पुरुष - सूक्त
© - डॉ. कविता वाचक्नवी
[ अपनी काव्य-पुस्तक "मैं चल तो दूँ" (2005) से उद्धृत ]
१.
श्यामवर्णी बादलों के
वर्तुलों में
झिलमिलाती धूप
फैली थी जहाँ
गाल पर
उन बादलों के स्पर्श
महके जा रहे।
२.
चेतना ने
ठहर
तलुवों से सुघर पद
छू लिए,
आँख में
विश्रांति का
आलोक - आकर
सो गया।
३.
साँझ नंगे पाँव
उतरी थी लजाती
सूर्य का आलोक अरुणिम
बस
तनिक-सा
छू गया।
४.
राग का रवि
शिखर पर जब
चमकता है
मूर्ति, छाया
मिल परस्पर
देर उतनी
एक लगते।
५.
थाम नौका ने
कलाई
लीं पकड़
हाथ से
पतवार दो
कैसे छुटें
और लहरों पर लहर में
खो गए
दोनों सहारे
ताकते ही रह गए
तटबंध सारे।
*****************************************
© - डॉ. कविता वाचक्नवी
[ अपनी काव्य-पुस्तक "मैं चल तो दूँ" (2005) से उद्धृत ]
१.
श्यामवर्णी बादलों के
वर्तुलों में
झिलमिलाती धूप
फैली थी जहाँ
गाल पर
उन बादलों के स्पर्श
महके जा रहे।
२.
चेतना ने
ठहर
तलुवों से सुघर पद
छू लिए,
आँख में
विश्रांति का
आलोक - आकर
सो गया।
३.
साँझ नंगे पाँव
उतरी थी लजाती
सूर्य का आलोक अरुणिम
बस
तनिक-सा
छू गया।
४.
राग का रवि
शिखर पर जब
चमकता है
मूर्ति, छाया
मिल परस्पर
देर उतनी
एक लगते।
५.
थाम नौका ने
कलाई
लीं पकड़
हाथ से
पतवार दो
कैसे छुटें
और लहरों पर लहर में
खो गए
दोनों सहारे
ताकते ही रह गए
तटबंध सारे।
*****************************************
चंद शब्दों में समुद्र सी गहराई, आसमान सी उंचाई, वाह गागर में सागर
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट भाव व संयोजन..
जवाब देंहटाएंनव बिँब-प्रतीकोँ सँग इस लघु वाटिका मेँ सँपूर्ण घाटी की सुरभि :-)
जवाब देंहटाएंउकेरी हुई रेखाओँ ने शब्दोँ को गहरा भाव दिया है । :-)
चित्रों ने शब्द-बिम्बों कों सहज सुबोध बना दिया है.
जवाब देंहटाएंअच्छे चयन के लिए अभिनंदन.
सांझ नंगे पाँव
जवाब देंहटाएंउतरी थी लजाती
सूर्य का आलोक अरुणिम
बस
तनिक-सा
छू गया ...बस छू ही गया..वाह कविता दी ...सभी सूक्त छू गए..
गहन भाव संजोये उत्कृष्ट प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबहुत सूक्ष्म और सुन्दर अभिव्यक्ति ,संयमित शब्दों की बुनावट .शुभ कामनाओं के साथ बधाई .
जवाब देंहटाएंBahut hi gehri kavityeN haiN aapki. Badhaee !
जवाब देंहटाएंwww.surjit-kaur.blogspot.com
bahut hee gehre arthon men pagi in kavitaon ke liye badhai
जवाब देंहटाएंपाँचों कवितायें बहुत अच्छी लगीं. शब्द चयन व भावाव्यक्ति दोनों ही खूबसूरत.
जवाब देंहटाएं