स्त्रीविमर्श स्त्री को शोषण का अधिकार देने/दिलवाने का अभियान नहीं है : कविता वाचक्नवी
कुछ मित्र/पाठकों ने सन्देश भेज पूछा है कि मैं तो सदा से स्त्री व स्त्रीविमर्श सम्बन्धी लेखन व कार्यों के प्रति प्रतिबद्ध/ पैरोकार रही हूँ, फिर १२ फरवरी के अपने लेख में "दूसरों के जीवन में काँटे बोने और टीवी देखने के अतिरिक्त कुछ नहीं करतीं" जैसी स्त्री-विरुद्ध टिप्पणी कैसे लिख गयी।
तो प्रिय पाठको / मित्रो ! आपको स्त्री-विमर्श का आशय, अभिप्राय और उद्देश्य इत्यादि समझना बहुत अनिवार्य है। मेरा स्त्री-विमर्श स्त्री को शोषण का अधिकार देने/दिलवाने का अभियान नहीं है; और सिद्धान्ततः भी स्त्रीविमर्श इस अवधारणा पर नहीं टिका। स्त्री-विमर्श और स्त्री-सशक्तीकरण मूलतः शोषित स्त्री को शोषण से मुक्त करवा उसे सबल बनाने व लैंगिक असमानता को दूर कर समानता का अधिकार दिलवाने का अभियान हैं ताकि वे भी समाज की उन्नति में बराबर की सहभागी हो सकें; न कि उसे समाज के किसी अन्य वर्ग के शोषण का अधिकार दिलवाने का। जो लोग स्त्री-विमर्श का उपयोग इसके विपरीत अथवा इतर अर्थों में करते हैं वे मूलतः अपनी स्वार्थसिद्धि और अज्ञानता का ही परिचय देते हैं। यदि स्त्री का सशक्तीकरण दूसरों के शोषण हेतु है तो फिर उनमें और समाज के दूसरों स्त्री-शोषकों में अन्तर ही क्या रह गया। ऐसे में स्त्री-विमर्श के हम जैसे पैरोकारों का दायित्व समाज को ऐसी शोषक स्त्री के शोषण से मुक्ति दिलवाने का भी हो जाता है।
जिस प्रकार कोई न्यायालय किसी अपराधी को इसलिए क्षमा या दया नहीं दे सकता कि उसके अपराधी बनने के मूल में अमुक-अमुक व्यक्ति और अमुक-अमुक घटना का हाथ है तो परिस्थितिवश वह अपराधी बन गया, अतः उसे क्षमा कर दिया जाए ! न ! कदापि नहीं ! ऐसे में तो उन्हें दोहरा दण्ड मिलना चाहिए कि एक तो स्वयं अपराध किया और साथ ही दूसरों को अपराधी बनाने वाला घटनाक्रम और परिस्थितियाँ रचीं। इसी प्रकार भले ही स्त्री हो या पुरुष, वह भले ही किन परिस्थितियों में शोषण का अपराध करे, उसे उसके अपराध के लिए दोषी ठहराया जाना होगा। किसी को इसलिए क्षमा नहीं किया जा सकता कि वह स्त्री है या पुरुष। अपराध, दण्ड और क्षमा में किसी भी व्यक्ति को रिज़र्वेशन नहीं मिलना चाहिए। अन्यथा समाज का ढाँचा चरमरा जाएगा और असन्तुलन, असमानता व अत्याचार बढ़ेगा। इसलिए स्त्री-सशक्तीकरण स्त्रियों को दूसरों के प्रति दुर्व्यवहार, छल, कपट, प्रपञ्च, शोषण और अत्याचार करने का लाईसेन्स देने / दिलवाने का अभियान नहीं है। जो इसका उपयोग इन अर्थों में करते हैं, वे अपराधी हैं, भर्त्सना-योग्य हैं और स्त्री-मुक्ति के प्रत्येक अभियान को उनकी निन्दा व विरोध करना चाहिए।
जो पुरुष स्त्री-विमर्श की आड़ में अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं, उनको उठा बाहर फेंकना चाहिए और जो स्त्रियाँ घरों में या बाहर अपने स्त्री होने का लाभ लेते हुए समाज के किसी भी वर्ग के विरुद्ध किसी भी प्रकार की धूर्तता, चालाकी, वितण्डा या लाभ उठाने की मनोवृत्ति दिखाती हैं या कार्य करती हैं, तो उनकी भी खबर ली जानी चाहिए और उनका किसी भी प्रकार समर्थन / सहयोग नहीं किया जाना चाहिए। स्त्री-सशक्तीकरण का अर्थ पुरुष का शोषण करना भी नहीं होता। यह शोषण का हथियार नहीं, अपितु आपकी आत्मरक्षा का उपाय और सामर्थ्य प्रदान करने का अभियान है, ताकि कोई आपकी अस्मिता पर आघात न करे ; किन्तु आप आत्मरक्षा के अतिरिक्त संहार और शोषण में इस हथियार को प्रयोग करने लगेंगी तो आपको भी उसी प्रकार धिक्कार मिलेगा जैसा आपका शोषण करने पर पुरुष को मिलता है !
- Kavita Vachaknavee
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