आधी रात के असमय कष्ट : कविता वाचक्नवी
भारत व ब्रिटेन के समय में मुख्यतः साढ़े पाँच घण्टे का अन्तर है। प्रतिदिन होता यह है कि मैं रात्रि 2-3 बजे तक काम करती रहती हूँ। और इस बीच यदि 'फेसबुक' पर सोने से पूर्व कोई नया 'स्टेटस' लिख दूँ या कहीं टिप्पणी कर दूँ तो फेसबुक खोले जाग रहे दूसरे व्यक्तियों को पता चल जाता है कि मैं अभी जाग रही हूँ। ....बस लोग आधी रात में ही ( मेरी 'चैट' लगभग स्थायी रूप से बंद होने के बावजूद) 'इनबॉक्स' में बातचीत करने और संदेश भेजने में जुट जाते हैं। मैं समय देखती हूँ तो बहुधा यहाँ रात्रि 7 से 1 बजे का समय होता है, अर्थात् उस समय भारत में रात 12 से तड़के 6 बजे तक की अवधि। मुझे जबर्दस्ती उन्हें विदा कहना पड़ता है और त्रस्त जो होती हूँ, वह अलग।
उन्हें यह सामान्य-सी समझ नहीं है कि मध्य रात्रि में यदि कोई परिवार वाली महिला जाग रही है तो उसके पास कार्यों का कितना दबाव होगा कि वह आधी रात को काम कर रही है। दूसरे, उन्हें यह साधारण शिष्टाचार भी नहीं पता कि मध्य रात्रि को किसी महिला से 'चैट' नहीं की जानी चाहिए। यदि आपको यहाँ का समय न भी पता हो, तो भी अपने यहाँ का समय तो पता ही होता है कि अभी रात 7-8 से तड़के 8-9 बजे का समय किसी से संपर्क करने का समय नहीं होता।
आधी रात को लोग अपनी कविताएँ भेजना चालू हो जाते हैं, कहानियों के लिंक भजते हैं कि 'कृपादृष्टि' (?) डालूँ, अपनी 'स्टेटस' पर आकर एक टिप्पणी करने के लिए आमंत्रण देते हैं। या यों ही फालतू की बातें करते हैं कि कैसी हैं, परिवार कैसा है, आजकल क्या कर रही हैं, वहाँ मौसम कैसा है, लंदन तो बहुत सुन्दर होगा, भारत कब आ रही हैं, मैं यह करता हूँ, मैं वह करता हूँ, मेरे बेटे को ईनाम मिला, आपकी पोस्ट बहुत अच्छी थी, आपकी फोटो बहुत सुन्दर है, आपके घर में कौन-कौन हैं, आपके पति क्या करते हैं, बच्चे कितने हैं (वैसे घर में कौन-कौन आदि जैसे व्यक्तिगत प्रश्नों के उत्तर में मैं एक ही बात कहती हूँ कि "भई, अभी मुझे अपना बेटा नहीं ब्याहना, जब ब्याहना होगा तब लड़की वालों के सवालों का सब उत्तर दूँगी, अभी से तहक़ीक़ात क्यों ?" )
.... परन्तु मैं उस अविवेक, अशिष्टता, आत्म मुग्धता, छपास, दुर्व्यवहार व अभद्रता आदि पर चकित हूँ कि जिन लोगों में इतनी-सी सामान्य सामाजिक शिष्टाचार तक की समझ तक नहीं है, वे कैसे स्वयं को लेखक समझ कर भ्रम में जीने लगते हैं। हम लोग अपने घनघोर परिचितों को कॉल करते समय भी बीस बार सोचते हैं कि यह खाने का समय होगा, यह आराम का और यह अमुक-अमुक दिनचर्या का, अतः उन घंटों में अत्यावश्यक होने पर भी फोन तक नहीं करते जब तक कि कोई आपत्ति या समस्या न हो।
समझ के इतने अभाव में जीने वालों से सम्पर्क, सम्वाद, मित्रता, परिचय आदि में मुझ कोई रुचि नहीं है। मैं ऐसे लोगों से कोई वास्ता नहीं रखना चाहती। हो सकता है ऐसी घटना के बाद मैं अपने कई मित्रों से कन्नी काट लूँ (करती ही हूँ )। ऐसे में उन्हें समझ जाना चाहिए कि उनका व्यवहार मुझे नागवार गुजरा है। कम से कम ऐसी अशिष्टता भविष्य में वे दूसरों के साथ करके अपनी मूर्खता सहित दसियों अशोभन मनोवृत्तियों का प्रदर्शन न करें, तो उनके हित में होगा।
लोग कहना सीखें और कब कहें, यह भी सीखें।
जवाब देंहटाएंमैं इस पीड़ा को समझ सकता हूँ.
जवाब देंहटाएंआपको हो रही असुविधा- बहुतों को हो रही है. ख़ास तौर से महिलाओं को. इसे खिचड़ी में अदरक के टुकड़े की तरह मानिए और दुर्लक्ष्य कीजिए. सबसे अच्छा उपाय है कि बेरहमी से ऐसे अशिष्ट मित्रों को 'अन्फ्रेंड' कर दीजिए. समाज में लोग साक्षर हो गए हैं, शिक्षित नहीं हुए हैं.
जवाब देंहटाएंneel kanth ki tarah aise logon ko sahan kariye . na ugaliye na gatakiye. unfriend karne se to aapki etni shan dar post unhen dikhayi hi nahi degi fir vo kaise sudhrenge.
जवाब देंहटाएंvaise aapki samsya ke samadhan ke liye face book ne aur bhi bahut si vyavasthaye kar rakhi hain
neel kanth ki tarah aise logon ko sahan kariye . na ugaliye na gatakiye. unfriend karne se to aapki etni shan dar post unhen dikhayi hi nahi degi fir vo kaise sudhrenge.
जवाब देंहटाएंvaise aapki samsya ke samadhan ke liye face book ne aur bhi bahut si vyavasthaye kar rakhi hain
neel kanth ki tarah aise logon ko sahan kariye . na ugaliye na gatakiye. unfriend karne se to aapki etni shan dar post unhen dikhayi hi nahi degi fir vo kaise sudhrenge.
जवाब देंहटाएंvaise aapki samsya ke samadhan ke liye face book ne aur bhi bahut si vyavasthaye kar rakhi hain