सोमवार, 30 सितंबर 2013

फेसबुक तथा सोशल मीडिया के शिष्टाचार : कविता वाचक्नवी

फेसबुक तथा सोशल मीडिया के शिष्टाचार  :  कविता वाचक्नवी


छुट्टी के दिन सुबह पाँच बजे मेरे मोबाईल में चैटिंग के लिए इनबॉक्स में अवतरित हुए एक मित्र को कहना पड़ा कि भई अभी यहाँ सुबह के पाँच बजे हैं और यात्रा पर निकलना है, इसी कारण मैंने इतनी तड़के उठ कर अपना मोबाईल ऑन किया है, अभी बात नहीं कर सकती। यह एक दिन नहीं बल्कि हर दिन होता है कि किसी-न-किसी को कहना पड़ता है।


मैं ( व पूरा परिवार) अपना मोबाईल रात में सोते समय या तो 'ऑफ' कर देती हूँ या 'फ्लाईट मोड' पर डाल देती हूँ, ताकि परिवार की नींद में कोई व्यवधान न डाले। सुबह नींद टूटने या उठने पर उसे 'ऑन' करती हूँ। उसे 'ऑन' करते ही संभवतः सबको ऐसा प्रतीत होता है कि मैं ऑनलाईन बैठी हूँ और लोग चैटिंग करने लग जाते हैं। मुझे बड़ा संकोच होता है कि उत्तर न देने पर अगला बुरा मान जाएगा, अतः अधमुँदी आँखों और दिनचर्या व घर के कामों की बजाय सब कुछ छोड़ कर उन्हें उत्तर देना पड़ता है। बहुत असुविधा होती है। ऐसे मित्रों से निवेदन है कि यदि सामने वाला आपको ऑनलाईन उपलब्ध दीख रहा है और हरी बत्ती भी जलती रही दीख रही है, तब भी आवश्यक नहीं कि वह ऑनलाईन हो ही। हम लोग रात्रि सोने के अतिरिक्त शेष पूरा समय ऑनलाईन दिखाई देते हैं क्योंकि मोबाईल सदा ही 3G+ या वाईफ़ाई में होता है। इसका अर्थ यह नहीं कि हर समय फेसबुक या चैट पर समाधि जमाए बैठे हैं। इसलिए यदि कोई विशेष बात न हो तो यों ही इनबॉक्स में सन्देश भेजते रहना अच्छी बात नहीं है। या यदि कोई बहुत आवश्यक बात हो भी व सन्देश भेज ही दिया तो उत्तर की तुरन्त आशा न किया करें। 


दूसरी बात यह भी ध्यान रखनी चाहिए कि यहाँ ब्रिटेन का समय भारत से साढ़े पाँच घंटे पीछे है। जरा यह सोच-समझ लिया करें कि इस समय मेरे यहाँ क्या समय होगा। क्या उस समय किसी मित्र से व्यक्तिगत सन्देशों का आदान-प्रदान/चैटिंग उचित भी है या नहीं। उसके कामों में व्यवधान तो नहीं डाल रहे हम। आज के आधुनिक समय में ऐसा करके अपने को कितना नासमझ और मूर्ख प्रमाणित करते हैं। 


और तीसरी बात, मुझे शाम छह /सात बजे से अगली प्रातः 10 बजे तक किसी से बात करने में कोई रुचि नहीं होती है। मैं अपने परिवार के साथ व्यस्त भी होती हूँ और शाम के बाद किसी से व्यक्तिगत बातचीत व सन्देश आदि भेजने को उचित नहीं समझती हूँ। वह मेरा निजी पारिवारिक समय होता है, उसमें मैं ऑनलाईन तो हूँ, मध्यरात्रि तक नेट पर काम भी करती हूँ किन्तु व्यक्तिगत वार्तालाप में उलझने में कतई रुचि नहीं। इसलिए कृपया मुझ से व्यक्तिगत वार्तालाप करते समय इन बातों का ध्यान रखें। 


अपनी ओर से मैं बहुत ही आवश्यक होने पर वार्तालाप प्रारम्भ करती हूँ। कोई व्यक्तिगत सन्देश देना हो तो वह सन्देश इनबॉक्स में छोड़ देती हूँ, वार्तालाप करना उसका उद्देश्य कदापि नहीं होता, अपितु ईमेल की भाँति सन्देश भेजना ही उद्देश्य होता है। इसलिए जब आपको कोई आवश्यक सन्देश मुझे भेजना हो तो अपना सन्देश इनबॉक्स में छोड़ दें। मुझसे वार्तालाप की आशा न करें। न ही अपनी रचनाओं को पढ़ने के लिए बार-बार पुकार लगाएँ। अपने पटल (वॉल) पर या अपने ग्रुप्स पर इसकी सूचना दें। निजी रूप में  अपनी रचनाओं के लिए बुलाने वालों का सम्मान मेरी दृष्टि में बहुत ही कम हो जाता है, प्रत्येक की दृष्टि में कम होता है; इसलिए अपने मान-सम्मान की कीमत पर अपनी रचना के लिए पाठक न बटोरें। 


कुछ इसी विषय पर मैंने एक बार पहले भी अपने नोट्स में लिखा था, उसे भी एक बार यहाँ क्लिक कर पढ़ा जा सकता है -   आधी रात के असमय कष्ट

सामाजिकता के जिन सामान्य शिष्टाचारों का पालन समाज में आवश्यक व अपेक्षित होता है, वे सब शिष्टाचार व मर्यादाएँ सोशल नेटवर्किंग में भी आवश्यक होती हैं। यह ध्यान बना रहे तो सोशल नेटवर्किंग सबके लिए लाभकारी बनी रहेगी। 

2 टिप्‍पणियां:

  1. हम आवश्यकता से अधिक फेसबुक पर बैठते नहीं हैं, चैट के खतरे मंडराने लगते हैं।

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