सीमित गैससिलेन्डर : क्या है उद्देश्य, क्या हो ढंग : कविता वाचक्नवी
मैंने अभी अभी इस से पूर्व फेसबुक पर "मेरा गैस सिलेन्डर और मैं " शीर्षक से अपना एक अनुभव लिखा तो लोग मुझे ही गरियाने लगे। कई लोग तरह तरह के ओछे अपमानजनक शब्द भी लिखने लग गए। मजे की बात यह भी रही कि जिन पुरुषों ने कभी रसोई की ओर मुँह नहीं किया, जिन्हें प्रत्यक्ष व फर्स्ट हैंड अनुभव नहीं है कि वास्तव में संतुलित विधि से सिलेन्डर के उपयोग से कितनी बचत हो सकती है, वे लोग परम प्रमाण बनकर तर्क करने लगे।
मेरा गैस सिलेन्डर और मैं : कविता वाचक्नवी
======================गैस सिलेन्डर की संख्या तय कर देने पर मचे विवाद के बीच (और नक्काखाने में तूती की तरह) एक अनुभव मेरा भी है।भारत में बिताई अवधि के दौरान हम 5 प्राणियों की गृहस्थी में, तीन समय भोजन बनाने के बावज़ूद, मेरे यहाँ एक गैस सिलेन्डर लगभग अढ़ाई महीने चलता था।यदि हम सही ढंग से गैस का उपयोग करें व अपव्यय न होने देने के प्रति सचेत रहें तो 2 महीने तो बड़े मजे से एक सिलेन्डर पर बिताए जा सकते हैं।पता नहीं इतना बवाल क्यों मचा है ! क्या प्राकृतिक संसाधनों पानी, बिजली, हवा आदि को बर्बाद करने से रोकना अनुचित है। और क्या बुरे से बुरी सरकार की एक अच्छी बात का समर्थन /सहयोग नहीं किया जा सकता ?या मामला कुछ और है, जिसे मेरी अल्पमति समझ नहीं पा रही !!
अपना अनुभव लिखने का अर्थ या उद्देश्य यह नहीं होता कि कोई जबर्दस्ती उसे माने ही या उसे ही अंतिम प्रमाण समझा जाए। वस्तुतः आज प्रत्येक को ऊर्जा नियमन व ऊर्जा की बचत करना सीखन व सिखाना चाहिए। न सीखने पर लोगों को प्राकृतिक आपदाओं पर रोने का अधिकार भी नहीं। प्राकृतिक संसाधनों के दुरुपयोग से होने वाले दुष्परिणामों के कारण प्रकृति के विकराल रूपों पर पूरा विश्व मुँह बाए खड़ा है।
घरों में बहुधा ऊर्जा-संचयन की विधियों को दरकिनार किया जाता है। हमें परिवारों में उनके प्रति जागरूकता लाकर उन्हें नियमतः अपनाना होगा। जहाँ माँएँ या बुजुर्ग खाना बनाते हैं, वहाँ युवाओं का दायित्व है कि वे उन्हें इन विधियों से परिचित करवाएँ।
कुछ लोगों के परिवार बड़े हैं या शीत आदि की परिस्थिति में बार बार पानी गरम करने के लिए गैस का उपयोग करना होता है, वैसी परिस्थितियों के लिए नियम में कुछ अन्य प्रावधान जोड़े जा सकते थे। किन्तु एक नियम या नियम स्वीकारी नहीं तो अंकुश तो बनाना ही होगा, अन्यथा जिसके पास पैसा अधिक है, वह मनमाना दुरुपयोग करता है और देश में गैस की किल्लत बना देता है। जब एक निश्चित सीमा में गैस आबंटित होगी तो ये मारामार, किल्लत और असुविधा समाप्त होगी। अन्य लाभ जो होंगे वे तो हैं ही इस से इतर !
इसके अतिरिक्त एक बड़ी कारगर विधि यह होनी चाहिए थी कि सरकार गैस पर सब्सिडी समाप्त कर दे। भारत की तीनों गैस कंपनियाँ सरकारी हैं और सरकार सब्सिडी झोंकती है उसके दाम को कम रखने के लिए। यदि सरकार वास्तव में गैस के अपव्यय से चिंतित है व कोई मार्ग निकालना चाहती है तो सब्सिडी हटा कर सीधे पेट्रोल व डीजल की तरह उसे उतनी लागत में बेचना शुरू कर दे जितनी उसकी वास्तविक लागत है।
देश में लोग केवल पैसे की ही भाषा समझते हैं। सब्सिडी हटने पर जैसे ही सिलेन्डर अपने असली दाम में आएगा तो झक मार कर लोग अपव्यय से डरेंगे व ऊर्जा के बचाव के साथ साथ देश के राजस्व पर से इसका बोझ हटेगा।
किन्तु मूलतः सरकार भी इसलिए सब्सिडी हटाने की बजाय सिलेन्डर की संख्या कम करने की विधि निकाल रही है, ताकि पीछे के दरवाजे से सिलेन्डर का ब्लैक चलता रहे और किल्लत बनी रहे।
ऐसे तरीके से जनता (अपनी जेब पर दबाव न पड़ने के कारण) कभी जागरूक होने का सोचती भी नहीं और सब एक दूसरे को गरियाते व गलियाते रहते हैं। एक दूसरे को कोस कर मामला वहीं का वहीं बना रहता है और जिसके पास जितना धन अधिक है, उसे उतनी अधिक सुविधा मिलती रहती है। न ऊर्जा का अपव्यय कम होता है, न साधन की किल्लत समाप्त होती है और गरीब आदमी अधिक वंचित होकर नए-नए तरीके निकालता है, चोरी चकारी बढ़ती है। संसाधनों की बचत का नाम लेकर शुरू किए गए ऐसे तरीके से संसाधनों की सुरक्षा की दिशा में कोई सार्थक हल नहीं निकलता।
जो लोग अंकुश को गलत बता रहे हैं, वे इन सब दृष्टियों को ध्यान में रखते हुए व संसाधनों के प्रति जागरूक होते /रहते हुए अनाचार को बढ़ावा दिए बिना अपनाए जा सकने वाले किसी अन्य समाधान को जानते हों तो वे भी अपने सुझाव / हल बताएँ।
bahut sach kaha aapne...
जवाब देंहटाएंसीमित संसाधनों का समुचित प्रयोग तो करना ही होगा..
जवाब देंहटाएंप्राकृतिक संसाधनों का अपव्यय हमें दरिद्रता की ओर ले जाता है, प्रकृति के विकराल रूपों की ओर इंगित कर आपने उचित ही सचेत किया है। किन्तु, यहां जनता और सरकार दोनों तरफ 'जानामि धर्मम् न च मे प्रवृत्ति:...' वाला हाल है।
जवाब देंहटाएंउचित कथन.
जवाब देंहटाएंGood article
जवाब देंहटाएंhttp://shreepad-gems.blogspot.in/2012/09/blog-post_18.html
आपको ये तो खयाल होगी ही कि भारत में इन दिनों फेसबूक पर कितनी बकवास और भडास उगली जा रही है
जवाब देंहटाएंअमीर जो करना चाहता है ,कर रहा है|
जवाब देंहटाएंनेता अपना उल्लू सीधा कर रहा है |
सरकार को अपनी कुर्सी से मतलब है ,
गरीब इन में पिस रहा है ,मर रहा है |
यदि भ्रष्टाचार ,घोटाले बंद हो जाएँ और ,
काला धन वापिस आ जाए तो देश में ऐसी
कोई समस्या ही नहीं रहे गी |