मंगलवार, 2 सितंबर 2008

रिश्ते : दो स्थितियाँ - (कविता वाचक्नवी)

रिश्तों पर ये दोनों कविताएँ काफी पहले लिखी थीं। लेखनी के सितम्बर अंक में भी इन्हें देखा जा सकता है



रिश्ते : दो स्थितियाँ
(डॉ.)  कविता वाचक्नवी

(1)












रूठें कैसे नहीं बचे अब, मान-मनोव्वल के रिश्ते
अलगे-से चुपचाप चल रहे, ये पल दो पल के रिश्ते


कभी गाँठ से बँध जाते हैं, कभी गाँठ बन जाते हैं
कब छाया कब चीरहरण, हो जाते आँचल के रिश्ते


आते हैं सूरज बन, सूने में चह-चह भर जाते हैं
आँज अँधेरा भरते आँखें, छल-छल ये छल के रिश्ते


कच्चे धागों के बंधन तो जनम-जनम पक्के निकले
बड़ी रीतियाँ जुगत रचाईं, टूटे साँकल के रिश्ते


एक सफेदी की चादर ने सारे रंगों को निगला
आज अमंगल और अपशकुन, कल के मंगल के रिश्ते


(2)








रँगी परातों से चिह्नित कर चलते पायल-से रिश्ते
हँसी-ठिठोली की अनुगूँजें भरते कलकल-से रिश्ते


पसली के अन्तिम कोने तक, कभी कहकहे भर देते
दिन-रातों की आँख-मिचौनी, हैं ये चंचल-से रिश्ते


उमस घुटन की वेला आती, धरती जब अकुलाती है
घन-अंजन आँखों से चुपचुप, बरसें बादल-से रिश्ते


पलकों में भर देने वाली उँगली पर रह जाते हैं
बैठ अलक काली नजरों का जल हैं, काजल-से रिश्ते


कभी तोड़ देते अपनापन, कभी लिपट कर रोते हैं
कभी पकड़ से दूर सरकते जाते, पागल-से रिश्ते



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5 टिप्‍पणियां:

  1. Adarneeya kavitaji,
    Rishte sheershak se apkee donon kavitaen padhee.Achchee han.Aj ke samaya men badalte rishton ka achcha chitran.Ap bachchon ke liye bhee balsabha ke dwara kafee kuchh kar rahee han.Badhai.
    Mane bhee apne blog ke dwara bachchon ke hit men kuchh karne kee koshish shuru kee ha.Ap
    mere blog par sadar amantrit han.
    Hemant Kumar

    जवाब देंहटाएं
  2. रिश्तों के विभिन्न पहलुओं पर सुंदर चर्चा। बढिया कविता के लिये बधाई॥

    जवाब देंहटाएं
  3. kavitaji bahut hi achche... please visit my links also... Waiting for your feedback...

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  4. रिश्ते की दोनों स्थितियों का काव्य निर्वाह आपने बहुत सहजता से किया है. यह सराहनीय है.
    - शून्य आकांक्षी.

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  5. सच है रिश्‍तों का मर्म केवल स्‍त्री ही जानती है.. और वह स्‍त्री यदि कविमना हो तो क्‍या कहने। काव्‍य-बिम्‍बों में जो गत्‍यात्‍मकता है वह कवि के सामर्थ्‍य का परिचय देती है। अगाध भावों को जिस सरलता से पिरोया गया है, उस सरलता को प्रणाम। सांकल का दर्द और कच्‍चे धागों का नेह.. कब छाया कब चीर हरण.. और फिर दूसरे आयाम में.. उंगली पर रह जाने वाले चिन्‍ह.. अत्‍यन्‍त मार्मिक भाव चित्रण कविता में हुआ है। कविता जी आपको बधाई।

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