16 मई के अंक में `प्रवासी दुनिया' में "डॉ. कविता वाचक्नवी की कविताएँ" शीर्षक से मेरी 5 कविताएँ (`रक्त नीला', `अभ्यास', `अश्रू', `जंगल', `रूमालों पर' ) प्रकाशित हुई हैं।
पत्रिका व पत्रिका परिवार को आभार सहित वागर्थ के साथियों, शुभचिंतकों व पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं वे कविताएँ। आशा है सदा की भांति इन कविताओं को भी आपका दुलार मिलेगा।
मेरी 5 कविताएँ
(`रक्त नीला', `अभ्यास', `अश्रू', `जंगल', `रूमालों पर' )
- (डॉ.) कविता वाचक्नवी
1)
रक्त नीला ऊँगलियों ने अभी-अभी ही तो
बुनी थी
घास की एक अंगूठी
ऊँगली के आस-पास
कि दिन
हवा की हथेली पर
धूप रख गया,
भीड़ अपने रास्ते नापती
अंधेरे की पगडंडियाँ बनाती
चली जाती है ,
मिट्टी के ऊपर आई
पेड़ की जड़ों की नसें
बहुत बूढ़ी हो गई लगती हैं ,
पहाड़ तक
खाली हैं पठार,
पंखों को पीठ के पीछे मिलाती
सर्राती चिड़िया
नदी किनारे लुढ़की गागर पर बैठ
गाती है बार-बार
एक कोई गीत
आकाश दोहराता है उसे
और पोर
समझ जाते हैं
कलम का तो
रक्त तक
नीला होता है ।
-------------------------
2)
अभ्यास
भोर का
चिड़ियों की चह्-चह् का
जिन्हें अभ्यास हो
रात्रि का निर्जन अकेलापन
उन्हें
कैसे रुचे ?
भोर का
चिड़ियों की चह्-चह् का
जिन्हें अभ्यास हो
रात्रि का निर्जन अकेलापन
उन्हें
कैसे रुचे ?
3)
अश्रु
इस चेहरे के अक्षर
गीले हैं, सूरज!
कितना सोखो
सूखे,
और चमकते हैं।
इस चेहरे के अक्षर
गीले हैं, सूरज!
कितना सोखो
सूखे,
और चमकते हैं।
------------------------------ -----------------
4)
जंगल
चीख़ को वनवास ही
केवल नहीं
वनचरों से
युद्ध भी तो
शेष हैं।
------------------------
रूमालों पर
हम रूमालों पर
कढ़े हैं
प्रीत के अक्षर,
कब तहा कर
रख चलो
किस जेब में
तुम,
कौन जाने ?
कौन जाने ?
------------------------------ ------------------------------ -------------
सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी कवितायें, सारी की सारी..
जवाब देंहटाएंकविताएँ बहुत अच्छी हैं, कविता जी. आप साबित करती हैं कि कम शब्दों में भी कितना कुछ सुंदर और सार्थक कहा जा सकता है. बहुत-बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंरसप्रद पंचामृत
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति...बधाई.
जवाब देंहटाएं