-कभी हमारे लिए चिंता व तनाव का कारण भी बन जाते हैं.आपने व आपके परिवार के सदस्यों ने अति-प्रशंसनीय कार्य किया है.
जवाब देंहटाएंसाधुवाद.
जवाब देंहटाएंbhartiya samaj ki jo chavi videsho mai hai bah apne desh mai gum ho rahi hai
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