रोटी कब तक पेट बाँचती? : (डॉ.) कविता वाचक्नवी
सत्ता के संकेत कुटिल हैं
ध्वनियों का संसार विकट
विपदा ने घर देख लिए हैं
नींवों पर आपद आई
वंशी रोते-रोते सोई
पुस्तक लगे हथौड़ों-सी
उलझन के तख़्तों पर जैसे
पढ़े पहाड़े - कील ठुँकें,
दरवाजे बड़-बड़ करते हैं
सीढ़ी धड़-धड़ बजती है
रोटी अभी सवारी पर चढ़
धरती अंबर घूमेगी
दुविधाओं के हाथों में बल नहीं बचा
सुविधाएँ मनुहार-मनौवल भिजवाएँ।
रोटी कब तक पेट बाँचती?
रोटी कब तक पेट बाँचती?
[ अपने कविता संकलन "मैं चल दूँ" (२००५) से उद्धृत ]
सत्ता के संकेत कुटिल हैं
ध्वनियों का संसार विकट
विपदा ने घर देख लिए हैं
नींवों पर आपद आई
वंशी रोते-रोते सोई
पुस्तक लगे हथौड़ों-सी
उलझन के तख़्तों पर जैसे
पढ़े पहाड़े - कील ठुँकें,
दरवाजे बड़-बड़ करते हैं
सीढ़ी धड़-धड़ बजती है
रोटी अभी सवारी पर चढ़
धरती अंबर घूमेगी
दुविधाओं के हाथों में बल नहीं बचा
सुविधाएँ मनुहार-मनौवल भिजवाएँ।
रोटी कब तक पेट बाँचती?
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बहुत गहरी अभिव्यक्ति!! आनन्द आ गया!
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना.... बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंGahri abhivykti..bhavpurn rachna ke liye aabhar
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंरोटी के बहाने जीवन के अनेक पहलुओं का सुंदर चित्र खींच दिया आपने।
…………..
पाँच मुँह वाले नाग देखा है?
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
रोटियाँ लटकी हुई हैं बुर्ज़ के ऊपर;
जवाब देंहटाएंप्रश्न 'कैसे पाइए', उत्तर 'गुलेलें हैं!'
>ऋ.
बड़े दिन बाद अपनी मन पसंद शैली में आपको पढ़ा ! आनंद आ गया कविता जी !आपकी गीत रचनाएँ चाहिए , कहाँ उपलब्ध होंगी हो सके तो मेल कर बताएं !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें
उत्तम भावाभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना l
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