मंगलवार, 4 सितंबर 2012

आवश्यकता है संवेगों को `चैनलाईज़' करने की : कविता वाचक्नवी

आवश्यकता है संवेगों को `चैनलाईज़' करने की :  (डॉ.) कविता वाचक्नवी




आज कहीं पढ़ते पढ़ते कुछ लोगों द्वारा लिखी ऐसी टिप्पणियाँ देखीं जिनमें वे क्रोध को व्यक्त करने के लिए एकांत में चिल्ला कर या कुछ वस्तुओं को तोड़ फोड़, काट छाँट कर अपने मन के आवेगा व क्रोध को शांत कर लेने के उपायों की बात कर रहे थे।


यों तो समाज में जिसे भी अपनी भावनाएँ कुचल कर या दबा कर रहने को बाधित होना पड़ता है वे कालांतर में समाज, परिवार व स्वयं अपने लिए कई विकराल समस्याओं को जन्म दे देते हैं। इसलिए अभिव्यक्ति के मार्ग तलाशने पड़ते हैं और अपनी भावनाओं व संवेदनाओं को सही निर्गम देना पड़ता है। 


क्रोध को प्रकट होने का मार्ग तो चाहिए ही। घरों में उसे दबा कर रखने या पी जाने के कारण बहुधा महिलाएँ धीरे धीरे मनोरोगी होती चली जाती हैं। वे हर समय परिवार व समाज के सामने शालीन व शिष्ट बने रहने व अपनी भावनाएँ दबा कर सद्व्यवहार करने को बाधित व ट्रेंड होने के कारण बढ़ती आयु में अपने लिए ही समस्या बन जाती हैं क्योंकि तब तक मेडिकली उनका व्यवहार एबनॉर्मल की श्रेणी में पहुँच चुका होता है, वे बार बार चीजों को साफ करती हैं, बार बार हाथ धोती हैं, चीजों को कई कई बार घिसती रगड़ती हैं, नुक्कड़ों, कोनों व दरारों के भीतर तक से खोज खोज कर धूल का नामोनिशान मिटा देने के लिए कृतसंकल्प हुई रहती हैं, हर जगह उन्हें बार बार चीजों को करीने व व्यवस्था से लगा देने का भूत सवार हो जाता है। परिणाम यह होता है कि परिवार तब पुनः उनसे बिदकने लगता है। पर कोई कभी यह क्यों नहीं सोचता कि परिवारों में हर बार अधिकांशतः महिलाएँ ही क्यों मनोरोगी हो जाती हैं ! इसलिए भले ही उपाय की तरह ही सही वस्तुओं पर क्रोध निकाल लेना सरल है अन्यथा वॉयलेंट होने की स्थिति में घर की चीजें ही टूटती हैं.... क्योंकि व्यक्तियों पर तो उनका बस चलता ही नहीं। या फिर वे स्वयं को हानि पहुँचाने वाली आत्मघाती वृत्ति का शिकार हो जाती हैं। कभी कभी कुछ पुरुष भी ऐसी समस्याओं से गुजरते हैं। 


साहित्य व कलाएँ इसमें बड़ी भूमिका निभा सकती हैं। क्योंकि ये सबसे सशक्त व सार्थक माध्यम हैं स्वयं को अभिव्यक्त करने का। आदिकाल से महिलाएँ लोकगीतों व घरों की दर-दीवारों से लेकर कढ़ाई आदि माध्यमों तक पर अपनी कलाकृतियों आदि के माध्यम से वे अपनी पीड़ा को व्यक्त करती चली आई हैं। 


अधिकाधिक लोगों को यदि अपने संवेगों को `चैनलाईज़' करने की विधि, उपाय व स्वतंत्रता मिल जाए तो समाज का कितना उपकार हो। एक तो वैसे लोग तरह तरह की मनोव्याधियों से बच जाएँ और दूसरे साहित्य व कला के क्षेत्र में उर्वर सामग्री का संचयन होगा। क्यों न अपने आसपास के लोगों को अभिव्यक्ति इन के अधिकाधिक सशक्त व महत्वपूर्ण माध्यमों से जोड़ा जाए व उन्हें इनके प्रयोग के लिए प्रेरित किया जाए ! आवश्यक नहीं है कि सब के सब उत्कृष्ट कोटि का रचनासंसार निर्मित कर देंगे, किन्तु इतना अवश्य है कि कि भले वे टूटा-फूटा रचेंगे किन्तु स्वयं को इस तरह अभिव्यक्त कर लेने के बाद वे हल्का अनुभव करेंगे और ऐसा होने से एक बेहतर व स्वस्थ मानसिकता वाले समाज का प्रादुर्भाव होगा। अतः कलम से निकलने वाली टूटीफूटी अभिव्यक्तियों पर भी अंकुश लगाना उचित नहीं। पता नहीं कौन-सा क्षीण स्वर और कलाभिव्यक्ति कब क्या रूप लेगी/लेगा और पता नहीं उसे गाने/कहने और अंकित करने वाला/वाली किस वेदनासे गुजरते हुए यह अधिकार पाकर कितना सुखी स्वस्थ अनुभव कर रहा होगा/होगी। 


आप क्या सोचते हैं ?

5 टिप्‍पणियां:

  1. सहमत हूँ, सब अपनी क्षमतायें पहचाने और उसे सप्रयास सँवारने में लग जायें।

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. सही कहा दीदी आपने, अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की स्वतंत्रता प्राप्त होना बहुत महत्वपूर्ण है. सही प्रकार से अपने भावनाओं एवं विचारों को व्यक्त न कर पाने के कारण ही कुछ महिलाओं की मनोदशा इस प्रकार हो जाती है की उम्र के एक खास दौर में आने पर वे विभिन्न भावनाओं में भेद करने में अक्षम हो जाती हैं.

    जवाब देंहटाएं

आपकी प्रतिक्रियाएँ मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं।
अग्रिम आभार जैसे शब्द कहकर भी आपकी सदाशयता का मूल्यांकन नहीं कर सकती।
आपकी इन प्रतिक्रियाओं की सार्थकता बनी रहे कृपया इसका ध्यान रखें।

Related Posts with Thumbnails

फ़ॉलोअर