लन्दन : राजहंसों का जोड़ा, झील व हम / कविता वाचक्नवी
अपने जीवन व घर में गाय, मोर, तोता, खरगोश, मछलियाँ आदि पालने व उनका स्नेह सान्निध्य लेने के जाने कितने दुर्लभ संस्मरण हैं। इन प्राणियों में गाय, कुत्ता आदि जीव ऐसे हैं कि कइयों ने उन्हें पाला होगा और उनके संस्मरण होंगे। कुछ कम अन्य लोगों के तोता, मछलियों आदि के पालने की संस्मरण भी होंगे किन्तु बहुत कम लोगों के खरगोशों के शावक-जोड़े के संस्मरण होंगे और किन्हीं बेहद विरले लोगों के मोर के साथ। कुछ दिन पूर्व मैंने अपने पालतू मोर के संस्मरण लिखे थे।
में व अन्य भी अलग-अलग संस्मरणों के रूप में कई बार अपने घर से सटी झील और अपार शान्त प्राकृतिक सुषमा वाले वातावरण का उल्लेख करते हुए मैंने राजहंसों के जोड़ों व बतखों आदि के साथ अपने दैनिक नैकट्य का उल्लेख किया है, जिनकी जाने कई सौ रूपों में विविध छवियाँ मैंने अपने कैमरे में सुरक्षित की हैं और नेट पर भी डाली हैं।
इतना ही नहीं अपनी पालतू 'मौलि' तथा बगीचे में दिन-रात आ कर घूमने वाली लोमड़ी (कई बार दल-बल सहित भी) की छवियाँ और वीडियो भी बनाए - यहाँ क्लिक कर देखें
"लन्दन का हिमपात व मेरा कैमरा" तथा उसमें दिए लिंक्स व चित्रों में जिस झील के श्वेत सौन्दर्य व पक्षियों आदि की रूपरेखा सहेजी है, उस झील में रहने वाली बतखों व हंसों की ढेर सारी छवियाँ हृदय पटल पर भी अंकित हैं - यहाँ ।
सबसे विशेष बात यह है कि इस झील में दो-तीन प्रकार के हंसों के जोड़े हैं, जिनमें से सबसे विशेष हैं राजहंसों के दो जोड़े; जिनके विषय में गत दिनों मैंने लिखा था कि हंसिनी नवप्रसूता है और अपने नन्हें बाल-हंसों के साथ जोड़ा पानी में घूमता है। दो वर्ष पहले हंसिनी के आसन्न-प्रसवा और फिर बाल-हंसों के साथ जोड़े के कई चित्र लिए थे किन्तु वे सब पुराने चित्र बहुत ढूँढने पर भी अभी खोज नहीं पाई क्योंकि वे सब पुराने मोबाईल कैमरा में थे।
भारत में मैंने हंस देखना तो क्या, उसका उल्लेख-मात्र पढ़ा है, वह भी संस्कृत साहित्य में। नल-दमयन्ती कथा में राज-हंस की कुछ विशद भूमिका से परिचय भी वहीं हुआ था। किन्तु जीवन में कभी राजहंस मेरे नियमित साथी बन जाएँगे, इसकी कल्पना व अनुमान भी असंभव था। किन्तु इधर वर्ष-भर से राज-हंसों का यह जोड़ा मेरा प्रतिदिन का साथी है। मैं जैसे ही प्रतिदिन झील पर जा कर इनकी प्रतीक्षा में बैठती हूँ, यह जोड़ा मुझे देखते ही जाने कैसे बहुत दूर से पहचान कर तैरते-तैरते मेरे पास आ बैठता है।
बड़ी बहन सरीखी शन्नो दी' लंदन में लगभग 42 वर्ष से रह रही हैं और इस बीच उन्होंने भी जीवन में जाने कई सौ राजहंस यहाँ देखे हैं; किन्तु उनके लिए भी मेरे द्वारा बार-बार अपने वाले इन राजहंसों का यह उल्लेख अविश्वसनीय था। तो पहली बार मेरे यहाँ उनके आने का एक बड़ा उद्देश्य इन दृश्यों व अनुभूतियों को साक्षात् करना भी था।परसों ( 2 जुलाई को प्रातः वे यहाँ आईं तो उन्हें साथ लेकर लगभग अढ़ाई घंटे मैंने उन्हें निसर्ग के वे दृश्य भी दिखाए जिनके सान्निध्य में मेरा दिन-रात व्यतीत होता है।
प्रारम्भ में झील पर केवल ढेर सारी अलग-अलग नस्ल की बतख़ें ही थीं, किन्तु जब हम थोड़ा घूम कर फिर से झील के निकट आए तो बहुत दूरी पर झील के मध्य भाग में राज-हंसों का जोड़ा भी तैरता दीख गया। तब तो शन्नो दी' के आश्चर्य का पारावर न रहा, जब वह जोड़ा मुझे देखते ही मेरे संकेत पर तुरन्त ही हमारी ओर बढ़ने लगा और एकदम से किनारे पर हमारे हाथ से छू लेने की पहुँच में एकदम आ कर हमसे सट गया। शन्नो दी' तो एकदम किलक उठीं कि उन्होंने जीवन में पहली बार इतनी निकट से हंसों को देखा है। मैंने झटपट उनके कई चित्र लिए। इस बीच वे भी अपने कैमरे में मुझे व निसर्ग को कैद करती रहीं। उस पूरी परिक्रमा और वातावरण के कई सारे चित्र सहेजे गए ।
फिर वहाँ से हम लोग घर आए तो हमारी 'मौलि' भी शन्नो दी' के स्वागत के लिए तत्पर थी। हमने अपने बगीचे में गुलाबों की तीखी मीठी सुगन्ध, स्ट्राबरी, चेरी व पुदीने आदि के बूटों में भी देर तक सुखद समय बिताया। वह पूरा दिन हम लोगों का बतियाते और हँसते कैसे बीत गया पता ही न चला। शन्नो दी' को यों देर तक हँसते मुसकाते देखना अच्छा लगा। और हाँ, वे आते समय अपने साथ गुलाबजामुन ले कर आई थीं.... जिनकी मिठास ने उस दिन की मिठास को और बढ़ा दिया। अस्तु ! वह अविस्मरणीय दिन जाने कितने बरसों तक मन पर अंकित रहेगा।
झील पर लिए चित्र यहाँ संकलित हैं। ये कई अर्थों में दुर्लभ हैं, अविश्वसनीय व संग्रहणीय हैं। इन दृश्यों को देखने से बार-बार जीवनीशक्ति मिलती है। और लोग भी इन दुर्लभ क्षणों का आनंद ले सकें इसलिए वे सब चित्र यहाँ सहेज दिए हैं।
namaskar hans ki fhotografi pasand aai landan ki prakruti or bhart ki prakruti ak si hai
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारे दीखते हैं ये राजहंस, सुन्दर चित्रों के लिये आभार..
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर, राजहंस का जोड़ा और आप दोनों,
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