10वाँ अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी उत्सव : `हिन्दी की वैश्विक भूमिका' - स्मारिका में लेख
राष्ट्रीय लिपि देवनागरी : कविता वाचक्नवी
गत माह दिल्ली में प्रवासी दुनिया, अक्षरम, हंसराज कॉलेज-दिल्ली विश्वविद्यालय, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् व विष्णु प्रभाकर जन्मशताब्दी समारोह समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित `10वाँ अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी उत्सव' 10 से 12 जनवरी को सम्पन्न हुआ।
गत वर्षों से उत्सव अपने महत्वपूर्ण व सार्थक आयोजनों के चलते अपनी एक महत्वपूर्ण व विशिष्ट पहचान बना चुका है। 8वें अंतराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव में 6 व 7 फरवरी 2010 को मैं स्वयं इसमें भागीदार रहकर इसका साक्षात् अनुभव कर चुकी हूँ।
इस वर्ष के आयोजन का विषय था "हिन्दी की वैश्विक भूमिका"। इस विषय पर केन्द्रित एक स्मारिका भी प्रतिवर्ष की भांति प्रकाशित की गई।
इस स्मारिका में मेरा भी एक लेख "राष्ट्रीय लिपि : देवनागरी" संकलित है, जिसे आप यहाँ देख सकते हैं। यह लेख मैंने मूलतः वर्ष 1999 ई. में लिखा था।
पूरी स्मारिका यहाँ देखें
अनायास ही आपकी परसों वाली पोस्ट याद हो आई जिसे आपने फेसबुक पर प्रकाशित किया था....आशा भोंसले के करारे तमाचे वाली...
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारे डॉक्टर साहब॥
जवाब देंहटाएंगहन आलेख, कई बिन्दुओं को सुस्पष्ट करता हुआ..
जवाब देंहटाएं''राष्ट्रीय लिपि:देवनागरी'' बहुत सुंदर आलेख, कविता जी. बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएं''लिपि की समानता ह्रदयों में समानता लाती है. बिचारों में समानता लाती है. राष्ट्रीय एकता के लिये एक प्रबल आधार तैयार होता है.''