एक रोचक प्रश्नावली से गुजरते हुए
छोटे बेटे के साथ मस्ती के दुर्लभ क्षण / स्नैपशॉट में कैद (2010)
मित्रो, कल एक रोचक प्रश्नावली मेरे पास आई है, जिसमें भाषा, भारत व उस से जुड़ी चीजों पर कुछ प्रश्न किए गए हैं। मूलतः यह एक प्रकार का सर्वे है अतः एक ही प्रश्नावली कई लोगों को भेजी गई है। इसमें कुछ प्रश्न रोचक प्रतीत हुए। इन प्रश्नों के बहाने मुझे अपने दिल की बात व कुछ चीजों को दो टूक सोचने और कहने का अवसर मिला। देखिए एक प्रश्न -
- What aspect about India do you miss the most? Please comment.
मेरा उत्तर -
" वहाँ संवाद के लिए मित्र और परिवारीजन होते हैं, जब भी चाहे बात कर ली और मिल आए। यहाँ से संबंधियों व मित्रों को मिलने जाना उतना सरल नहीं । उनसे उसी नियमितता से बात भी उतनी संभव नहीं। यहाँ रहने वाले अपनी रुचि के भारतीय लोग, जिन्हें मित्र बनाया जा सकता है अथवा जिनसे किन्हीं सार्थक मुद्दों पर स्वस्थ संवाद स्थापित किया जा सकता हो, वैसे लोग बहुत कम हैं; और जितने हैं भी, वे सब इतने आत्मकेंद्रित व औपचारिक कि उनसे आत्मीयता स्थापित नहीं हो सकती। मूलतः यहाँ भारतीय स्वभाषी लोग भी दिखावटी अधिक हैं, आत्मीय कम।
कुल मिलाकर यहाँ के भारतीय समाज के संदर्भ में आत्मीयता वह तत्व है जिसका सर्वाधिक अभाव है। यद्यपि भारत में भी सच्चे आत्मीय संबंध अत्यंत दुर्लभ होते जा रहे हैं किन्तु मेरे जैसे जिन लोगों के पास ऐसे कुछ संबंध अभी शेष हैं/थे, उनके लिए उनका आसपास न होना एक बड़े अभाव–सा लगता है। "
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Aman Kumar Tyagi, Parijat Pandey and 147 others like this.
Shikha Varshney ये मेरे भी दिल की बात ..और शायद हम जैसे अनगिनत प्रवासियों के भी.:(:(.
Monday at 18:16 · · 4
मुझे ऐसा लगता है कि पश्चिम का अनुकरण अन्य वस्तुओं के साथ संबंधों पर भी हो रहा है......बार-बार इसे orientalism की साजिश कहकर खारिज़ नहीं किया जा सकता है......।
Monday at 18:28 · · 2
जब ये प्रवासी भारत आते है तो हम इनके लिए क्या क्या नही करते आदर सम्मान सब कुछ सर पर बठाते है हम चाहे रुखा सुखा खाते हो पर प्रवासियों को होटल में और ओकात से उपर होकर सेवा करते है जब प्रवासी अपने यहाँ आने की बार बार जिद करते है और हम गलती से चले जाते है तो अपमान का नर्क देखने को मिलता है हमारा भारत जो सब कुछ सह रहा है
Monday at 18:32 · · 5
Kavita Vachaknavee Ssarte Haryana जी, आपको हुए कसैले अनुभवों पर खेद ही व्यक्त किया जा सकता है।
Monday at 18:42 · · 2
Ashutosh Kumar अब बहुत सारे लोग देश में रहते हुए भी प्रवासियों जैसा जीवन जी रहे हैं . प्रवास के लिए देश से क्या घर से भी बाहर जाना जरूरी नहीं रह गया .
Monday at 18:45 · · 4
या यूँ कहा जाए कि इज्जत भी पूँजी देखकर की जाती है.......वो हमारे औकात को मापने आते हैं और जब देख लेते हैं कि status में अंतर है तो हमें हमारी औकात दिखा देते हैं......
Monday at 18:45 · · 4
Shiv Kumar Singh कभी कभी मुझे भी लगता है कि भारतीय अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं, और वो जड़ या जड़ें क्या हैं इसका भावनात्मक वर्णन कविता जी ने अपने शब्दों से बखूबी किया है | मुझे लगता है कि इन सबका कारण कहीं न कहीं अंग्रेजीकरण से जरूर जुड़ा है, हालाँकि यह चर्चा का विषय हो सकता है | भाषा के साथ संस्कृति भी लोग अपनाते हैं | इसका सच्चा उदहारण मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव से देता हूँ, मेरे कुछ हिन्दी के छात्र जब तक मैं कक्षा में प्रवेश नहीं करता वो भी नहीं करते, मुझे वो लोग "सर" कहने की बजे "आचार्य जी" कहना पसंद करते हैं, ये दोनों बातें यूरोपीय संस्कृति के प्रतिकूल है | आँख मूँदकर उस संस्कृति की नक़ल (अच्छी बातों को छोड़कर), जिससे खुद वहाँ के लोग नाखुश हैं, भारत को सांस्कृतिक दिवालियेपन की ओर ले जा सकती हैं | अतः मौजूदा पीढ़ी के ऊपर ये दारोमदार रहेगा कि आनेवाला भारत "भारत" या "पश्चिमीकृत भारत" | अच्छी बात छेड़ने के लिए कविता जी को आभार !!! सभी सज्जनों को मेरा नमस्ते !!!
Monday at 19:05 · · 6
Pradeep Aggarwal WE HAVE FORGOTTEN INDIAN CULTURE & CIVILIZATION & ARE ARE ON THE WAY TO WEAR WETERN COLOUR THEREFORE WE ALL ARE MISSING BHARTIYTA......
Kavita Vachaknavee सम्बन्धों के दरकते जाने से शुरू हुए संवाद के बहाने कुछ प्रवासियों के प्रति दबे विक्षोभ को प्रकट होने का अवसर मिला है। यह खुल कर आना बहुत अच्छा है। किन्तु मूल समस्या ही यही है कि दोनों पक्षों के लोग संबंध को अपेक्षाओं के आधार पर बनाते हैं। अपकेक्षाएँ ही मूलतः संबंधहंता तत्व होती हैं क्योंकि यही अपेक्षाएँ अंततः स्वार्थसिद्धी में रूपांतरित हो जाती हैं।
Monday at 19:17 · · 3
@Kavita vachaknavee डा.साहिबा जी,
सत्यता के धरातल पे खड़े हो कर जब हम देखते है तो ये बात साफ हो जाती है कि, लोगों मे आत्मियता का अभाव क्यों है....आज लोभ,कपट,स्वार्थ,धोखा,अश्लीलता,पाखंड,भृष्टाचार,कूटनीत ि,दिखावा जैसी बीमारियों से दुनियाँ का कोई भी देश मतलब लोग अछूते नही है..।
Monday at 19:22 via Mobile · · 2
Kavita Verma bilkul sahi kaha aapne....halanki ab bharat me bhi ye durlabh hota ja raha hai lekin fir bhi sthiti behtar hai
Monday at 19:35 · · 1
राजू जयहिंद अमर शहीदों की क़ुरबानी .! .याद करे हर हिन्दुस्तानी .!!....जयहिंद .!!!!!
Monday at 19:36 · · 2
Deepak Shukla वैसे लोग बहुत कम हैं; और जितने हैं भी, वे सब इतने आत्मकेंद्रित व औपचारिक कि उनसे आत्मीयता स्थापित नहीं हो सकती....chaliye achha hai ki hum vishdesh nahin gaye....Bharat main safar main bhi log itni aatmeeyata dikhate hain jaise unka koi apna sath chal raha ho.....
Monday at 19:56 · · 3
Deepak Shukla bahut hi sarthak uttar diya hai aapne....aur aap se sahitya premi se yahi uttar apekshit bhi tha!!
Monday at 19:57 · · 1
Western culture ko dosh deker hum apne aap ko Mahaan saabit nahi nahi ker sakte.
Mai western ka pakshdhar nahi hoo lekin unke kuchh karya ne Pure Hindustan ko social freedom ka soch paida kiya hai.
Unhone sati pratha roka, unhone Manavadhikar ki alakh jagayee.
Etc..
Monday at 20:03 via Mobile · · 1
Abhay Kumar PRASANABALI UTTARDATAO SE UTTAR PRAPAP KARNE KA UTIYANT SARL PARANALI HE.
PAR DOS PURN PARANALI :
1-UKASAR PASANABALI UTTARDATAO KO DER SE PAPT HOTI HE
2-UTTARDATAOP KI ARUCHI
3-DOSPURN UTTARO KA PARPT HONA
4-ATIYANT SASATI VA SARL PAR BHAV RAHIT
5-SAMAY SE PRASANABALI KA PARPAT NA HO PANA ETC.
TIPPDI-YAH ATIYANT SASTI VA SARL PARANALI HE PAR DOS PURN
QULITY:SARAL VA SULABH PAR
BHAOPURN
Yesterday at 04:23 via Mobile ·
कविता जी , सत्य तो यह है की भारतीय समाज बुनियादी तौर पर आत्मीयता की डोर से बंधा है , आत्मीय सम्बन्ध , आत्मीय संवाद , इन सबके बिना भारत वासी रह ही नहीं सकता . और यही कारण है की भारत से बाहर जा कर जब उसे यह आत्मीयता नहीं मिलती तो उसका मन कचोटता है . धन की अंधी दौड़ में जो प्रवासी जीवन के इस जरूरी सोपान से भ्रमित हो गए हैं उन्हें एक समय के बाद इसी आत्मीयता की आवश्यकता होगी . बस इन्तजार कीजिये ............................
Yesterday at 08:00 · · 2
Piyush Pravah Aapne sahi kaha kavita ji... Yaha Bharat me bhi charvaak darshan teji se prasarit ho raha hai... dusre shabdon me..." saman istemal karne ki cheej hai aur insan pyar karne ki.. Par ab log samano se pyar kar rahe hain aur... insan ka istemal kar rahe hai..." dikkat to ye hai ki jab samajh aata hai, to der ho chuki rahti hai...
21 hours ago · · 1
Kavita Vachaknavee आत्मीयता का यह अभाव पश्चिम की देन नहीं है। यह मारामार और मानो कुछ बंट रहा हो, सब उसे बटोरने की हाथापाई में लगे हैं, वाली प्रवृत्ति पश्चिम से अधिक भारत में है और अपनी उसी मानसिकता को लोग बाहर भी पोस रहे हैं। भारत में अपने लोग बहुतेरे होते हैं तो उन हजारों लाखों में कोई 2-4 सच्चे आत्मीय किसी भाग्यशाली को मिल जाते हैं। किन्तु जहाँ वे हजारों लाखों की संख्या में नहीं है, उनमें एक भी मिलना दूभर है।
2 hours ago · · 5
Bhagat Singh Beniwal aap sahi kah rhe ho didi ji aaj har insan formalty krta h aapko har nukar pr formalty dikhai degi realty to koso dur ho gai si lagti h hmse dekha dekhi ki hor lgi hui h
about an hour ago · · 1
Kavita Vachaknavee Sampat Devi Murarka जी, आपने सेल्सियस और डिग्री के चिह्न को टाईप करने की विधि मुझसे पूछी थी। तो उसके लिए आप अपने कीबोर्ड पर alt+0176 यह टाईप करें। वह चिह्न बन जाएगा।
मेरा अनुभव अलग है में जिस आत्मीयता से लोगों या अपनों को मान आदर देता हूँ में उम्मीद भी करने लग जाता हूँ की वो भी इसी रूप अपनापन दिखाए अगर अपनापन दिखा नही सकते कम से कम मुर्ख न समझे रिश्ता कोई बोझ नही होता बोझ बन जाता है तो उसको हम नकली मुस्कराहट से कितने दिन संभल सकते है कितनी ही महिलाये हमारे पंजाब में है जिनकी शादी हो चुकी है पर सुहागरात के बाद कोई लेने नही आया आज भी उसी के नाम का क्र्वाचोउट मना रही है इसके लिए वो कितनी दोषी है हम जानते है अन आर आई केवल मजे लेने के लिए आते है और लेकर चले जाते है
about an hour ago · · 1
Kavita Vachaknavee Ssarte Haryana मैं चीजों को जनरलाईज़ करने के पक्ष में नहीं हूँ। यह ठीक है कि अधिकांश लोग भौतिकवादी और स्वार्थी हैं किन्तु जैसे उन सब की भीड़ में आप अपने को अलग मानते हैं, उसी तरह विदेशों में बसे लोगों में भी कुछ अपवाद हैं। इनमें अधिकांश लोग पैसे या सुविधाओं की चकाचौध के लिए ही वहाँ गए हैं और उसी को जीवन का अंतिम लक्ष्य मानते हैं, ऐसे में उनकी मानसिकता ही यही होती है। यही बात तो मैं कहना चाह रही थी और इसी से त्रस्त रहती हूँ, इसी कारण कोई आत्मीय नहीं मिलने का दु;ख और अभाव खलता है । फिर भी मैं जोड़ना चाहूँगी कि अपवाद सब जगह होते हैं। हमें एक ही लाठी से सबको नहीं हांकना चाहिए।
Aman Kumar Tyagi यद्यपि भारत में भी सच्चे आत्मीय संबंध अत्यंत दुर्लभ होते जा रहे हैं, yah sach hai
46 minutes ago · · 1
कविता जी,
जवाब देंहटाएंएकदम सही बात अपने कही है, जहाँ जैसी संस्कृति में लोग पहुँच जाते हें वहीं के रंग में रंग जाते हें. विदेशों में रहकर हम अपने लोगों को इसी लिए बहुत मिस करते हें. जब कोई अपना मिल जाता है तो भले ही वह कोई न सही अगर अपनी माटी से जुड़ा है तो वह सुगंध तो मिलती ही है अपनापन भी छलकता हुआ दिखता है.
भला ऐसा जहाँ वहाँ कहाँ मिलेगा..
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है कि आज का ‘आर्थिक परिदृश्य’ समाज को ज्यादा प्रभावित कर रहा है। उपभोक्तावादी संस्कृति के बढ़्ते दबाव में व्यक्ति का जीवन धन कमाने और उसे खर्च करने में ही इस कदर उलझ गया है कि बाकी सांस्कृतिक गतिविधियाँ नेपथ्य में चली गयी हैं। अब मनुष्यों के आपसी रिश्ते आर्थिक आधार पर परिभाषित हो रहे हैं। हमारा व्यवहार हमारी आर्थिक जरूरतों और क्षमताओं के अनुसार ही रूपायित हो रहा है। आत्मीयता कहाँ से आयेगी?
जवाब देंहटाएंapka kahna bilkul sahi he.swarth.agge nikalne ki lalak .sab kuch ekatha karlene ke nakamyab irade .
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