आज कुछ ऐसा हुआ / मन विकल है
कल ही इलाहाबाद की यात्रा से दोपहर लौटी हूँ। अपनी पुस्तक के लोकार्पण समारोह में सम्मिलित हो कर।
आज उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा में निराला जयन्ती व वसंत पंचमी के आयोजन में एम. ए./एम. फिल. व पी-एच डी. के विद्यार्थियों के सम्मुख मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करने का आमंत्रण था। २ बजे कार्यक्रम आरम्भ हुआ व लगभग ४.३० तक चला। वहाँ के कुछ चित्र संस्था के अध्यक्ष डॉ.ऋषभदेव शर्मा जी के सौजन्य से प्राप्त हुए हैं। सहेज रही हूँ।
किंतु कार्यक्रम के पश्चात मेरी पारिवारिक क्षति का दुखद समाचार मिला। बड़ी ननद का कैंसर से स्वर्गवास हो गया है, आज शाम ४.५५ पर, आगरा में। विकल है मन, यहीं बँधा छटपटा रहा है। जाने कितनी स्मृतियाँ, कितने खट्टे-मीठे क्षण और जाने क्या क्या पलक पीछे से गुजर रहा है। कोई ओर छोर नहीं..... लिखने को कुछ है नहीं। शब्द देना बेमानी है, शब्द भी बेमानी .......
शनिवार, 31 जनवरी 2009
आज कुछ ऐसा हुआ/ मन विकल है...
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रविवार, 25 जनवरी 2009
हम अ-शोकों के पुरोधा हैं
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