हमारे दिल में : देश मेरा रंगरेज़ : हम लोग
कुछ दिन पूर्व "हम लोग " (दैनिक) के द्वारा १५ अगस्त के विशेष संस्करण हेतु आहूत एक प्रश्नोत्तर- परिचर्चा की प्रश्नावली उनके सौजन्य से प्राप्त हुई. उस प्रश्नावली में ५ प्रश्न थे, जिन पर अपने विचार लिख कर निर्धारित समय तक भेजने की बात थी. अनिल जनविजय जी, सुधा धींगड़ा जी व तेजेंद्र शर्मा जी सहित मुझे प्रत्युत्तर लिखने थे.
आज के उनके दैनिक समाचार पत्र में उक्त परिचर्चा को प्रकाशित किया गया है; इस आशय की सूचना सहित समाचार पत्र के इस विशेषांक पर केन्द्रित तीन पन्ने मुझे डॉ. दुष्यंत जी के सौजन्य से प्राप्त हुए हैं. मैं उनकी सदायता हेतु आभार व्यक्त करती हूँ कि उन्होंने यह अवसर हमें उपलब्ध करवाया.
प्रिंटिंग / छपाई में कुछ प्रूफ की त्रुटियाँ व अंतर रह गए हैं, तदर्थ मैं अपने हिस्से के पाठ को मूल रूप में भी प्रस्तुत कर रही हूँ. ताकि वाक्य व कथन स्पष्ट हो सकें.
१. How do you feel being Indian?
स्वाभाविक है कि भारतीय होना मेरे अस्तित्व से जुड़ा है इसलिए अपने अस्तित्व के प्रति सहज निजता, गौरव व ममत्व का भाव है|
२. How do you miss India?
भारत का अभाव व कमी किस रूप में अनुभव करने का जहाँ तक प्रश्न है, तो उतना ही अभाव खटकता है जितना आज के भारत में अपने बचपन के भारत का खटकता था. वस्तुत: हमारे सपनों और वाँछाओं का भारत तो बरसों पहले जाने कहाँ खो गया या लुप्त हो गया. आज का भारत, मेरे जैसे व्यक्ति के लिए, उतना ही पराया भारत से बाहर रहकर है, जितना कि भारत में रहकर . मेरी कल्पना के भारत से यह छवि मेल ही नहीं खाती, भले भारत में रहूँ या भारत से बाहर. लगभग सब कुछ जैसे विलुप्ति के कगार पर पहुँचा हुआ हो. भारत यों भी मूलतः किसी भोगौलिक सीमारेखा का नाम नहीं था, भारत एक संस्कृति था जिसके मानने वाले भारतीय कहाते थे. उस संस्कार के लिए किसी क्षेत्रीय सीमारेखा का अस्तित्व `नेशन' के रूप में सीमाएँ तय होने से पूर्व तक नहीं था. ये सीमाएँ बहुत नई व्युत्पत्ति हैं, जबकि भारत लाखों वर्ष पुराना ; जब इन भोगौलिक सीमाओं से देशों के अस्तित्व की अवधारणा भी उत्पन्न न हुई थी. इसलिए जब-जब वह संस्कार जहाँ जहाँ नहीं है , तहाँ तहाँ भारत भी नहीं. वहाँ वहाँ उस का अभाव खटकता है.
३. Do you hope to settle in India in your life time ?
सच कहूँ तो मुझे भारत के अपराध की दर और निरंतर भ्रष्टतर होते चले जाते चरित्र से बहुत डर लगता है. परिवारों से लेकर संस्थाओं-संगठनों व प्रत्येक तंत्र में जितना छल-कपट, स्वार्थ- ईर्ष्या, झूठ-फरेब व चालाकी-राजनीति भर गई है, वह भीषण है. इन सारे कुचक्रों के बीच वह भारत कहीं दीखता ही नहीं जिसके पास दौड़ कर पहुँच जाया जा सके. इन अर्थों में वह गोद खो गई है मानो, जिसकी प्रतीति-भर से प्राणों में सुख का संचार होता है. लौट कर उस गोद की आस तक न होने पर कहाँ जाएगा व्यक्ति ? फिर पारिवारिक कारण भी एक महत्वपूर्ण तथ्य हैं क्योंकि जब-जब जहाँ परिवार रहेगा वहाँ-वहाँ रहना अनिवार्य होगा. हाँ, कल्पना में उस छाँव की खोज तो सदा बरसों से मन के भीतर चलती रहती है जैसी पंछियों का पेड़ कट जाने पर होती है. इतना निश्चित है कि मेरी तरह उस छाँव की कमी बहुत से भारत में रहने वाले लोगों को भी अवश्य अनुभव होती होगी, है.
४. How nostalgic you are about India and your places in India ?
बिना लाग लपेट के कहें तो पागलपन की सीमा तक वे स्थल रीता बना गए हैं, छूटने के बाद से. बचपन की गलियाँ और पर्वत घाटियाँ मानो हरदम बुलाती हों.
इसी की खोज पूरी नहीं होती. तरसती हूँ कि कहीं से लौट आएँ वे मधुर आत्मीय दिन.
५. Are you satisfied with image of India outside India?
कदापि नहीं, भारत में रहने वाले और भारत से बाहर रहने वाले भारतीयों ने देश के सम्मान के साथ भयंकर खिलवाड़ किए हैं, उस पर राजनीति के चौसर पर गोटियाँ खेलने वालों व लूट खसोट करने वालों ने रही सही कमी पूरी कर दी. स्वाभिमानी और सम्मानजनक भारत की इस विकट कुरूप छवि में सुधार के लिए प्रत्येक भारतीय को आत्मानुशासन, औदात्य व चरित्र का अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत करना होगा, जिसकी अत्यंत कमी है समकालीन अवस्था में तो. समूचे भारत में केवल भारतीय सेना ही है जिसकी छवि तुलनात्मक दृष्टि से उन्नत है और उसका कारण है भारतीय सेना का देश के प्रति असीम आस्थावान व समर्पित होना, केवल औपचारिकतावश या नौकरी समझ कर नहीं अपितु वास्तव में धैर्यशीलता से देश के स्वाभिमान के लिए संवेदनावश बलिदान हो जाने की भावना की विद्यमानता और उदाहरण; अन्यथा प्रत्येक क्षेत्र में हमें बहुत सार्थक प्रयत्न करने हैं.
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यहाँ विशेषांक के वे चार पन्ने एक एक कर देखे जा सकते हैं -
Pg 1 - Humlog
Pg 2 - Humlog
Pg 3 - Humlog
Pg 4 - Humlog