मञ्जरी और हंस : लन्दन आज / कविता वाचक्नवी
अपने नियमित टहलने के कार्यक्रम पर जब आज प्रातः निकली तो पाया कि रात में वृक्ष से गिरी मंजरी ने रास्ते को बहुत ही कलात्मकता से ढाँप रखा है।
जहाँ मैं बीच में बैठ जाया करती हूँ, आज वहाँ कुछ बच्चे खेल रहे थे; परन्तु रोचक बात यह कि राजहंसों के जोड़े का एक हंस (जो लगभग प्रतिदिन अपने परिवार सहित वहीं जलधार या उसके किनारे पर खेलने आ जाते हैं) आज अकेले ही मैदान में देर तक बैठा हुआ था। मैंने उसकी इस भंगिमा के कुछ चित्र भी लिए। आज की सुबह मेरे लिए इस तरह बहुत स्निग्ध व विशेष बन गई।
भारत में तो हंस केवल संस्कृत साहित्य में नाम ही के रूप में जाना था और हिन्दी में एक कहावत-भर के रूप में, परंतु जब पहली बार यहाँ ब्रिटेन में हंस देखा तो मानो स्वर्ग की अनुभूति हुई थी। अब बाद में तब से तो बीसियों हंस एक साथ देखती चली आ रही हूँ। हंसिनी द्वारा छोटे छोटे बालहंसों को अपने पंखों के भीतर भर कर सुरक्षा देने व हंस हंसिनी द्वारा बच्चों को घेर कर तैरने के कई दृश्य कैमरे में कैद किए। अब तो नियमित क्रम है। :)
आज सुबह के मेरी आँखों और मेरे कैमरा में बंद वे अपार सुरमय दृश्य यहाँ इन चित्रों में हैं।
बहुत सुन्दर चित्र हैं।
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी, आपकी नियमितता देख तो रश्क होता है। मैं तो आजकल ब्लॉग्ज़ तक जा ही नहीं पाती। आप फिर भी उसी सद्भाव से जुड़े हुए हैं ... कैसे धन्यवाद दूँ !
हटाएंWow. Very beautiful pictures.
जवाब देंहटाएंकविता जी! हिंदी-प्रेमी होने के साथ-साथ आप प्रकृति-प्रेमी भी हैं। कितना सुंदर समन्वय है! प्रकृति की इतनी मनमोहक छवियाँ कैद करने के लिए आपको बधाई!
जवाब देंहटाएंसभी चित्र बहुत साफ व सुंदर आये हैं. ऊपर नीला आकाश, नीचे हरियाली और उसपर टहलते हँस...अनुपम छटा !
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