"मैं चल तो दूँ" : 'भाषा' : मूल व अनुवाद सहित सस्वर पाठ
जो मित्र इस कविता का सस्वर पाठ भी सुनना चाहें वे -
- कविता वाचक्नवी
"भाषा" (केंद्रीय हिन्दी निदेशालय, भारत सरकार की हिन्दी पत्रिका ) के नवम्बर-दिसंबर 2011 अंक में मेरी एक कविता "मैं चल तो दूँ" मूल हिन्दी व नेपाली अनुवाद (बैद्यनाथ उपाध्याय द्वारा किए गए ) के साथ प्रकाशित हुई थी ।
सुखद यह है कि "भाषा" और केंद्रीय हिन्दी निदेशालय की इस पत्रिका में संयोग से वर्ष 2007 से निरन्तर थोड़े-थोड़े अंतराल में मेरी कविताएँ व उनके अनुवाद प्रकाशित होते चले आ रहे हैं, जिसका शत-प्रतिशत श्रेय कविताओं के अनुवादकों को ही जाता है। अन्यथा मुझे तो यकायक सूचना मिलने पर ही पता चल पाता है कि किसी अंक में कोई रचना व अनुवाद प्रकाशित हो रहे है। बस, विदेश में होने के कारण बहुधा स्कैन प्रति तक न देख पाने का मलाल बना रह जाता है.... जब तक कि कोई सहृदय मित्र बढ़िया स्कैन कर के न भेज दें।
भाषा के उक्त अंक के अंक के मुखपृष्ठ तथा मूल व अनूदित पाठ के पन्नों की स्कैनप्रति उपलब्ध करवाने का आग्रह मैंने फेसबुक पर किया तो वरिष्ठ रचनाकार कवि सुधेश जी ने दिल्ली से उन पन्नों को स्कैन कर के मुझे गत दिनों उपलब्ध करवा दिया। उनके इस सौजन्य के लिए उनके प्रति आभार व्यक्त करती हूँ।
जो मित्र इस कविता का सस्वर पाठ भी सुनना चाहें वे -
- - इस ब्लॉग के साईडबार में `तृणतुल्य मैं" विजेट में देखें
- - डेनमार्क के रेडियो सबरंग की साईट पर `कलामे शायर' अथवा `Poet Recites' पर जाकर सूची को स्क्रॉल कर मेरे नाम के साथ सहेजे संकलन में इसे सुन सकते हैं
- - अथवा सीधे इस लिंक को क्लिक करें - मैं चल तो दूँ (सस्वर पाठ)
बड़े आकार में पढ़ने के लिए अलग अलग चित्र पर क्लिक करें -
aap bahut sahaj lekhika h, aapka canvas vistrat h, aap hmari ndiyon, jnglon v phadn se judi h, abhar
जवाब देंहटाएंaap bahut sahaj lekhika h, aapka canvas vistrat h, aap hmari ndiyon, jnglon v phadn se judi h, abhar
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई, सशक्त अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंभगवान आपको और तरक्की प्रदान करे
जवाब देंहटाएंमैंने यह रचना कल ही कविता कोष के माध्यम से पढ़ी थी!
जवाब देंहटाएंअच्छी भावपूर्ण रचना है!