मंगलवार, 27 जून 2023

साहित्यिक हिन्दी लेखन का वर्तमान व भविष्य : कविता वाचक्नवी

इधर मैं हिन्दी की किसी एक ऐसी कृति को खोज रही थी जो साहित्यिक नोबेल के लिए स्पर्धा के योग्य भले न हो, किन्तु  कम–से–कम उस से छह–आठ सोपान नीचे तक ही आती हो। दुर्भाग्य से हिन्दी में गत लगभग तीन दशक का साहित्य भी देखें तो  कोई कृति आसपास नहीं ठहरती। जिन्हें अमुक लेखक, अमुक कृति आदि सब से बड़े लगते हैं, उन्होंने विश्व साहित्य नहीं पढ़ा।

 किसी कृति  की गुणवत्ता उस की भाषा, प्रहार, चित्रण, सन्देश या कथावस्तु–मात्र ही नहीं होते, अपितु कृति के प्रत्येक तत्त्व की मौलिकता तथा उन पर विश्व की किसी अन्य कृति के किसी भी प्रकार के प्रभाव का न होना भी होते हैं। स्थानीयता के साथ  वैश्विकता को साधने का कौशल भी होते हैं, कथावस्तु हेतु विषय–चयन भी आत्यंतिक महत्व का होता है, एक ही कृति में कितना इतिहास और कितना मिथ/कल्पना है, यह भी कम महत्व का नहीं होता। एक ही कृति में विषय–वैविध्य के स्तर पर कितना विस्तार है, उन की प्रभविष्णुता, उन की गहराई– ऊँचाई और विस्तृति कितनी है, इत्यादि भी मापक होते हैं। ऐसे में उस कृति को पटकथा के रूप में ढाला जाना कितना सुगम–दुरुह है, यह भी  कृति के प्रभाव में गुणात्मक–घनात्मक योगदान करता है। 

जिन्हें लगता हो कि ये सब बातें केवल वायवी हैं, या जिन्हें अनुमान लगाना हो कि विश्व की अन्य अनेक भाषाओं में कितने व कैसे कठिन श्रम से, किस उच्च कोटि का लेखन होता है; उन के लिए मात्र एक कृति ही पर्याप्त है।  

कुछ वर्ष पूर्व बीबीसी ने पीकी ब्लाइण्डर्ज़ नामक नाटक शृंखला का निर्माण किया था, जो सत्यकथा तथा कल्पना की ऐसी बुनावट था, जो विश्व श्रेणी की साहित्यिक कृति के रूप में परिगणित न होते हुए भी एक समूची वैश्विक स्तर की कृति है, जिस के मूल लेखक स्टीवन नाईट हैं (दो और लेखक भी अल्पकाल हेतु सहयोगी रहे)। इसे हम अपने, विशेषतः हिन्दी लेखन के समक्ष रख कर देख सकते हैं। और अनुमान लगा सकते हैं कि कोई कृति वैश्विक कृति बनने के लिए अपने लेखक से किस कोटि, व किस स्तर की अपेक्षा करती है। और क्या हिन्दी का कोई लेखक उधार की, या लच्छेदार, या नारेबाजी की, या एजेण्डे की या उठाईगिरी की, या एकस्तरीय, या पुरस्कार हेतु, या छद्म राजनीति, या मनोरंजन, या मनोनुकूल के अतिरिक्त कुछ करता है क्या? मुझे तो स्वयं को,  सीखने और अपना आकलन करने की दृष्टि से भी पीकी ब्लाइण्डर्ज़ अत्यन्त महत्व की पटकथा लगी। और इस बहाने हिन्दी जगत की दोगलापन्थी और चुभती अनुभव हुई। हम हिन्दी की नयी पीढ़ी को रचना कौशल का संस्कार देने में विफल रहे हैं। कोई गम्भीर लेखक आगामी बीस वर्ष तो अभी हम हिन्दी वाले हिन्दी में जन नहीं सकते। सौभाग्य से,  गठमार कभी गम्भीर वैश्विक लेखक नहीं बन सकते। तब तक हम–आप नारेबाजी के लिए स्वतन्त्र हैं।

©–✍🏻 कविता वाचक्नवी©

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