कल रात सोते सोते में लन्दन का मौसम एकदम बदल गया | लगता है, रात-भर बरखा हुई......
पर रात को तो लिखते हुए मैं देर तक जग ही रही थी, बिना आहट टिम टिम बुदकी-सी फुहार गिरी जान पड़ती है |
इसी ठण्ड और बूँदाबांदी में जूते - जैकेट चढ़ा कर सुबह के नियमित भ्रमण पर निकले | घर से सटी झील का चक्कर लगाया | चश्मे के कांच पर बाहर बूँदें लिपट लिपट गईं |
.... पर जब भीतर बरसात न हो तो इन की लिपटन सुहाती ही है | ....सो सुहाती रही | सारस, बतखें, बगुले अपनी धमाचौकड़ी छोड़ जाने कहाँ गुम थे आज |
फिशिंग वालों ने भी आज बहुधा अपने टेंट समेट लिए दिखाई पड़े | आधा घंटा तेज टहल कर लौटे तो जैकेट और जूते भीगे हैं |
सुई की नोक-सी अदृश्य बूँदे अभी भी गिर रही हैं |
संसार का जीवन विकट से विकट वातावरण में भी रुकता नहीं, फिर यह तो अभी शुरुआत है | ठण्ड अभी तो शुरू भी नहीं हुई | इसी महीने घड़ियाँ एक घंटा पीछे कर दी जाएँगी | तब ठण्ड की घोषित शुरुआत होगी |
समय हमारी पकड़ से दूर होते हुए भी हमारी मुट्ठी में कैसे कैद रहता है न ....
इत्ते दिन बाद फ़िर से आपको पढ़ना अच्छा लग रहा है। पहले किताब, फ़िर चर्चा और अब ये छोटा लेख। जय हो!
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपका लंदन ऋतुवर्णन !
जवाब देंहटाएंइतने दिन आप की गैर हाजरी अखऱती रही।
जवाब देंहटाएंहैदराबाद की जानलेवा वर्षा पर शायद लंदन की प्रातःकालीन शबनम ने भी आंसू बहाए और आपके चश्ने को नम कर गये। अच्छा संस्मरण। साथ में उस झील का चित्र होता तो उस नयनाभिराम दृश्य का लाभ हम भी उठाते।
जवाब देंहटाएंइस ब्लॉग पर पहली बार आई. बहुत सुखद लगा आपको पढना.
जवाब देंहटाएंआपने आस पास के वातावरण का बढ़िया वर्णन...
जवाब देंहटाएंआशा करता हूँ कि इस तरह डायरी यथासम्भव नियमित लिखी जाएगी.
जवाब देंहटाएंप्रतीक्षा रहेगी.........
अरे वाह! लन्दन का मौसम और उसपर आपकी यह दक्ष रिपोर्टिंग... वाकई यह आनन्द हमें खूब सुहाएगा। जारी रखिए... वैसे यह सब हमें ईर्ष्यालु बना देगा, इसका डर है।
जवाब देंहटाएं