यह तो रही अन्तिम भूमिका की बात, किन्तु आज इसका स्मरण इसलिए आया क्योंकि अपने जीवन में प्रथम भूमिका मैंने कक्षा प्रथम से ही निभानी शुरू कर दी थी, जब प्रत्येक वर्ष स्वतन्त्रता दिवस व गणतन्त्र दिवस के अवसर पर हर बार विद्यालय के प्रिंसिपल (उस समय के मेरे हीरो अध्यापक नरेश शर्मा जी) पूरे कार्यक्रम व ध्वजारोहण के समय मुझे "भारत माता" के रूप में ध्वज के पास 2-3 घण्टों के लिए ( हाथ से मुख्य ध्वजा के स्तम्भ को छूते हुए ) खड़ा करवा देते थे, वासन्ती साड़ी व तीन रंगों की कई सारी पुष्पमालाएँ मेरे गले में पहनाई जाती थीं व माथे पर बड़ा-सा टीका किया जाता था। स्कूल की मेरी अध्यापिकाएँ ही मुझे तैयार भी किया करती थीं।
कार्यक्रम के उपरांत उस सार्वजनिक मैदान में उपस्थित विद्यालय के छात्रों के परिवार वाले व सभी अन्य लोग आ आकर चरण छुआ करते थे। बाँटे जाने वाले लड्डुओं का थाल मेरे आगे एक पटिया पर रखा जाता था, जिसे कार्यक्रम के पश्चात् सभा विसर्जित होने से पूर्व सभी को बाँटा जाता था। किसी विद्यालय का यह ध्वजारोहण कार्यक्रम, उस नगर के उस क्षेत्र का आधिकारिक ध्वजारोहण कार्यक्रम होता था जिसमें दूर दूर के मोहल्ले वाले बड़े-छोटे सभी भाग लेते थे, तम्बू-कनातें लगते थे, छिड़काव होता था, लाऊडस्पीकर पर बहुत भोर से ही ज़ोर ज़ोर से देशभक्ति के गीत बजाए जाने लगते थे और विद्यालय के एक कमरे में सुई की नोक पर बजने वाले रेकॉर्ड लिए लाऊडस्पीकर वालों की तरफ से एक व्यक्ति हर समय डटा रहता अदला-बदली करता रहता था।
आज स्वतन्त्रता दिवस पर लगभग पैंतालीस-अड़तालीस बरस बाद उन दृश्यों का अनायास स्मरण हो आया है। भारतमाता के प्रति जन-जन की उस आस्था के चलते लोगों ने उस बालक कविता को भारतमाता का प्रतीक मान चरण छू छू कर मन में राष्ट्रीयता व देशभक्ति के प्रथम संस्कार विकसित किए होंगे। आज उनमें से कोई विरला ही उन दृश्यों व घटनाओं को याद करने वाला होगा किन्तु मैं अपने इन शब्दों के माध्यम से उन की उस भावना को प्रणाम निवेदित करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रही हूँ।
वह बच्ची आज मन में पुनः सिर उठाकर ध्वज थामे उसी ठसक से आ मूर्ति की तरह स्थापित हो गई है। तब भले ही वह अभिनय मात्र था, किन्तु था शुद्ध व सात्विक ! संस्कार ऐसे ही बनते होंगे शायद। आज जब नन्हे नन्हें बच्चों को भौण्डे फिल्मी गीतों पर कूल्हे मटकाते मंचों पर अभिनय करते देखती हूँ तो लगता है कि कैसे यह पीढ़ी देशप्रेमी पीढ़ी में रूपांतरित हो सकती है या संस्कारित हो सकती है भला !
पता नहीं, अब भारत में जन जन का सैलाब भारत माता के ऐसे प्रतीकों के प्रति उसी आवेश और उसी निष्ठाभाव से उमड़ता भी है या नहीं ... या वे लोग सच में पूरी तरह कहीं खो गए ....
आज यद्यपि सब ओर इतना कुछ भयावह, दु:खद व कलुषित है कि राष्ट्र की मुक्ति के संघर्ष में जी-जान लागकर उसे अर्जित करने वाले लाखों-लाख बलिदानियों का वह अनुपम त्याग और बदले में देशवासियों को मुक्ति का आकाश देने की भावना का मूल्य तिरोहित हो चुका है। किन्तु मेरे लिए तो स्वातन्त्र्यपर्व और गणतन्त्रदिवस का अर्थ राष्ट्रीयमुक्ति-संघर्ष में स्वेच्छा से प्राण दे देने वाले लक्षाधिक वीरों के ऋण से स्वयं को उऋण न होने देने के स्मरण की वार्षिकी ही होता है। हमारी व हमारी आगामी पीढ़ियों की जिस शुभ-कामना से उन्होंने अपना, अपने परिवारों व अपनी पीढ़ियों का जीवन दाँव पर लगाया, यह राष्ट्र उसका सदा ऋणी रहेगा। इस वातावरण व राष्ट्रीय नैतिक मूल्यों के पतन के गर्त में देश को देखकर विचार यह भी आता है कि जिन मूल्यों की प्रतिष्ठा में उन्होंने प्राण दिए उनके पुनर्जागरण का अंकुर कब व कहाँ पनपेगा .... !यह भी अभी मानो काल के गर्भ ही में है।
भारत माता की भूमिका से शुरू हुआ वह अभिनय तो कब का तभी समाप्त हो गया, किन्तु भारतमाता संस्कार के रूप में मन के भीतर आकर तभी से विराज गई हैं। उन्हें शत-शत वन्दन और उसके अमर बलिदानी सपूतों को भी शत शत वन्दन, अभिनन्दन, प्रणाम !!
भारत माँ को नमन..
जवाब देंहटाएंआदरणीया, स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंआपकी उपलब्धियां निःसन्देह सराहनीय हैं
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंबढ़िया लगा आप का लेख... स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाईयां
जवाब देंहटाएंआजकल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर विद्यालयों में होने वाले कार्यक्रम सिर्फ फ़िल्मी गीतों पर आधारित होते हैं , जैसे कि ये सिर्फ अभिनेता /अभिनेत्री बनाने संस्कार ही देंगे !
जवाब देंहटाएंBahut sunder....
जवाब देंहटाएंBahut sunder....
जवाब देंहटाएंआपके संस्मरण ने आपके एक और पहलू से परिचित कराया..
जवाब देंहटाएंअभिनय को संस्कारों से जोड़ना सकारात्मक सोच है।अभिनय,निर्देशन ,मंचन ,प्रदर्शन - कला अभिव्यक्ति की विध।एं। हैं बचपन में इनक। प्रदर्शन और उससे मिली वाहवाही - हमें उत्साहित करती है ा तभी हम बार बार उसे दोहराना चाहते है ाफिर वो अभिनय - अभिनय नहो कर संस्क ारों में शामिल हो जाते हैं।
जवाब देंहटाएंभारत माता की जय।
जवाब देंहटाएंसंस्कार ऐसे ही दिए जाते थे।