ब्रिटेन का भविष्य अब संसद (सांसत) में : कविता वाचक्नवी
#ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था, समाज और राजनीति में भारी उथल-पुथल मचा हुआ है। जनमत में योरोपीय महासंघ से अलग होने को बहुमत जो मिला है।
इस वस्तुस्थिति के दो पक्ष हैं। एक तो यह कि वस्तुतः इस जनमत से आज की तिथि में ब्रिटेन महासंघ से न अलग हुआ है , न अलग होने जा रहा है। पहली बात तो यह कि जनमत के पश्चात् अब यह निर्णय देश की संसद में लिया जाना शेष है (यद्यपि संभावना यही है कि सांसद भी अपने अपने क्षेत्रों की जनता के विरोध में नहीं जाएँगे), फिर दूसरी बात यह कि यदि वे भी अलग होने पर मुहर लगा दें तो आधिकारिक रूप से महासंघ से अलग होने में 2 वर्ष का समय लगेगा, प्रक्रिया पूरी होने में।
दूसरा पक्ष यह कि मुद्रा ने डुबकी लगाई है जिससे राष्ट्र का सकल मुद्रा भण्डार निस्संदेह कमतर हुआ है, बृहद व्यापारिक प्रतिष्ठानों ( विशेषतः जो विदेशी मूल वालों द्वारा संचालित हैं) के विदेशी मूल के कर्मचारियों में अनिश्चय है। इस मध्य मात्र गत 2 घण्टे में ब्रिटेन ने 350 बिलियन पाउण्ड के अंतरराष्ट्रीय निवेश खो दिए हैं, यह राशि योरोपीय महासंघ की चालीस वर्ष की सदस्यता राशि के बराबर है। पर ये सब छोटी बातें हैं।
इन सबके मध्य सबसे भयंकर स्थिति यह है कि देश टूटने की कगार पर आ गया है, विशेषतः स्कॉटलैंड और आयरलैंड राज्य (जिन्होंने महासंघ के साथ रहने के पक्ष में मत दिया) वे अब अब देश से अलग होकर स्वतन्त्र देश के रूप में अपने भविष्य पर पुनर्विचार करने लगे हैं और आगामी 2 वर्ष में यह कभी भी घट सकता है। उत्तरी आयरलैण्ड के लोगों ने तो आज ही से अपनी नागरिकता बदलने की कवायद भी प्रारम्भ कर दी है।
इन सब स्थितियों को देखते हुए ब्रिटिश सांसदों (विशेषतः जो योरोपीय महासंघ से अलग होने का समर्थन करते हैं) पर संसद में अपना मत देते समय यह उत्तरदायित्व (बल्कि दबाव) होगा कि वे महासंघ से अलग होने की पैरवी करते समय देश के भी टुकड़े करने की पैरवी करेंगे।
संसद का निर्णय ही इस देश का इस देश के भौगौलिक रूप में भविष्य को भी तय करने वाला होगा। अन्यथा महासंघ से अलग होना यानि इस देश का दो या तीन भागों में विभक्त होना सिद्ध हो सकता है।
ध्यातव्य है कि यह सारा खेल अति-उदारवादी विचारधारा के गर्भ से जन्मा और उसी की प्रचण्ड प्रतिक्रिया है। इसका सीधा प्रभाव अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव पर भी पड़ेगा।
भारत इस से कुछ संकेत ग्रहण कर सके तो हितकर होगा।
#KavitaVachaknavee #Brexit #UK
ध्यातव्य है कि यह सारा खेल अति-उदारवादी विचारधारा के गर्भ से जन्मा और उसी की प्रचण्ड प्रतिक्रिया है। इसका सीधा प्रभाव अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव पर भी पड़ेगा।
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