रविवार, 24 अक्टूबर 2010

विदा


विदा
(अपने संकलन - ‘मैं चल तो दूँ’ से )
(डॉ.) कविता वाचक्नवी

 
Bride taking the rice to throw back.



This is done three times.


                   आज दादी, चाचियों, बहना, बुआ ने
                   चावलों से, धान से,
                   भर थाल
                   मेरे सामने ला
                   कर दिया है,
                   `मुठ्ठियाँ भर कर
                   जरा कुछ जोर से
                   पीछे बिखेरो
                   और, पीछे मुड़, प्रिये पुत्री !
                   नहीं देखो',
                   पिता बोले, अलक्षित।
   

                   बाँह ऊपर को उठा दोनों
                   रची मेहंदी हथेली से
                   हाथ भर - भर दूर तक
                   छिटका दिया है
                   कुछ चचेरे औ’ ममेरे वीर मेरे
                   झोलियों में भर रहे
                   वे धान-दाने
  
                   भीड़ में कुहराम, आँसू , सिसकियाँ हैं
                  
                   आँसुओं से पाग कर
                   छितरा दिए दाने पिता!
                   आँगन तुम्हारे
                   रोपना मत
                   सौंप कर
                   मैं जा रही हूँ.......।
               ***
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14 टिप्‍पणियां:

  1. 6.5/10

    बहुत सुन्दर ह्रदय-स्पर्शीय पोस्ट.
    शब्द संयोजन और प्रस्तुति का सऊर सीखने लायक.

    "आँसुओं से पाग कर"
    कृपया इस पंक्ति में 'पाग' शब्द का अर्थ स्पष्ट करें

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  2. विदावेला लोक और साहित्य दोनों में चिरंतन परंतु क्षण-क्षण-नूतन क्षण है.

    इस पर सर्वथा अभिनव इस अभिव्यक्ति के लिए बधाई.

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  3. मार्मिक कविता जी !
    उफ़ ...
    आँखे छलछला उठी,
    मैं कैसे झेल पाऊंगा यह घडी !

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  4. मन को भिगो देने वाली प्रस्तुति ....

    पाग का अर्थ ...जैसे शक्कर पारों पर चाशनी चडाई जाती है उसे पागना कहते हैं ....इसे डुबो कर भी समझा जा सकता है ..

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  5. आपका ब्लॉग अच्छा लगा . हिंदी के लिए जितना किया जाए कम है . निरंतरता बनाये रखे . कभी समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर अवश्य पधारे .http://rajneeshj.blogspot.com/

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  6. बेटी की विदाई बेटी के लिये और प्रियजनों के लिये कितनी भावनाओं को आंखों में उतार लाती है ।

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  7. ब्लॉग जगत में पहली बार एक ऐसा सामुदायिक ब्लॉग जो भारत के स्वाभिमान और हिन्दू स्वाभिमान को संकल्पित है, जो देशभक्त मुसलमानों का सम्मान करता है, पर बाबर और लादेन द्वारा रचित इस्लाम की हिंसा का खुलकर विरोध करता है. साथ ही धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कायरता दिखाने वाले हिन्दुओ का भी विरोध करता है.
    आप भी बन सकते इस ब्लॉग के लेखक बस आपके अन्दर सच लिखने का हौसला होना चाहिए.
    समय मिले तो इस ब्लॉग को देखकर अपने विचार अवश्य दे
    .
    जानिए क्या है धर्मनिरपेक्षता
    हल्ला बोल के नियम व् शर्तें

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  8. - लगभग सात माह बाद इंटरनेट की दुनिया में प्रत्यक्ष वापिस आई हूँ.

    - इस कविता पर टिप्पणियाँ देखीं तो पता चला कि इस बीच बहुत कुछ छूट गया है. सतीश जी ने इसका सन्दर्भ देकर एक मार्मिक पोस्ट लिखी. मैंने भी अभी अभी महीना भर पहले अपनी बेटी , दामाद पाकर विदा की.
    -
    अमरकुमार जी ने मेरी अनुपस्थिति रेखांकित की, तदर्थ अतीव आभारी हूँ, अन्यथा इस वर्चुअल जगत में कौन किसे स्मरण रखता है, बल्कि वास्तविक जीवन तक में भी लोग गए हुए निकतास्थों तक को मजे से भुलाकर नई मस्ती में रम जाते हैं.

    - उस्ताद जी ने " पाग कर " का अर्थ पूछा था, मैं तो नेट से दूर होने के कारण उत्तर न दे पाई किन्तु संगीता जी ने सही सही अभिप्राय स्पष्ट कर दिया, आभार.

    - अपना स्नेह बनाए रखें. पुनः आप सभी मित्रों का आभार.

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