मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

दिल्ली तुझ पर थू थू थू

दिल्ली तुझ पर थू थू थू :  कविता वाचक्नवी


एक समय था जब रेल दुर्घटना हुई तो रेल मंत्री दायित्व लेते हुए त्यागपत्र दे देते थे, या इसी प्रकार किसी अन्य विभाग की व्यवस्था में खामी के चलते कोई दुर्घटना होने पर संबन्धित विभाग और मंत्रालय के शीर्ष नेता सारा दायित्व लेते हुए पदत्याग देते थे। विदेशों में अब भी कई बार ऐसे उदाहरण दीख जाते हैं, जैसे अभी अभी बीबीसी के महानिदेशक ने एक गलत समाचार प्रसारित होने के चलते अपना पद स्वेच्छा से छोड़ दिया। भारत में अब वह युग कदापि नहीं रहा। कोई नेता, मंत्री या अधिकारी दायित्व नहीं लेता और बेशर्मों की तरह डटा और चिपका रहता है, भले ही कुछ भी हो जाए। 
A protest in Delhi on 29 November 2010 against the gangrape

यह बेशर्मी राजनेताओं के स्तर पर ही मात्र नहीं है, अधिकारियों व नौकरशाहों के स्तर पर भी है और उस से भी आगे बढ़कर उनके सगे संबंधियों के स्तर पर भी। और तो और यह बेशर्मी अब आम आदमी के स्तर पर भी है क्योंकि ऐसी दुर्घटनाओं के बाद जब यदि कुछ लोगों का गुस्सा व आक्रोश निकलता है तो उस गुस्से व आक्रोश तक का विरोध करने के लिए लोग जुट जाते हैं कि समाज में ऐसी घटना का हमसे कुछ लेना देना नहीं है अतः जिसने किया है वह जाने ! कोई बचाव का एक तर्क लाता है और कोई इसके लिए दूसरा। कोई संस्कारों के महत्व पर परिचर्चा करवाने के तर्क देकर अपनी नपुंसकता दिखाता है और कोई अच्छी चीजों को देखने की समझाईश देकर अपना पल्ला झाड़ता है। गलत को गलत कहने का साहस तक लोगों में शेष नहीं। कल चलती बस में सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई लड़की के समाचार पर आक्रोश के स्वर पढ़कर जिस तरह लोग इस दुर्घटना का विरोध करने वालों को ही समझाईश देते व कुतर्क करते नजर आए वह उनके लिए डूब मरने की बात है। 


यह बेशर्मी और यह गैरजिम्मेदारी शीर्ष से जड़ तक नहीं अपितु जड़ से शीर्ष तक गई है। इस बेहया समय और बेहया वातावरण में लोगों में इतना साहस तक नहीं बचा कि जो सच्चे मन से मान सकें कि हाँ धिक्कार है हमें और हमारी समूची नस्ल को जो ऐसे अमानवीय कार्य करते हैं और करने के बाद उस पर शर्म से लज्जित होने के बजाय, और यदि लज्जा भी नहीं तो मात्र विरोध करने की बजाय, विरोध करने वालों को ही उलटे धिक्कारते और नपुंसक बहानेबाजी करते तरह तरह के कुतर्क करते है। 
इस बेशर्मी व चालाक तर्कों वाली बुद्धि और शिक्षा को धिक्कार है


23 टिप्‍पणियां:

  1. nahi nahi nahi nahi......... delhi tujh par thoo thoo
    hum kahte hai delhi i love you
    hum kahte delhi i love you
    delhi me kuchh badboo jaroor hai, bas sarkaar ko jaroorat us badboo ko saaf karne ki , yaani ki jo jo galat hai, balatkaari hai aur bhrashtachaari hai unko skht se sakht sazaaaaaaaaaaaaa dene ki

    naresh kumar sharma
    all india students weelfare council
    EMAIL ID :-
    POORANSURAKSHA@GMAIL.COM
    EDUCATIONLOVERS@GMAIL.COM

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  2. नरेश हम सब दिल्‍ली को प्‍यार करते हैं, लेकिन अब हम सबको मिलकर एक आवाज बनना होगा।

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  3. 48 घंटे 3 रेप, बधाई हो आंटियो (क्षमा करियेगा) राजमाताओ दिल्ली को रेप कैपिटल बनाने के लिए आपका यह एहसान नहीं भूलेगा हिन्दुस्तान

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  4. बलात्कारियों को सलाखों तक पहूंचाने के लिए समाज को ही आगे आना होगा। यह एक अमानवीय कृत है और इससे लड़ने के कड़े कानून के साथ साथ समाज को भी कड़ा होना होगा..

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  5. We all do get sexual thoughts but we should be sensible enough to make it pass over our head.

    And Satvik Lifestyle is the best way for remaining calm nd cool when we get these thoughts..

    Also, a Satvik person from mind and body can never do rape.

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  6. दुर्घटना का विरोध करने वालों को ही समझाने वाले ... ही दरअसल इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्‍मेदार मनोवृति की पृष्‍ठभूमि बनाते हैं... बार-बार अपराध और अपराधी का विश्‍लेषण करने की बजाय अपराध के शिकार पर ही दस तरह की नसीहतें लाद देते हैं...
    ऐसे लोग बलात्‍कारियों से कम अपराधी नहीं... जो पीडि़त का जीवन भर मानसिक बलात्‍कार करते रहते हैं... उसे उस तकलीफ को भूल कर समान्‍य जीवन जीने का अवसर नहीं देते...

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  7. झेल रहे हैं आम जन, नेता रोटी सेंके |
    कानून साथ देता उसका, जो रुपैया फेंके ||

    आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (19-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | अवश्य पधारें |
    सूचनार्थ |

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  8. अपराधियों को ऐसी सजा मिले कि भविष्य में किसी को भी बलात्कार की सोचने से पहले ही रूह काँप जाय।

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  9. फेसबुक par ही सुबह एक मोहतरमा का स्टेटस था कि लड़की देर रात किसी लड़के के साथ फिल्म देखने क्यों गयी थी ...? गुवाहाटी वाले केस में भी उन्होंने लड़की को ही दोषी ठहराया कि वो देर रात पब से निकली थी ... क्या लड़कियों का देर रात फिल्म देखना अपराध है ...?? और अगर है भी to उसकी इतनी बड़ी सजा ...? पब से निकली लड़की का इतना बड़ा गुनाह था .... कि सरेआम उसके कपडे फाड़े गए ...?

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  10. किसी पर जब मुसीबत आती है तो जो कायर होते हैं वो मुँह छुपा लेते हैं. कुछ लोग तमाशबीन तो बनते हैं किन्तु खुलकर बिरोध करने की ताकत नहीं रखते. ऐसे लोगों को अपने भले-बुरे का अहसास रहता है कि कहीं उनपर कोई आंच ना आ जाये. लोग कम से कम किसी घृणित काम का बिरोध तो कर सकते हैं वर्ना ये समाज और दुस्साहसी हो जायेगा जहाँ घृणित काम करने वाले भेड़ियों की कमी नहीं होगी.

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  11. नियम-कानूनों की धज्जियाँ उड़ानेवाले जब खुली छूट लिये घूमते हैं ,विशेष पहुँच होने के कारण उनके अपराधों पर लीपा-पोती कर दी जाती है तो अनाचार ऐसे ही फैलता है .

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  12. sahi kaha aapane , us shiksha par punrvichar karake use Bharatiy mulyo se jodana hoga avilamb , sadhuwad !

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  13. जब तक पुरुष मानसिकता नहीं बदलती तब तक किसी प्रकार की सुरक्षा की निश्चितता नही है !

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  14. आपने जो लिखा है वह गहरे सामाजिक सरूकारों से जुड़ा है वोट बैंक की राजनीति से जुड़ा कोई सीधा हल नहीं है इस सामाजिक विकृति की .दोषियों को तो सख्त सज़ा हो ही साथ ही सरकार को भी फांसी पे लटकाया जाए .भले प्रतीक स्वरूप .सामाजिक हस्तकक्षेप को पुनर जीवित किया जाए .

    हमारे समय की एक विकृति की कराह अनुगूंज और ललकार आपकी रचना में है .

    बेशक व्यभिचार पहले भी था ,परदे के पीछे था ,अब चैनलिए उसे ग्लेमराइज़ करतें हैं .एक लड़की बिना किसी प्रतिबद्धता के एक मर्द के साथ रहती है ,पांच साल बाद कहती है मेरे साथ रैप हुआ

    ,कानूनी

    स्वीकृति प्राप्त है लिविंग इन को .ये सब हमारे दौर की विकृतियाँ हैं .

    युवा संगठन सिर्फ वोट लूट के लिए बनें हैं ,मौज मस्ती के लिए बनें हैं ऐसे मामलों में इनका कोई सामाजिक हस्तकक्षेप दिखलाई नहीं देता होता तो अब तक युवा राजकुमार दिल्ली में प्रदर्शन करते .

    ढकोसला देखिये "जय माता दी !" कहता हुआ यही मरदाना वैष्णो देवी की चढ़ाई करता है ,लेकिन कालिदास की तरह उसी डाली को काटता है जिसपे बैठा होता है .हर किसी को काली के दर्शन नहीं होते वह महा मूर्ख ही रह जाता है .

    दुर्गा काली को पूजने वाला नारी के मूर्त दुर्गा रूप का सम्मान क्यों नहीं कर सकता .

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  15. शीला और सोनिया दोनों रहती दिल्ली में ,

    सरे आम फटती अंतड़ियां औरत की अब दिल्ली में .

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  16. बाँझ व्यवस्था देख ,तमाशा थू थू करती दिल्ली में ,

    शीला और सोनिया दोनों रहतीं दिल्ली में ,

    सरे आम फटती अंतड़ियां औरत की अब दिल्ली में .

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  17. शासन सीधा और सोनिया का चलता जब दिल्ली में ,

    सरे आम अब रैप से फटतीं अंतड़ियां अब दिल्ली में .

    दिल्ली तुझ पर थू थू थू
    - Dr Kavita Vachaknavee

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  18. jab bhi prja par koi aanch aayi hai harbar raza hi doshi raha hai kisi bhi kaal me , aur jab pani sar se gujar gaya to smaj me logon ne kranti la di......indira ke bhi manmane aur dhulmul rawaiye se indira gandhi ke hi rakshkon ne indira ko goli maar di thi, waise hi kuchh in maidmo ka kiya jaye ,shila ho ya soniya goli se bhun dalna chahiye aisi mahila rakshak ko jo kuchh nahi kar pa rahi surksha k naam par.jo ek nari hokar khud ac. gadi ac. room me baith kar shasan tantra apne hath lekar mauj kar rahi......... bas aise halat me goli se uda dene ka hi man me khyal aa ja raha baar baar....

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  19. शासन सीधा और सोनिया का जब चलता दिल्ली में

    शासन सीधा और सोनिया का चलता जब दिल्ली में ,

    सरे आम अब रैप से फटतीं ,अंतड़ियां अब दिल्ली में .

    चंद मज़हबी वोट मिलें ,आग लगे चाहे भारत में ,

    दागी नेता पुलिस के डंडे ,पिटते साधु दिल्ली में .

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  20. स्त्री चेतना (स्वतंत्रता) के विरोधी, कामांध मर्दवादी अमानुषिक कृत 'बर्बर बलात्कार' के अनगिनत समाचार आए दिन मिलते रहते है. दोष शिकार करने वाले (पुरुष) को नही, शिकार (स्त्री)को दिया जाता रहा है. इस बार यह पहली बार हुआ है कि मीडिया और आम जनता विक्ट्मि की पीड़ा और अपमान से लज्जित हो कराह कर चिल्ला उठी है. शोर मचाना और आवाज़ उठाना ही काफ़ी नही है. उस पुरुष के पुरुषत्व के उस अँग को सज़ा मिलनी चाहिए जिसे लेकर वह इतराता हुआ, दंभ में चूर ऐसे कृत्य करता है.
    स्त्री का स्वतंत्र होना, उसका सचेत होना, उसका हँसना खिल- खिलाना ऐसे मर्दवादियों के अहम को आहत करती है जो सोचते हैं स्त्री सिर्फ पुरुष के कामक्रीणा के लिए बनाई गई है. क्या फर्क है हिंदू, मुसलमान और तालिबानियों में जब बात आती स्त्री के निर्दोष खिलखिलाहट, मनपसंद खुशियों के तलाशने की.....

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  21. सरेआम इज्जत लुटी हुआ अकथ ब्यभिचार।
    तब अपनी आँखें खुली मच गया हा-हाकार॥

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