लन्दन में कवि अशोक वाजपेयी : मेरे कैमरे से : कविता वाचक्नवी
गत दिनो कवि अशोक वाजपेयी ब्रिटेन आए थे। कैलाश बुधवार जी के आवास पर 3 मई को उनके सम्मान में आयोजित पारिवारिक गोष्ठी में बरसों बाद उनसे भेंट हुई..... ।
पहले सुरम्य बगीचे की धूप में हम सब बाहर बैठे रहे व पश्चात् शीत बढ़ने पर भीतर चले गए। मेज के दूसरी ओर ठीक मेरे सामने अशोक जी बैठे थे और उनके सिर के पीछे चमचमाता सूर्य था अतः चित्र लेने की दृष्टि से 'बैकलाईट' के कारण एकदम असंभव था चित्र लेना। किन्तु कुछ यत्न कर मैंने मोबाईल कैमरा से चित्र लिए भी और वे बहुत ही बढ़िया आए भी। आप भी देखें कि कैसे 'बैक लाईट' के बीच मैंने ये चित्र लिए।
भीतर जाने के लिए उठने पर अशोक जी से एक आवश्यक बात करने के सिलसिले में (वस्तुत: 11 वर्ष से चले आ रहे एक मुद्दे पर गलतफहमी के सन्दर्भ में ) उनके पास की कुर्सी पर ऐसी बैठी कि तेजेन्द्र जी के लिए 'आरक्षित' वह कुर्सी अंत तक उन्हें न मिल पाई क्योंकि कार्यक्रम के बीच में कुर्सियों की अदल-बदल व्यवधान डालती।
बाहर की गोष्ठी में अशोक जी ने अपने संस्मरण सुनाए और उस बहाने कला क्षेत्र के कई दिग्गजों के जीवन से परिचित करवाया । भीतर वाली गोष्ठी में अशोक जी ने अपने संकलन "कहीं कोई दरवाज़ा" से कई कविताएँ सुनाईं। कैलाश जी के परिवार के उस आत्मीय आतिथ्य का अपना अनूठा रंग रहा।
अशोक जी को तो यद्यपि उसी समय ये चित्र दिखा दिए थे, बाद में ईमेल भी कर दिए किन्तु नेट और सोशल मीडिया आदि पर लगा पाने का अवसर आज ही मिला है।
मुझे तो कैलाश बधवार जी के बारे में जिज्ञासा हो रही है। बीबीसी हिंदी सेवा के पहले भारतवंशी प्रमुख थे। तब मैं नियमित रेडियो पर उन्हें सुनता था। राजकपूर की मृत्यु के समय प्रसारित इनकी श्रद्धांजलि व उनके साथ इनका इंटरव्यू मुझे आज भी याद है। अब सेवा निवृत्त हो गये हैं, लंदन के स्थायी निवासी हैं। इनके साथ के ही ओंकारनाथ श्रीवास्तव जी शायद अब नहीं रहे। क्या शानदार काम था इन लोगों का।
जवाब देंहटाएंसभी चित्र बहुत बढ़िया हैं. सदा के लिये यादगार.
जवाब देंहटाएंसंवाद सुधा का भी लाभ करायें।
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