देश,जनादेश और केजरीवाल - कविता वाचक्नवी
जो व्यक्ति काश्मीर पाकिस्तान को देना चाहता है, जो देश के संविधान को पैर की जूती समझता है (कि विधानसभा भंग करने का आवेदन सौंपने के बाद अब पलटी मार रहा है), जो पदलोभ में अंधा है कि त्यागपत्र देने के बाद पुनः गद्दी की लालच में कल कॉंग्रेस से समर्थन माँगने गया था और संविधान व जनता के निर्णय को कुचल कर मुख्यमंत्री दुबारा होने की जुगत करता रहा, जो जनता द्वारा अस्वीकार कर दिए जाने के बाद छल से पुनः जनता पर शासन करना चाहता है, जिसके देशद्रोहिता के प्रमाण वीडियो में इसके साथियों ने स्वयं दिए हैं, उस व्यक्ति के प्रति अपनी आस्था रखने वाले अपने मित्रों से मैं खेद पूर्वक कहना चाहूँगी कि मुझे उनकी समझ व निष्पक्षता और विवेक पर संदेह होने लगे हैं।
इस व्यक्ति ने देश और संविधान के साथ तो भीषण गद्दारियाँ की ही हैं, जनता के साथ भी भयंकर छल किया है। मुझे सुदर्शन जी की 'हार की जीत' कहानी बार बार याद आती है। जनता के मन से भ्रष्टाचार हटाओ का विश्वास ही इस धूर्त ने समाप्त कर दिया।कानून को, जनता को और देश को और ईमान को अपनी जेब में रखी इकन्नी समझ रखा है इस व्यक्ति ने। प्रधानमंत्री तक को कानून के डायरे में लाने की बात करने वाले ने कानून का मज़ाक उड़ा रखा है। आज यदि वह जेल गया है तो यह कोई महानता या बलिदान नहीं अपितु देश की संवैधानिक प्रक्रिया है। संविधान के साथ खेलने का अधिकार किसी को नहीं। .... और कौन नहीं जानता कि जमानत को स्वयं ठुकरा कर इसने कोर्ट को जेल भेजे जाने को बाध्य किया है। जिसका परिवार दुबई में छुट्टियाँ मनाने जाता है, जो चुनाव सम्पन्न हो जाने के बाद वाराणसी से फ्लाईट लेकर दिल्ली आता है, जो प्रायोजित धन से भाड़े के कार्यकर्ता 25000 प्रतिमाह का भुगतान कर खरीदता है, उसके पास मामूली जमानतराशि भी नहीं है भला? यह नीतीश कुमार की तरह जनता की सहानुभूति लेने की नौटंकी है जो यह समझता है कि जनता इसे उसका बलिदान व त्याग समझेगी और उसके पक्ष में हो जाएगी। यदि यह इतना ही ईमानदार व जनता के प्रति प्रतिबद्ध होता तो स्वयं कहता कि जनता ने इस बार दिल्ली से एक भी आप प्रतिनिधि को न जिता कर जो जनादेश दिया है मैं उसका सम्मान करता हूँ। और स्वयं को इस कुर्सी की दौड़ से अलग ही रखूँगा। पर वह यह कभी नहीं कर सकता। यह एक तरह से जनादेश द्वारा बाहर का रास्ता दिखा दिए जाने के बावजूद जनता पर छल कपट और तिकड़म से शासन करने की मंशा के चलते अब खेला जा रहा नाटक है इसका कि संविधान का दुरुपयोग कर पुनः मुख्यमंत्री बन जाए।
मुझे आश्चर्य होता है उन बुद्धिजीवी मित्रों पर जो कॉंग्रेस से मोह भंग हो जाने पर अब भाजपा विरोधी होने की कारण मोदी जी का समर्थन न कर पाने की अपनी विवशता में इतना बंधे हैं कि उन्हें कजरी बाबू के काले कारनामों नजर ही नहीं आते। कजरी के अपने सभी साथी, यहाँ तक कि किरण बेदी और अन्ना जी जैसों ने उसे निष्कासित कर उसका साथ छोड़ दिया, उन पर तो भरोसा रखिए। या कजरीभक्ति में सच भी देखना नहीं चाहते ! वस्तुतः यह आप लोगों की आस्था के संकट की घड़ी है, कॉंग्रेस के बाद अब कजरी के अतिरिक्त कोई आधार ही नहीं बचा इसलिए कजरी को महान सिद्ध करना आपकी मजबूरी है। यही समझ आता है।
60 बरस से अधिक समय से साहित्य, पत्रकारिता, अध्यापन, राजनीति शिक्षा और अभिव्यक्ति के सभी माध्यमों पर कब्जा कर जनता और देश विदेश को छला गया, सच्चाई के गले घोंटे गए, जिसे चाहा हत्यारा, बर्बर और जाने शब्दकोश की किन किन गालियों से नवाजा गया, केवल और केवल कॉंग्रेस और देशद्रोहिता की राजनीति हुई है, हो रही है, भीषण और गंदी से गंदी राजनीति। हम चुप रहे। अब देश के ऐसे संक्रमण काल में भी यदि चुप रहेंगे और जनाधार का निर्माण करने में सहयोगी न बनेंगे तो अपने देशधर्म का निर्वाह न करने का अपराध करूँगी। इसलिए जनता को जिस भाषा और जिस लहजे में समझ आता है उसी भाषा और लहजे में अपना देशधर्म निभाना अनिवार्य है। निभाना चाहिए। निभा रही हूँ।
जिनकी विचारधारा चीन से और अरब देशों के पैसों द्वारा पोषित विचारधारा के हाथों गिरवी है, उन्हें मेरे देशधर्म के निर्वाह पर आपत्ति होना स्वाभाविक है क्योंकि उनकी आस्थाओं की जड़ें कहीं अन्यत्र हैं। मैंने कभी उनके यहाँ जाकर उनकी विचारधारा का गला घोटने का काम नहीं किया, ऐसी ही अपेक्षा मैं भी उनसे करती हूँ।
जिनकी आँखें न खुली हों, उनकी सहायतार्थ ये दो वीडियो -
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बहुत ही सटीक आलेख है
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