`हिन्दी भाषा और नारी अस्मिता की बुलंद आवाज'
दीपावली वाले दिन अविनाश वाचस्पति जी ने ईमेल द्वारा व फेसबुक की मेरे वॉल पर सूचना दी तो पता चला। पश्चात ज़ाकिर भाई द्वारा भी सूचना मिली। मैं ज़ाकिर भाई की इस सदाशयता के लिए उनकी आभारी हूँ।
('जनसंदेश टाइम्स' (http://www.jansandeshtimes.com/), के 26 अक्टूबर, 2011 के 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ज़ाकिर अली रजनीश लिखित ब्लॉग समीक्षा -
"कुछ लोगों के लिए भाषा सिर्फ सम्पर्क का माध्यम होती है। वे उसे कपड़े और खाने-पीने की चीजों की तरह इस्तेमाल करते हैं और भूल जाते हैं। वक्त बदलने के साथ वे लोग गिरगिट की तरह बदल जाते हैं और उसी भाषा के विरोध में खड़े हो जाते हैं, जिसने उन्हें बोलने की तमीज दी, पहचान दी। ऐसे लोग जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करते हैं और इसे तरक्कीपसंद नजरिया बताकर अपनी इस करनी पर बेशर्मी के साथ इतराते भी हैं।
पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनके लिए भाषा का प्रश्न जीवन के समान होता है। उनके साथ भाषा का रिश्ता कपड़े की तरह नहीं संस्कृति के रूप में जुड़ा होता है। वे अपने व्यक्तिगत जीवन में तरक्की की कितनी ही सीढि़याँ क्यों न चढ़ जाएँ, अपनी मातृभाषा को दिल से लगा कर रखते हैं। ऐसे लोगों के लिए भाषा अपनी जड़ों से जोड़े रखने का जरिया होती है। ऐसे लोग चाहे देश में रहें अथवा विश्व के किसी भी कोने में, अपनी भाषा का झंडा बुलंद रखते हैं और अपनी गतिविधियों से उसका नाम सारे विश्व में रौशन करते हैं।
अमृतसर में जन्मीं डॉ0 कविता वाचक्नवी एक ऐसी ही हिन्दी प्रेमी ब्लॉगर हैं। पी-एच.डी., प्रभाकर एवं शास्त्री जैसी उपाधियों की धारक कविता पंजाबी, हिन्दी, संस्कृत, मराठी और अंग्रेजी भाषाओं की जानकार हैं। लेकिन उनका दिल बसता है हिन्दुस्तान की हरदिल अजीज हिन्दी भाषा में। यही कारण है कि नार्वे, जर्मनी, थाईलैण्ड, यू.के. और यू.एस.ए. जैसे देशों में रहने के बाद भी वे हिन्दी बोलना न सिर्फ गर्व का विषय समझती हैं, बल्कि हिन्दी के उत्थान के लिए प्राण पण से लगी रहती हैं। कविता का ब्लॉग ‘हिन्दी भारत’ (http://hindibharat.blogspot.com/) उनके इसी समर्पण की निशानी है।
भाषा विज्ञान, योग एवं आलोचना में रूचि रखने वाली कविता ‘महर्षि दयानन्द और उनकी योगनिष्ठा’, ‘समाज भाषा विज्ञान’ एवं ‘कविता की जातीयता’ जैसे महत्वपूर्ण पुस्तकों की लेखिका हैं और अनेक राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मानों से समादृत हैं। महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा सहित हिन्दी की अनेक समितियों, संस्थानों एवं परियोजनाओं से सम्बद्ध कविता हिन्दी के प्रारम्भिक ब्लॉगरों में से एक हैं। वे ‘विश्वम्भरा’ नामक संस्था की संस्थापक महासचिव हैं और इस संस्था के नाम से ही बनाए गए ब्लॉग (http://kvachaknavee.wordpress.com/) के द्वारा भी साहित्यिक, सांस्कृतिक व सामाजिक मुद्दों पर समाज में चेतना के प्रसार के लिए प्रयत्नशील रहती हैं।
ब्लॉग जगत में कविता की पहचान सिर्फ इतनी भर नहीं है। वे ब्लॉग जगत में जिस कार्य के लिए सर्वाधिक जानी जाती हैं, वह है नारी विमर्श से जुड़ा उनका योगदान। नारी चेतना को लेकर किया जाने वाला उनका यह कार्य ‘Beyond The Second Sex - स्त्री विमर्श’ (http://streevimarsh.blogspot.com/) ब्लॉग पर देखा जा सकता है। यह ब्लॉग नारी से जुड़े मुद्दों पर खुलकर बात करता है और नारी के शैक्षिक और सामुदायिक अधिकारों तथा नारी चेतना जैसे विषयों पर बेहद स्पष्टता के साथ अपने विचार रखता है। इसके साथ ही साथ सामाजिक विकृतियों से स्त्रियों को अवगत कराना तथा उनसे बचने के लिए प्रेरित करना कविता का मुख्य उद्देश्य है। इसीलिए वे गालियों के चरित्रहनन की परम्परा पर खुल कर लिखती हैं, डायन के बहाने स्त्रियों की सम्पत्ति को हड़पने की नीति को उघाड़ कर सामने रखती हैं, कुछ जगहों पर प्रचलित बच्चियों के खतने की प्रथा के खिलाफ आवाज उठाती हैं, पाँच-पाँच बेटियों की माँ के दर्द को बयाँ करती हैं और पुरूष प्रधान की नकारात्मक प्रवृत्तियों पर भी खुलकर अपनी लेखनी चलाती हैं।
‘स्त्री विमश’ सिर्फ नारी अधिकारों की बात करने वाला ब्लॉग नहीं है। अगर हम गहराई से देखें तो पता चलता है कि वह समाज में संवेदनाओं को बचाने के लिए उसको सहेजने के लिए कार्य कर रहा है। और इसका प्रमाण है उसपर परोसी जाने वाली साहित्यकारों की विभिन्न रचनाएँ। गुजराती लेखिका एषा दादावाला की ‘डेथ सार्टिफिकेट’ कविता एक ऐसी मार्मिक रचना है, जिसमें बेटी की मृत्यु पर उसके पिता की हृदयविदारक चीख का जीवंत चित्रण किया गया है- ‘तुम्हें अगर कोई दु:ख या तकलीफ थी/एक पिता होने के नाते ही सही/मुझे कहना तो था/यों अचानक/अपने पिता को/इतनी बुरी तरह से/हरा कर भी कोई खेल जीता जाता है कहीं? तुम्हारे शील्ड्स और सर्टिफिकेट्स/मैने अब तक संभाल कर रखे हैं/अब क्या तुम्हारा ‘डेथ सर्टिफिकेट’ भी/मुझे ही संभाल कर रखना होगा?’
कविता समाज में नारी अधिकारों की पैरवी को जितना जरूरी मानती हैं, उनकी नजर में उतना ही आवश्यक है बच्चों की बेहतर परवरिश। उनका मानना है कि प्रत्येक माता-पिता को बच्चों को भावनात्मक सहारा देना चाहिए और उन्हें बड़ा होने के लिए एक स्वस्थ माहौल देना चाहिए, जिससे बच्चों के चरित्र का विकास हो और वे एक अच्छे नागरिक के रूप में विकसित हो सकें। अपनी इस सकारात्मक सोच के कारण वे ब्लॉग जगत में एक रोल मॉडल की तरह जानी जाती हैं और भीड़ में रहते हुए भी एक अलग शख्शियत के रूप में पहचानी जाती हैं। "
पढ़कर बहुत अच्छा लगा था।
जवाब देंहटाएंजाकिर अली रजनीश ने जो भी लिखा है सब तथ्यपूर्ण, सटीक एवं प्रेरणास्पद है.
जवाब देंहटाएंअभिनंदन!
आपकी बातों से सहमत हूँ आपने जो भाषा और लोगों के बारे में लिखा पड़कर सच में अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंकभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर शायद आपके और मेरे विचार मिल जाएँ
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
बुलंद आवाज़ आज की पहली जरुरत है.जिसे हर हाल में सुना जाय.
जवाब देंहटाएं