सोमवार, 15 सितंबर 2014

पीढ़ियाँ

पीढ़ियाँ


'नई दुनिया' (इन्दौर) के 7 सितम्बर 2014 के रविवासरीय 'तरंग' में प्रकाशित कविता, 'पीढ़ियाँ'



2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर शब्दों से आपने बचपन की यादो को जगाया हैं ,और एक कसक सी छोड दी हैं ,कि हम बड़े क्यों हो गए |

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  2. bachpan ko sabad chitro mai ubharti kavita kai liye dhanyabad,
    jab ham bacpan kai dino or chute huye lmho ko khojte hai tab rona hi aata hai

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