सोमवार, 2 अगस्त 2010

"उसकी" बाँहों का सम्बल निर्भय करे

"उसकी" बाँहों का सम्बल : (डॉ.) कविता वाचक्नवी




तथाकथित मैत्रीदिवस के तामझाम देखते मन में दो दिन से अथर्ववेद (१९/१५/६) का मन्त्र प्रार्थना बन उमड़ता रहा है; जो यों है  -

" अभयं मित्रादभयममित्रादभयम् ज्ञातादभयं परोक्षात् |
       अभयं नक्तमभयं दिवा नः सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु || "


वैसे इसका अर्थ बहुत सरल है। 

मन्त्र का शाब्दिक अर्थ है - 

" हे अभय, निर्भय प्रभो! हमें मित्र और अमित्र से तथा ज्ञात और अज्ञात से सर्वथा अभय करें। सभी दिशाओं के निवासी प्राणी मेरे मित्र व हितकर हों |"



लगभग २ माह पूर्व बर्मिंघम में घूमते घूमते अकस्मात् मन में प्रेरणा हुई कि शैशव से आज तक वैदिक थाती व अपने आचार्यों से जो कुछ पाया है, उसका ऋण इतना है कि शेष बचे जीवन की अल्पावधि उसे चुकाने के लिए अपर्याप्त है। न चुका पाने के कारण जितनी अपराधी मैं परम्परा व संस्कृति की हूँ, उतने ही परिमाण में मुझ पर अपनी विद्या व स्नेह सर्वस्व-सा न्यौछावर करने वाले आचार्यों की तथा  उससे कहीं अधिक परिमाण में भावी पीढियों की। जाने यह कोई दैवीय प्रेरणा थी (या इसे मेरी भावुकता का नाम भी दिया जा सकता है)  कि मैंने तत्काल ठाना / संकल्प किया कि मैं नेट पर प्रतिदिन जो लगभग १५ -१५ घन्टे  काम करते बिताती हूँ, उसमें से थोड़ा समय नियमित अपने इस संकल्प की पूर्ति में लगाऊँगी और अपने किसी एक ब्लॉग पर इस उद्देश्य से एक स्तम्भ प्रारम्भ करूँगी, जिसमें उस धरोहर को सहेजने सँजोने का काम करूँगी। तुरन्त मैंने इस विचार से अपने पति को भी अवगत करवा दिया। 



किन्तु जैसा कि मेरे साथ सदा से होता आया है कि जिस भी विषय के संबन्ध में मैंने उसकी जानकारी किसी से भी बाँटी, वह वहीं अधर में अटक जाता है। मैं वहाँ से लौट कर वापिस घर (लन्दन ) आ गई  और दिन रात भूत की भाँति नेट पर काम करने के बीच परिवार की व्यस्तताओं में लग गई। ऊपर से गत ये लगभग २ माह मेरे परिवार की मानो विकराल संकट की घड़ी बन गए। तीनों बच्चों पर कई कई ओर से आपदाएँ आईं, मैं स्वयं दुर्घटनाग्रस्त होकर डेढ़ माह से बिस्तर पर पड़ गई हूँ, दुर्घटना के कारण अमैरिका- कैनेडा के  दो माह के मेरे प्रवास के रिटर्न एयर टिकट (ईबुकिंग होने के कारण, बिना एक भी पैसा रिफ़ण्ड हुए) निरस्त हुए, जिससे  लगभग एक लाख से अधिक की आर्थिक क्षति हुई और यात्रा प्लान बदलने से आगामी कई माह  के लिए तय निर्धारित योजनाएँ सब खटाई में पड़ गईं। एक रास्ता निकालने का मार्ग सूझा तो  उस पर भी कल आपद आ गई और द्वार मानो बन्द हो गया। इतना ही नहीं इस बीच मायके परिवार में २ मृत्यु हो गईं। यहीं बस नहीं हुआ, तीसरी मृत्यु ( परसों प्रात: मुझ से लगभग १०-१५ वर्ष छोटे युवा फुफेरे भाई का ६ वर्ष  की बेटी को अनाथ करके चले जाने ) का सम्वाद पाने  तक यह क्रम थमा नहीं है। 



इन सब के बीच  उत्पन्न विकलता ने इस प्रकार मन व संकल्पशक्ति को जर्जर कर दिया है कि क्षण क्षण मन  डरपाता रहा और कुछ भी कर्तव्य अकर्तव्य की सुध न रही व न ही स्तम्भ प्रारम्भ कर पाई।  इस बीच परसों व कल  की विकल घड़ियों में नेट पर मित्रों से मैत्रीदिवस की शुभकामनाएँ व सूचना भी मिली। तो कल दिनभर जाने अकस्मात् मन में अथर्ववेद का मैत्री विषयक यह मन्त्र कौंधता रहा; जिसे यहाँ प्रारम्भ में ऊपर अंकित किया है। इस मन्त्र के अर्थ व भाव के साथ मन के त्रास की मुक्ति और सर्वत: अभय की प्रार्थना / इच्छा से संचालित मनोगति के चलते स्मरण हो आया कि क्यों न  इस वैदिक चिन्तन व विचार को सब मित्रों से व अधिकाधिक लोगों से बाँटा जाए। फिर लगा कि इस मन्त्र के बहाने क्यों न आज से व इसी से ही अपने संकल्प को पूरा करने का शुभारम्भ किया जाए! 



तो उस कड़ी में आज यह पहला चरण धरा है। जीवन का पहला चरण जब धरा होगा धरती पर, तो मेरे माँ पिताजी की बाँहों के घेरे ने मुझे लड़खड़ाने से बचा कर निर्भय किया था। आज पुन: अभय की  अभिलाषा ले धरती हूँ यह प्रथम चरण। आशा है, "उसकी" अनन्त अज्ञात बाँहों का घेरा लड़खड़ाने  से बचा सर्वत: अभय निर्भय कर सम्बल देगा।


5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर पोस्ट है....रात के बाद सुबह जरूर होती है.....शुभकामनाएं।

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  2. Kavita ji ,
    Have good wishes from this friend.
    Zaahir hai ki,:- Atharv-ved ka uprokt mantra , abhaya aur chinta ko door bhgaane mein mitra ki sarthajkta ka purntaya bodh karata hai.
    Mitra ke pyar ka rang sabse alag hai.-
    Mujhe Yaad aata hai ki, jab main, chota thha or school jaata thha ,(In yr,1952-53,when I was in 6th class.)tub mere pita shree ne Kisi baat per mujhe , dost kaise hotein hain k baare mein samjhaate hue kaha thha -
    "DO SATWAADI JAB MILEIN,DOSAT WAAKO NAAM".
    Meaning there by that, Friends are only those persons ,who meet with each other ,hav'g a pure heart in true sence.
    Waastav mein, jab kabhi jeevan mein aissa sachchhe mitra , mil jaata hai ,tto,uska saath, US KI(GOD).BAAHON KA SAMBAL JAISA HI LAGTA HAI.-- ---
    --- No one,manufacture a lock,- without KEY.
    Similerly, GOD won't give problams with out SOLUTIONS.
    ------So never worry.--------
    EFFORTS, Always Succed.--
    If , one develop the habit of Success,he will make SUCCESS a habit. ( & u hav this HABIT ).--
    ---BRIJ BHUSHAN--

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. आज वागर्थ पर पहली बार आना हुआ। जीवन के प्रति आपका यह विश्‍वास और अनुराग बना रहे,बस यही कामना है।

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