कंधों पर सूरज - डॉ. कविता वाचक्नवी |
( अपनी काव्य-पुस्तक " मैं चल तो दूँ " से)
प्रश्न गाँव औ’ शहरों के तो
हम पीछे सुलझा ही लेंगे
तुम पहले कंधों पर सूरज
लादे होने का भ्रम छोड़ो ।
हम पीछे सुलझा ही लेंगे
तुम पहले कंधों पर सूरज
लादे होने का भ्रम छोड़ो ।
चिकने पत्थर की पगडंडी
नदी किनारे जो जाती है
ढालदार है
पेड़, लताओं, गुल्मों के झुरमुट ने उसको
ढाँप रखा है
काई हरी-हरी लिपटी है
नदी किनारे जो जाती है
ढालदार है
पेड़, लताओं, गुल्मों के झुरमुट ने उसको
ढाँप रखा है
काई हरी-हरी लिपटी है
कैसे अब महकेंगे रस्ते
कैसे नदी किनारे रुनझुन
किसी भोर की शुभ वेला में
जा पाएगी
कैसे नदी किनारे रुनझुन
किसी भोर की शुभ वेला में
जा पाएगी
कैसे सूनी राह
साँस औ’ आँख मूँद
पलकें मींचे भी
चलता
प्रथम किरण से पहले-पहले
प्रतिक्षण
मंत्र उचारे कोई ?
साँस औ’ आँख मूँद
पलकें मींचे भी
चलता
प्रथम किरण से पहले-पहले
प्रतिक्षण
मंत्र उचारे कोई ?
कैसे कूद - फाँदते बच्चे
धड़-धड़ धड़- धड़ कर उतरेंगे
गाएँगे ऋतुओँ की गीता ?
धड़-धड़ धड़- धड़ कर उतरेंगे
गाएँगे ऋतुओँ की गीता ?
कैसे हवा उठेगी ऊपर
तपने पर भी ?
कैसे कोई बारिश में भीगेगा हँस कर ?
दीवारों के सन्नाटों में
क्या घटता है -
हम पीछे सोचें-सलटेंगे
तुम पहले
कंधों पर सूरज
लादे होने का भ्रम छोड़ो।
© सर्वाधिकार सुरक्षित
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तुम पहले
जवाब देंहटाएंकंधों पर सूरज
लादे होने का भ्रम छोड़ो
वाह...!
सुबह-सुबह इतनी शानदार कविता पढ़ने को मिली, मन प्रसन्न हो गया।
सुप्रभात।
बहुत खूब, मन मोह लिया कविता ने, विचारों में नया पन, आपके तेवर और कविता की लय सभी ने प्रभावित किया। बधाई !
जवाब देंहटाएंarthpoorn
जवाब देंहटाएंजितनी अच्छी आपकी सूचनाये होती है उनसे भी कही खुबसूरत आपकी ये कविता है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बोलना चाहूँगा।
जड़ता और मोहान्धता से लड़ती हुए एक अद्भुत कविता.. जिसमें ह्रदय की खनक है.. उर्वर लेखनी को बधाई।
जवाब देंहटाएंतुम पहले कंधो पर
जवाब देंहटाएंसूरज लादे रखने का
भ्रम छोड़ो !
बहुत सुंदर !