"शहर आग की लपटों में" - 3
- कविता वाचक्नवी
कल के भाग को पढ़ कर केलॉन्ग के अजेय कुमार जी ने एक वीडियो दिखा कर पूछा है कि -
" लेकिन क्या इस बुज़ुर्ग का आक्रोश नकली है ? ( see वीडियो )"
तो इस प्रकार "शहर आग की लपटों में" की तीसरी कड़ी का सूत्रपात हुआ।
मेरी इस राय पर अजेय जी ने पुनः प्रतिप्रश्न किया है कि -
" जी, चीज़ें काफी स्पष्ट हुई हैं. .कानूनी प्रवधानो ने इस प्रकरण को काफी सपोर्ट किया लगता है. कृपया एक बात का खुलासा करें - *वर्ग विशेष* और *विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग* क्या आप 21 वर्ष से कम आयु वालो के लिये कर रही हैं ? या वहाँ कुछ विशेष समुदायों (नस्ल) को विशेष अधिकार प्राप्त हैं?
महज़ वहाँ की सामाजिक / राजनैतिक व्यवस्थाओं को समझने की गरज़ से पूछ रहा हूँ . "
- कविता वाचक्नवी
गत दो तीन दिनों में लंदन व ब्रिटेन की बिगड़ी स्थितियों पर लिखे गए मेरे 2 लेखों
शहर आग की लपटों में
तथा
कल के भाग को पढ़ कर केलॉन्ग के अजेय कुमार जी ने एक वीडियो दिखा कर पूछा है कि -
तो इस प्रकार "शहर आग की लपटों में" की तीसरी कड़ी का सूत्रपात हुआ।
उनका संदर्भित विडियो देखा। जो युवक मारा गया है, उसके बारे में कुछ कहना समीचीन नहीं होगा। अच्छा होता कि वे इस वीडियो पर 2 दिन में आए लगभग तीन करोड़ लोग और उनके लगभग 49 हजार कमेंट्स भी देखते। जिस व्यक्तिविशेष पर ये सज्जन बोले हैं, उसका भी जिक्र वहाँ है। यदि इनकी बात थोड़ी देर को मान भी ली जाए तो क्या ऐसा लगता नहीं कि वह कितनी निराधार है; क्योंकि जिस देश में एक व्यक्ति ( जो कोई सेलेब्रिटी या उस तरह का प्रख्यात व्यक्ति नहीं था ) के मरने के कारण बवाल का यह हाल है और पुलिस बल प्रयोग बहुधा नहीं कर रही, उस देश में युवाओं को कितने विशेषाधिकार प्राप्त होंगे / हैं ! इसलिए युवाओं वाला मुद्दा तो एकदम निराधार और बेमतलब है। वस्तुतः विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति को जरा-सी खरोच भी (भले ही उसके अपने कारणों से आए) नागवार गुजरती है। और ऐसे समय में, जब देश की आम जनता से सदा से प्राप्त सहानुभूति और अनुकंपा छिनती दिखाई देती हो, तब यही हाल होता है। ... क्योंकि लूटपाट करने वाले दंगाई अधिकांश वर्ग-विशेष के थे। बहती गंगा में हाथ धोने के लिए विशेषाधिकार प्राप्त युवावर्ग भी उसमें जुड़ गया। 21 वर्ष से छोटे व्यक्ति बड़े से बड़ा गुनाह करके भी इस विशेषाधिकार के चलते निश्चिंत रहते आए हैं यहाँ। इसी संवैधानिक प्रावधान को बदलने की माँग इन घटनाओं के कारण अब ज़ोर पकड़ रही है ।
मेरी इस राय पर अजेय जी ने पुनः प्रतिप्रश्न किया है कि -
" जी, चीज़ें काफी स्पष्ट हुई हैं. .कानूनी प्रवधानो ने इस प्रकरण को काफी सपोर्ट किया लगता है. कृपया एक बात का खुलासा करें - *वर्ग विशेष* और *विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग* क्या आप 21 वर्ष से कम आयु वालो के लिये कर रही हैं ? या वहाँ कुछ विशेष समुदायों (नस्ल) को विशेष अधिकार प्राप्त हैं?
महज़ वहाँ की सामाजिक / राजनैतिक व्यवस्थाओं को समझने की गरज़ से पूछ रहा हूँ . "
21 वर्ष तक की आयु वाले भी इस वर्ग में आते हैं और मूलत: दक्षिण अफ्रीकी देशों के नागरिक इस अर्थ में विशेषाधिकार पाए हुए चले आए हैं कि यहाँ का समाज सदा से उन्हें निरीह और वंचित मान कर उनके प्रति आवश्यकता से अधिक उदारता अपनाता चला आया है, जिसका प्रतिफल यह हुआ कि इसका नाजायज लाभ लेने की प्रवृत्ति बहुधा अधिकांश में है। यहाँ के नियमानुसार बेरोजगारों और कम आय वर्ग के लोगों को इतनी सुविधाएँ प्राप्त हैं कि भारत में कोई लखपति भी उनसे ईर्ष्या करे। आपराधिक से आपराधिक मामलों में छोटी आयु वालों को दंड न देने का प्रावधान जैसी बीसियों व्यवस्थाओं के चलते ऐसे लोगों के गैंग बने हुए हैं जो हत्या, ड्रग्स, माफिया, लूटपाट, राहजनी कर के अपने विशेषाधिकार, चालाकी, व्यवस्था, आकार-प्रकार और बल में अधिक होने जैसे कई मिले जुले कारणों से निर्द्वंद्व रहते मौज उड़ाते हैं। पुलिस बहुधा अन आर्म्ड रहती है। दंड एक तो कम हैं, ऊपर से वे ऐसे हैं कि उनमें मानवीयता वाले मुद्दों के चलते अपराधियों को विशेष कष्ट नहीं और हानि नहीं होती।
ऐसे जानबूझ कर बेरोजगार रहने वाले लाखों को पालते पालते और अपनी उदारवादी नीतियों के चलते यह देश लुट-पिट गया है। कई चीजें ऐसी हैं कि उनका उल्लेख तक नहीं किया जा सकता कि कैसे व कौन से चालाक और शातिर लोग अनुशासित और उदारवादी व्यवस्था व देश का क्या क्या लाभ उठा रहे हैं। ऐसे में अब जब यहाँ देश की अधिकांश अर्थव्यवस्था `ऐसे 'लोगों का बोझ उठाते दोहरी हो चुकी है, देश आर्थिक तंगी की मार से जूझ रहा है, यहाँ के अपने हजारों लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं तो उनका सरकार के प्रति भी एक आक्रोश पनप रहा है कि भयंकर भारी टैक्स देने वाले इस देश के नागरिक क्यों अपराधियों और नाजायज लाभ उठाने वालों को सरकार को पालने दे रहे हैं। वस्तुतः जिसे हम लोग भारत में नस्लीभेद कह कर आरोपित करते हैं, वह भेद नस्ल और रंग का तो नाममात्र का है। असल में उसका दायित्व बाहर से आए उन अधिकांश लोगों की मानसिकता पर अधिक है जो अपने कपट, चालाकी, धूर्तता और हर कीमत पर लाभ उठाने की प्रवृत्ति के चलते कई आपराधिक चीजों में संलग्न है। उसका प्रतिफल हर उस वर्ग के लोगों को भोगना पड़ता है जो उस नस्ल से संबन्धित हैं। ऐसे में घुन के साथ कुछ गेहूँ तो पिसेगी ही।
मजे की बात यह है कि इन घटनाओं के बाद जहाँ एक ओर जीवनमूल्यों, दंड के प्रावधानों, कानून, समाज -व्यवस्था, भत्तों और सुविधाओं के पुनरीक्षण, पुलिस की सीमारेखा, आव्रजन के नियम.... जैसे मुद्दों पर पूरा देश तीव्र विमर्श में लग गया है वहीं एक तो ऐसे लोगों के सामाजिक बहिष्कार का स्वर मुखर हुआ है दूसरी ओर अभी भी ऐसे लोगों की बहुलता है जो इसलिए शर्मिंदा हैं कि बाहर के गरीब देशों से आए लोग तो अपनी प्रवृत्ति के चलते ऐसे हैं ही, किन्तु हमारे देश के लोगों ने (अर्थात् मूल ब्रिटिश ) ने कैसे इसमें भागीदारी की, देश का बड़ा युवावर्ग इस बात पर लज्जित है और अभी भी साथ देने वाले उन गोरे ब्रिटिशों को अधिक घृणा की दृष्टि से देख रहा है। है न अजीब बात ! मुझे यह ठीक वैसा लगता है जैसे हमारे यहाँ बहुधा लड़कियों महिलाओं को अपने को बचाकर रखने की सीख देते हुए कहते हैं कि पुरुष का क्या वह तो होते ही ऐसे हैं। इस में सीख यद्यपि महिलाओं को दी जाती होती है किन्तु निकृष्टता पुरुषवर्ग की रेखांकित की जा रही होती है; एक प्रकार से इस तरह कि जैसे वह तो लाईलाज प्राणी है !
मजे की बात यह है कि इन घटनाओं के बाद जहाँ एक ओर जीवनमूल्यों, दंड के प्रावधानों, कानून, समाज -व्यवस्था, भत्तों और सुविधाओं के पुनरीक्षण, पुलिस की सीमारेखा, आव्रजन के नियम.... जैसे मुद्दों पर पूरा देश तीव्र विमर्श में लग गया है वहीं एक तो ऐसे लोगों के सामाजिक बहिष्कार का स्वर मुखर हुआ है दूसरी ओर अभी भी ऐसे लोगों की बहुलता है जो इसलिए शर्मिंदा हैं कि बाहर के गरीब देशों से आए लोग तो अपनी प्रवृत्ति के चलते ऐसे हैं ही, किन्तु हमारे देश के लोगों ने (अर्थात् मूल ब्रिटिश ) ने कैसे इसमें भागीदारी की, देश का बड़ा युवावर्ग इस बात पर लज्जित है और अभी भी साथ देने वाले उन गोरे ब्रिटिशों को अधिक घृणा की दृष्टि से देख रहा है। है न अजीब बात ! मुझे यह ठीक वैसा लगता है जैसे हमारे यहाँ बहुधा लड़कियों महिलाओं को अपने को बचाकर रखने की सीख देते हुए कहते हैं कि पुरुष का क्या वह तो होते ही ऐसे हैं। इस में सीख यद्यपि महिलाओं को दी जाती होती है किन्तु निकृष्टता पुरुषवर्ग की रेखांकित की जा रही होती है; एक प्रकार से इस तरह कि जैसे वह तो लाईलाज प्राणी है !
अस्तु ! आम जनता जत्थे के जत्थे बना कर टूटे- फूटे घरों, दुकानों, बाज़ारों की मुरम्मत के अभियान में स्वेच्छा से जुटी हुई है, सामान और सहायता भेंट की जा रही हैं। पुलिस और सरकार की ओर से धरपकड़ के अभियान अबाध चल रहे हैं, घर घर की तलाशी हो रही है जहाँ लोगों के साथ साथ चोरी हुए सामान को पहचान कर गिरफ्तारियाँ निरंतर जारी हैं। आम नागरिकों ने सहयोग के लिए अपने अपने निजी कैमरों से लिए वीडियो भी इस लूट में भागीदारों को चीन्हने और उनकी धरपकड़ में सहयोग करने की भावना से सार्वजनिक कर दिए हैं। सहयोग और स्थितियों को वापस लाने के अभियान में पूरा देश एकजुट हो कर लगा है। सरकार ने नाबालिगों को दंड में छूट के अपने प्रावधान पर कहा है कि इस लूट व फसाद में भागी रहे वे व्यक्ति जो नाबालिग थे ऐसे अपराध के लिए सक्षम और समर्थ हैं और लूट करने लायक बड़े हो गए हैं तो दंड भोगने के लिए भी वे पर्याप्त बड़े माने जाएँगे। ब्रिटेन के अन्य कुछ नगरों में भी जबकि लूटपाट जारी है किन्तु साथ ही नियंत्रण और सुचारु करने के अभियान भी। पुलिस, जनता, सरकार आदि की भूमिकाओं की मीमांसा तीखी और तीव्र होती जा रही है ।
यह वीडियो सर्वाधिक शर्मिंदगी का सबब बना -
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"जले घरोंदे, बच्चे रोये, घायल माँ के लाल!
जवाब देंहटाएंमनुज बना मानव का शत्रु, बुरा हुआ है हाल!
मानव को मानव से जोड़ो, छोड़ दो ये उन्माद!
एक दूजे से प्रीत करो तुम, प्रेम भरे संवाद!"
"आज आपकी बहुत ही सुन्दर और समसामयिक लेख पढने का सौभाग्य हुआ! आपने एक एक शब्द अनमोल लिखा है! "
आपकी पोस्ट से ब्रिटेन के कायदे क़ानून से कुछ परिचय हुआ.यह सही बात है कि उदारवादी नीति का गलत फायदा उठाया जा रहा है. परन्तु यह जानकर हर्ष हुआ कि आम जनता प्रसाशन को सहयोग प्रदान कर रही है.काश भारत में भी ऐसा हो पाता.
जवाब देंहटाएंएक सुन्दर सार्थक लेखन के लिए बहुत बहुत बधाई आपको.
रक्षाबंधन के पावन पर्व कि आपको हार्दिक शुभ कामनाएं.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.
बहुत से नए तथ्य पता चले ...आभार आपका !
जवाब देंहटाएंमनाली से Kapoor Birsingh (https://www.facebook.com/profile.php?id=100000948475537)जी ने प्रतिक्रिया देते हुए लिखा है -
जवाब देंहटाएंDr. Kavita has caught the ailing nerve.Why all over the world Asians and particularly the Indians and Pakis become the victims of hatred displayed by the public of a particular country.We need to brood over the TRUTH.It is not because of the colour of the skin,the anger is also not because we belong to a certain Asean country...it,the anger,breeds because of our attitude,our insatiable hunger for wealth and unscrulous ways that we adopt to amass the same.
बरतानिया में हो रहे दंगों पर आपकी रपटें देखकर बहुत कुछ पता चला वहां के समाज के बारे में।
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ नया जानने को मिला , आभार
जवाब देंहटाएंआक्रोश समाज को सदा ही अपने ऊपर आता है।
जवाब देंहटाएंFrom: Abhishek Avtans
जवाब देंहटाएंTo: Dr.Kavita Vachaknavee <..........com>
Sent: Friday, 12 August 2011, 23:06
Subject: Re: (3) " शहर आग की लपटों में" - 3
कविता जी
नमस्कार
लंदन के दंगों से जुड़े आपके तीनों आलेखों को हिन्दी विमर्श के माध्यम से पढ़ने का मौका मिला। सचमुच लंदन के दंगे निन्दनीय हैं। लूटपाट और हिंसा को कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता है परन्तु पूरे प्रकरण को आपराधिक अवसरवादिता करार देने से मुझे इनकार है। लंदन के दंगों से जुड़े कुछ और पहलू पेश है:
१. अप्रैल 2011 में अश्वेत रैप गायक स्माइली कल्चर की पुलिस के हाथों मौत के बाद 2000 से अधिक अश्वेत लोगों की हिस्सेदारी में एक बहुत बड़ा अहिंसक और शांतिपूर्ण प्रदर्शन स्कॉटलैंड यार्ड में आयोजित किया गया था पर जिसे शायद ही किसी ने गंभीरता से लिया था। यहाँ देखें खबर (http://www.channel4.com/news/police-failed-miserably-dead-reggae-star-smiley-culture)
२. दक्षिणी लंदन की अश्वेत जनता IPCC पर भरोसा नहीं करती और पुलिस के स्टॉप एण्ड सर्च कार्यक्रमों से नाखुश है। यहा देखें राय (http://www.thisislondon.co.uk/standard/article-23976405-we-need-answers-about-the-death-of-mark-duggan.do)
२. टॉटनहम जहाँ दंगों की शुरूवात हुई थी, वहाँ बाल गरीबी के आँकड़े पूरे लंदन में चौथे स्थान पर हैं और वयस्क बेरोजगारी राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है। देखें यहाँ रिपोर्ट (http://www.endchildpoverty.org.uk/london/child-poverty-in-london-the-facts/haringey-27/)
३. OECD के अनुसार यू.के. में सामाजिक गतिशीलता अन्य समृद्ध विकसित देशों के मुकाबले कम है यानी गरीब घरों के बच्चे आमतौर पर अंतत: गरीब ही रह जाते हैं। देखें यहाँ रिपोर्ट (http://www.guardian.co.uk/business/2010/mar/10/oecd-uk-worst-social-mobility)
४. उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रभाव से लूट्पाट का मुख्य निशाना मुख्य रूप से बड़े स्टोर थे और लूटपाट को अंजाम देने वालों वयस्कों और किशोरों का सारा ध्यान महंगे फैशनेबल कपड़ों, जूतों, स्मार्टफोन, लैपटॉप, फ्लैटस्क्रीन टी.वी. आदि पर था। उनके लूटपाट का मकसद पेट भरना न हो कर हर कीमत पर ब्रांडेड उपभोक्ता उत्पादों को हासिल कर उच्चतर प्रतिष्ठा प्राप्त करना था। देखें यह खबर (http://www.thisislondon.co.uk/standard/article-23977742-looters-were-simply-shopping-by-other-means.do)
५. भविष्य के प्रति निराशावादिता और अपने हमउम्रों के सामने इज्जत पाने की होड़ में कई युवा दंगों में शामिल हुए। देखे खबर (http://www.guardian.co.uk/uk/2011/aug/12/uk-riots-analysis)
कुल मिलाकर कहा जाए तो लंदन में दंगे क्यूँ हुए इसका जवाब इतना सरल नहीं है जैसा कि प्रधानमंत्री डेविड केमरोन कह रहें हैं।
सादर
अभिषेक अवतंस
अभिषेक अवतंस जी के लंबे ईमेल का उत्तर पढ़ें इसी क्रम की नई आगामी प्रविष्टि (ब्रिटेन में बवाल की गुत्थियाँ ) में।
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