शुक्रवार, 6 मई 2016

मेरे चरणचिह्न काजल-सिक्त

मेरे चरणचिह्न काजल-सिक्त : कविता वाचक्नवी


मैं ही राष्ट्र हूँ, मैं ही भारत,
मैं ही लोकतन्त्र
मैं ही मैं काँग्रेस हूँ
और केवल एकमात्र मैं ही मैं समूचा राज-वंश भी।

मेरे ख़तरे में पड़ते ही राष्ट्र खतरे में
मेरे खतरे में ही आते ही लोकतन्त्र चिरनिद्रा में
मुझ पर ख़तरा आते ही काँग्रेस पर आक्रमण
मेरे रँगे हाथ पकड़े जाने की आशंका ही राज-वंश का अस्तित्व मिटाने की साजिश;

मेरा विस्तार अपरिमित है
मेरे रूप और महिमा अपार
देश को धू धू जलाने की युक्तियाँ अपरम्पार
वंश और परिवारियों समेत सबके
भूमिसमाधि ले चुके रहस्यों वाले महाप्रस्थान के बावजूद
मैं कालजयी हूँ रक्तजायों सहित,

मेरे डैने सर्वग्रासी हैं
मेरी छाया देश की जड़ों को गला देने वाली
वंश की देहरी पर मेरे चरणचिह्न काजल-सिक्त


मेरे जिह्वा-गह्वर के अतल में, हे 'नर-पुंगव' ! ब्रह्माण्ड घूमता है
घूम जाएगा तुम्हारा मस्तिष्क भी
घुमाने के खेल युगाब्द से मेरा ही एकाधिकार हैं

By #KavitaVachaknavee

(यह कविता नहीं है)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी प्रतिक्रियाएँ मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं।
अग्रिम आभार जैसे शब्द कहकर भी आपकी सदाशयता का मूल्यांकन नहीं कर सकती।
आपकी इन प्रतिक्रियाओं की सार्थकता बनी रहे कृपया इसका ध्यान रखें।