बुधवार, 21 नवंबर 2012

डायरी-अंश : कसाब, मृत्युदण्ड, अपराध व न्याय

डायरी-अंश : कसाब, मृत्युदण्ड, अपराध व न्याय  :  कविता वाचक्नवी



4 वर्ष पूर्व 26 नवंबर को मुंबई में भारत पर हुए असैनिक आक्रमण के एकमात्र जीवित बचे आतंकवादी अजमल कसाब (पाकिस्तानी नागरिक) को आज 20 नवम्बर को भारत की पुणे स्थित ऐतिहासिक येरवदा जेल में प्रातः फाँसी दे दी गई। इस समाचार से जहाँ उस आक्रमण की स्मृतियाँ ताज़ा हो आईं वहीं उस आक्रमण में अपने प्राण गँवाने वालों का स्मरण भी बार-बार हो आता रहा। दिन-भर उस पूरे घटनाक्रम के प्रति मन में भाँति-भाँति के विचार आते रहे। डायरी में भी कुछ कुछ लिखा जाता रहा। 

यहाँ पढ़ें आज के मेरे डायरी-अंश - 




मृत्युदण्ड के लगभग 20 घंटे पश्चात् - 

उन युवकों, व्यक्तियों व अपराधियों के प्रति दया भी मन में पनपती है जो कुमार्गी होकर दूसरों का जीवन तो नष्ट करते ही हैं अपना व अपने परिवार का जीवन भी नष्ट कर लेते हैं। जो किसी दंडसंहिता द्वारा दंड नहीं पाते वे निरंकुश भले रहते हैं किन्तु जो किसी दंडसंहिता से घिर जाते हैं.... वे सामान्य से लेकर जघन्य तक की श्रेणी के दंड पाते हैं। 

उनको मिले दंड को देख-सुन कर साधारण से साधारण व विशेष से विशेष व्यक्ति का हृदय भी काँप उठता है। यह काँप उठना स्वाभाविक भी है क्योंकि यह हमारे मानव होने का प्रमाण है। किन्तु इस काँपने से द्रवित होकर दंड के औचित्य पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता। 

दंड का विधान ही वस्तुतः सामाजिकों के हृदय को कम्पाने के लिए है; ताकि उस भयावहता या पीड़ा से डर कर समाज के वे लोग ( जो किसी और विधि, प्रेरणा, सीख या बोध से नहीं सीखते और न अपराध करने से रुकते हैं ) अपराध की ओर प्रवृत्त न हों।


दंड वस्तुतः उस अपराधी लिए यद्यपि उतना कारगार न होता होगा ( किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ) जिसने अपराध किया है क्योंकि आपराधिक दंड की संरचना / व्यवस्था अपराधी को उसके कर्म का फल देने के लिए नहीं, अपितु अपराध के मार्ग पर चलने वाले अन्य लोगों को अपराध से निवृत्त करने के लिए की गई है; उन लोगों को जो न दूसरों के दु:ख से द्रवित होते हैं, न किसी सदविचार, प्रेरणा, सही मार्गदर्शन आदि से सीखते या बदलते हैं ... वे अपराध के मार्ग का भयावह परिणाम देखकर तो कम से कम कुछ सीख सकते हैं। 




मृत्युदण्ड के लगभग बारह घंटे पश्चात् -

न्यायकारी होने का यह अर्थ नहीं होता कि अन्यायी को माफ कर दिया जाए जैसे न्यायाधीश दोषी को दंड देता व निर्दोष तथा निरपराध के पक्ष में अपना निर्णय सुनाता है, उसी प्रकार ईश्वर के न्यायकारी होने का अर्थ यह नहीं कि वह सारे अत्याचारियों को क्षमा कर दे या कर्मफल न दे।

न्यायकारी होने का अभिप्राय ही यही है कि जिसके जैसे कर्म हैं उसे उसी के अनुरूप फल मिले। इसी प्रकार मानवीय होने का यह अर्थ नहीं कि अत्याचारी, हत्यारे अथवा बलात्कारी आदि को दंड न दिया जाए। जो दूसरों की शांति, जीवन, सुख, धन, सम्मान या कुछ और भी कभी भी छल या बल से छीनता है, वह दोषी है, अपराधी है और दंड का भागी होता है। किसी न्यायाधीश से आतताइयों के पक्ष में खड़े होने या निर्णय लेने/देने की इच्छा या माँग सबसे बड़ी विडम्बना है। 




मृत्युदण्ड के लगभग नौ घंटे पश्चात् -


कसाब का मृत्युदंड क्रियान्वित होने का समाचार सब को मिल ही चुका है। अन्ततः राष्ट्रीय अस्मिता पर आक्रमण करने वाले हत्यारे आक्रमणकारी का यही अंत सुनिश्चित था। प्रत्येक देशप्रेमी व देश के लिए बलिदान होने वालों के परिवारों को अन्ततः इस निर्णय से राहत ही हुई है, होगी। 

कसाब की आत्मा की शांति की प्रार्थना भी करती हूँ। 

उसकी मृत्यु ट्रेनिंगकैंपों में तैयार हो रही आक्रमणकारियों की नई नस्ल को कम से कम इतनी शिक्षा अवश्य दे कि ऐसे कार्यों का यही परिणाम होता है। पकड़े जाने पर आपका अपना देश भी पल्ला झाड़ लेगा और शव तक को अपने यहाँ ले जाना नहीं चाहेगा। उन माता-पिता और भाई-बहनों के लिए भी अतीव दु:ख है जिनके परिवार का बेटा गलत राह पर चल पड़ा और आज उसके कारण उन्हें यह दु:ख देखना पड़ा कि अपने मृतक बेटे का मुँह तक न देखना नसीब हुआ। इसलिए अपनी संतान को बहकाने वालों से सावधान रहें और उनकी पहचान अच्छी तरह से कर लें, अन्यथा वे लोग अपने स्वार्थ और उन्माद के लिए लोगों का इस्तेमाल करते रहेंगे। उन शत्रुओं को चीन्हना अत्यन्त आवश्यक है और परिवार, समाज व देश के हित में भी। इस रास्ते पर चलने वालों का अंत ऐसा ही या यही होना अवश्यंभावी है।




मृत्युदण्ड के लगभग 1 घंटा पश्चात्, समाचार मिलते ही - 

अभी-अभी आज बुधवार को भारत में प्रातः 7.30 बजे कसाब को पुणे की यरवडा जेल में फाँसी दे दी गई।

आज मन को बड़ी शांति मिली।


7 टिप्‍पणियां:

  1. न्याय का दायरा बढ़ता जाता है, जैसे जैसे समय बीतता है..

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  2. i visit frist tym on this page and find it very nice.. thanks kavita ji..ur doing a great job.. keep it up.

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  3. कई बार केवल कुमार्गी होकर ही नहीं बल्कि मजबूरी के बोझ तले भी ऐसे अपराध होने की रूपरेखा तैयार होती है ( मै यहाँ इसका समर्थन बिलकुल नहीं कर रही हूँ ), साथ ही गरीबी और अशिक्षा भी इसकी एक मुख्य वजह हैं .... इस विशेष मुद्दे पर एक चौंकाने वाली बात खुद कसाब के confession मे सामने आई की उसे इस मार्ग पर खुद उसके पिता ने जाने के लिए विवश किया ( हाय रे पाकिस्तान का दुर्भाग्य )जबकि एक गाँव वाले के अनुसार कसाब ने जब पहली बार बंदूक की आवाज़ सुनी थी तो वो बेहद डर गया था । निश्चित तौर पर ये एक सबक है उन बच्चों और उनके माता-पिताओं के लिए की इस तरह की घटना का यही अंजाम हो सकता है जो कत्तई स्वीकार्य योग्य नहीं है । बढ़िया लेख ।

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  4. डायरी के पन्ने अनमोल हैं,,,,,,,, अंतर-द्वंद्व ख़त्म,,,,,,

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  5. अपराधी को न्यायोचित दण्ड देना इसलिये भी आवश्यक है कि समाज की मर्यादायें बनी रहें साथ ही अपराधी को और आगे अपराध करने से रोका जा सके। क्षमा उनके लिए नहीं है जो अपराधीवृत्ति के हैं ...उन्हीं के लिये है जो जीवन के महत्व को समझ कर सुधाराकांक्षी होते हैं।

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  6. इतनी प्रेरणा यदि अच्छे कार्य के लिए हो तो उसका देश अनंत उन्नति मार्ग पर अग्रसर हो सकता है |

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