ब्रिटिश पार्लियामेण्ट पर : एक अनुभव : कविता वाचक्नवी
आज रात्रि जैसे ही ब्रिटिश पार्लियामेण्ट के 'हाऊस ऑफ लॉर्ड्स' से कार्यक्रम समाप्त कर बाहर निकली तो दाहिनी ओर भारी भीड़ लगी थी। पुलिसबलों ने सब ओर से उस भीड़ की घेराबंदी भी की हुई थी। किन्तु यहाँ पुलिस हाथ बाँधे मूकदर्शक की तरह शांति से केवल पंक्तिबद्ध खड़ी रहती है, तब तक, जब तक कि कोई अहिंसक घटना या बलप्रयोग आदि न हो। पुलिस आदि बलों को कतार बाँधे देख व प्रदर्शनकारियों को तरह-तरह की मुद्रा में व मुखौटे लगाए देख कर मैंने तुरंत कुछ चित्र ले लिए।
पचासों लोग वहाँ चित्र ले रहे थे। भीड़ न तो उग्र थी व न ही नारेबाजी थी, एकदम शांत व सड़कों पर लेटे-बैठे युवक युवतियाँ पर्याप्त उत्सुकता तो जगा ही रहे थे किन्तु 3 डिग्री सेल्सियस तापमान में रात के समय, जब पार्लियामेण्ट बंद हो चुकी है, यों जुटना, कुछ न समझ पड़ने वाली घटना थी।
हमें इस प्रदर्शन को चीर कर दूसरी ओर जाना था। इस प्रक्रिया में लगभग 15 मिनट मैं इस भीड़ के मध्य रही व इसका हिस्सा भी। धड़ाधड़ कई चित्र लिए। उत्सुकतावश एक अल्पवय के किशोर के पास गई और उस से पूछा कि यह विरोध-प्रदर्शन किसलिए हो रहा है ? उसने कहा 'फ़्रीडम' (मुक्ति) के लिए। मैंने फिर पूछा - 'किस से ?' उसने कहा - "सरकार से' मैंने अगला प्रश्न किया- किस चीज की मुक्ति; फ्रीडम ऑफ स्पीच, फ़्रीडम ऑफ इन्फ़ोर्मेश्न, सेल्फ फ़्रीडम, पोलिटिकल फ़्रीडम, फ़्रीडम ऑफ this & this or that.... मुक्ति के कई प्रकार हैं ... । वह छोटा-सा किशोर मुस्काया और सिर के ऊपर को चढ़ा हुआ अपना मुखौटा खींच कर झट अपने चेहरे पर चढ़ा लिया व लगभग मेरे माथे के साथ माथा सटा मुखौटे में आँखों के आगे बनी झिर्रियों को एकदम मेरी आँखों के आगे ले आया। वस्तुतः वह अपने चेहरे पर आई शर्मीली मुस्कान छुपाने के लिए यह यत्न कर रहा था पर अडिगता प्रदर्शित भी करना चाहता था।
मैंने उसकी बाँह पर हाथ रखा ... फिर धीरे-से उसे थपथपाया और हँस कर कहा - गुड लक ! ...... और भीड़ को इधर से इधर जाते, चीरते हुए, उस से पार हो आई।
इस घटनाक्रम में जो चित्र हाथ में पकड़े अपने सैमसंग ओमनिया 7.5 विंडोज़ मोबाईल से लिए, वे यहाँ देखें ।
जिस कार्यक्रम में भाग लेने The Houses of Parliament गई थी, उसके चित्र व उस कार्यक्रम के विषय में भी शीघ्र ही लिखूँगी।
सभी चित्रों का स्वत्वाधिकार सूरक्षित है, अतःबिना अनुमति प्रयोग न करें
पुलिस और प्रदर्शनकारी, दोनों ही शान्त, विश्वास नहीं होता, असर नहीं होता।
जवाब देंहटाएंसच में ही यही सव देख कर लगता है कि हमें पश्चिमी सभ्यता से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है । विशेषकर ऐसी बातें तो नि:संदेह अनुकरणीय है । विरोध ऐसे भी हो सकता है । फ़ोटो सारी कमाल की हैं और स्थिति को बिल्कुल स्पष्ट कर रही हैं , अनुभव को साझा करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
जवाब देंहटाएंJahan tak meri soch hai ki India mein aisa mumkin nahi hosakta,,,kyun ki sabse badi baat ye hai ki hamare yahan Qanoon ko log maante to hain par uspar poori tarah se amal nahi kya karte..aor jab tak Qanoon par sahi tareeqey se amal nahi hoga tab tak koi kaam sahi ho ,,shayad nahi,,,ismein public ki bhi kami hai
जवाब देंहटाएंShayad ismein kahin nakahin politicians bhi shamil hain ...aor unki wajah se ..administration khamosh rahta hai ya kuchh kar nahi pata jo wo karna chahta hai
Education ki kami bhi kahin na kahin roda atkati hai
Aisa nahi ki taraqqi yafta mulkon mein crruption nahi hai,,wahan murders,rap,snaching,etc. nahi hotey,jo yahan hota hai ,,wahan bhi hota hai..
Hindustan k poorey structure ko sahi hone ki zaroorat hai...Lekin ye kaise mumkin ho..ye sawal bahut chhota ..par ispar amaldaramad bahut bada kaam ....isko kaise sahi kya jaye sochney ki baat hai.....poorey Mulk ko sochna padega......
काश हम लोग भी सभ्यता सीख सकते ....
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
भारत की पुलिस को यहाँ की पुलिस से सीखनी चाहिए सभ्यता , यह शायद भूल गई है कि उन्हें भी अंग्रेजों ने ही बनाई थी ...
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