शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

ब्रिटेन और भारत : लोकतन्त्र और गुलामी ?

ब्रिटेन और भारत : लोकतन्त्र और गुलामी ?  : (डॉ.) कविता वाचक्नवी




ब्रिटेन की राजकुमारी केट मिडल्टन के टॉपलेस चित्रों को लेकर भारत के अखबार जिस तरह सनसनीखेज बना कर प्रस्तुत कर रहे हैं, उनके लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि राजकुमारी के ये चित्र ब्रिटिश समाचारपत्रों को छापने का प्रस्ताव भी दिया गया था किन्तु किसी भी ब्रिटिश समाचार पत्र ने ये चित्र छापने का साहस नहीं किया और लेने से  मना कर दिया।  क्योंकि उनका ऐसा करना "संपादकीय आचार संहिता का उल्लंघन"  होता। और दूसरी बात यह कि ब्रिटिश पाठक समाचार पत्रों के इस व्यवहार को निंदनीय मानते और समाचारपत्रों को इसकी बुराई मिलती। 

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( The French version of the magazine Closer has published topless photos of the Duchess of Cambridge.

The pictures were apparently offered to British papers before being taken up by the French magazine, so why were they turned down?


"I don't think a British newspaper or magazine would dare to publish," said Professor of Journalism at City University Roy Greenslade. "It would be in breach of the editors' code of practice... and you would need to have a public interest reason for overcoming that.") 


भारत में मीडिया जिस तरह सनसनीखेज के लिए जोड़तोड़ करता है और नैतिकता तक को ताक पर रखकर हर मूल्य पर ऐसी खुराफाती चीजें छापना व दिखाना चाहता है, जिसके लिए आचार-संहिता जैसी कोई अवधारणा ही नहीं है, उसके लिए तो ब्रिटेन और यहाँ का मीडिया बेहद कमजोर, गुलाम व भीरू होगा ? और यहाँ की जनता व पाठक भी गुलाम ?


नैतिकता की बात भारत में मीडिया से व जनता से जिस तरह लगभग पूरी तरह नदारद हो गई है, लोकतंत्र के नाम पर स्वयंभू स्वेच्छाचार व निरंकुशता जिस तरह लोगों की मानसिकता पर हावी हो गई है, राष्ट्रहित की बात जिस तरह से लोगों की मानसिकता में स्वार्थ की बात बन कर पैठ गई है और उसे धिक्कारते हुए मानवमात्र और लोकतन्त्र की स्वार्थी राष्ट्रविरोधी दुहाई दी जाती हैं, उस छद्म कूटनीति व छल के सामने ब्रिटेन कितना पिछड़ा हुआ प्रतीत होता होगा न !!


यहाँ बात केवल किसी नव विवाहित दंपति के व्यक्तिगत जीवन के उनके आवास से चोरी से लिए गए चित्रों की ही नहीं वरना उस के बहाने संपादकीय आचार संहिता की है। मुद्दा यह है कि राष्ट्रीय सुरक्षा में कुछ चीजों को नहीं सार्वजनिक किया जाना चाहिए या राष्ट्रीय हित में जिन चीजों को बचा कर रखा जाना चाहिए और नैतिकता का आदर किया जाना चाहिए, इस बात की समझ जिस दिन अधिकांश भारतीय मीडिया को आ जाएगी वह दिन बहुत शुभ होगा। जिन्हें मुंबई में ताज होटल आदि पर हमले के समय जैसे अनेक अवसरों पर भी क्या दिखाना क्या बचाना की सूझ नहीं है, जो गुवाहाटी में बच्ची पर हमला प्रायोजित कर दिखाते हैं, जो चीजों को कल्पनातीत ढंग से तोड़ मरोड़ कर और अपने बिकाऊ चरित्र के चलते झूठे ही गढ़ कर दिखाते हैं, उन से किसी नैतिकता की अपेक्षा रखने की बात राष्ट्र के लिए कितनी शुभ होगी इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है। अपना राष्ट्रहित देखना हर किसी को चाहिए, इसे भले कोई स्वार्थ समझता रहे या कमजोरी।


यह लेख तुलना करने के लिए नहीं अपितु एक उदाहरण के बहाने से देश की स्थिति व मीडिया की भूमिका के बारे में चेताने के लिए है। विचारें कि भारत देश का क्या हश्र होने वाला है ! विचारें कि मीडिया आपसे क्या खेल खेल रहा है ! विचारें कि अपने राष्ट्र व राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखना क्यों लोकतन्त्र का विरोध करार दिया जाता है !!! विचारें कि हम क्यों नहीं विचारते ! विचारें कि विचार किस की गुलामी में कैद होते जा रहे हैं !!! कौन हैं वे जो देश के लोकतन्त्र की स्थापना व विचार की स्वतन्त्रता और आत्मनिर्णय का नाम लेकर देश को बर्बाद करने पर तुले हैं !!!

11 टिप्‍पणियां:

  1. राजकुमारी केट सुंदर हैं और उनकी ऐसी तस्वीरें किसने और कब और कहाँ ली होंगीं ? जब राजकुमार ' हेरी ' नशे में धुत्त होकर बदतमीजी करते हों तब उनकी भी भी शर्मनाक तस्वीरें ली गईं हों तब कसूर हेरी बेटे का ही है -- चालाक दुनियादार
    और पत्रकार भी कुछ इसे ही हैं वे अपने पापी पेट के लिए चित्र खींच ही लेंगें ....
    कहाँ गईं पद्मिनी जो अग्नि स्नान के लिए हँसते हँसते आग में कूद गईं थीं ?
    अब तो शील, चरित्र , नैतिकता , इंसानियत, दया , करुना , ममता , परोपकार जैसे सद्गुण जो ईश्वर की परछाई हैं
    वे तो विरल व्यक्तियों में ही दीखलायी देते हैं ...
    और ऐसे तेब्लोइड पत्रकारिता में ना ही ' लोकतंत्र या गुलामी ' से दूर दूर तक कोयी सम्बन्ध दीखलायी देता है
    भारतीय पत्रकारिता पश्चिम प्रथाओं का व रीत रिवाजों का अब अंधा अनुकरण कर रही है ये सत्य अब सर्व विदित है
    आज कल समाज में ' सब से बड़ा रुपैया ' ही सर्व प्रमुख सर्वोपरी बना हुआ दीखलायी दे रहा है
    - लावण्या

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  2. Lavanya Shah British Tabloids like ' SUN " & others also called RAGS - do print objectionable stories / pictures for sheer sensationalism Se this link from a British Tabloid : http://seattletimes.com/html/nationworld/2018987273_britmedia25.html

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  3. Lavanya Shah जी,
    टिप्पणी के लिए धन्यवाद।
    निस्संदेह नग्नता की सामग्री आदि यहाँ ब्रिटिश समाचारपत्रों में प्रकाशित की जाती हैं।
    किन्तु मामला नग्न सामग्री के प्रकाशन या सनसनीखेज / नग्नता की उतनी नहीं, अपितु राष्ट्रीय हित व संपादकीय आचार संहिता व उसके अनुपालन की है।

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  4. मर्यादा को समझना और पालन करना अन्दर से ही आता है।

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  5. बहन श्री कविता जी राष्ट्रीय हित व सम्पादकीय आचार संहिता में धन के लालच ने सेंध मारी है
    यह सर्व विदित है
    अब कहाँ मिलेंगें नीतिवान, चारित्र्य शील सम्पादक गण जो सामाजिक, नैतिक
    या मानवीय उत्तरदायित्व समझें और उसी के अनुसार बर्ताव
    निजी जीवन में व बाह्य जीवन में रखें ?
    यदाकदा अच्छे लोग मिल जाते हैं
    तब ' मानव ' नामक प्राणी पर आस्था रखने का मन बनाया है वह सार्थक लगता है ..
    हम और आप बस ऐसी अमर्यादित ,
    असामाजिक व भौंडी मनोवृत्ति का बहिष्कार ही कर सकते हैं ..
    सर्वोदय ..की कामना
    सर्वनाश से कहीं अधिक सौन्दर्यमयी है है ना ?
    - लावण्या

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  6. जी, लावण्या दी'! वस्तुतः मीडिया व्यापार बन चुका है। कम से कम उस व्यापार को भी सही ढंग कर लें व कम से कम राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखें, उसकी लाज रख लें, ऐसी कामना जगती है। मनुष्य हैं, दानवता न बनें। वरना हजारों लाखों उदाहरण मीडिया की दानवता व अनैतिकता के प्रतिदिन देखने में आते हैं। गुवाहाटी में बच्ची पर लड़कों द्वारा सार्वजनिक हमला पूरा मीडिया द्वारा प्रायोजित था,यही सामने आया है। होड़ मची हुई है सनसनीखेज सामग्री सबसे पहले परोसने व दर्शकों को नशे की दवा पिलाने जैसे कार्यक्रमों को दिखा कर बाँधे रखने की। देश जाए उनके लिए भाड़ में। कष्टदायक है यह सब। लोकतन्त्र का चतुर्थ स्तम्भ कहा जाने वाला मीडिया/पत्रकारिता बेपेंदी का लोटा हो चुका है।

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  7. अभी पढ़ा....आपने केट मिडलटन के प्रसंग को बिलकुल सही सन्दर्भ में उठाया है DrKavita Vachaknavee जी.
    वास्तव में आज पश्चिमी मीडिया ज्यादा जिम्मेदार है. हालांकि पत्रकारिता में हमारे यहां भी जितनी बुराई है वो ज्यादातार पश्चिम की ही देन है जैसे पेपराजी, येलो जर्नलिज्म आदि शब्द ही वहीं से आये हैं...फिर भी यह कहा जा सकता है कि हमने उनकी बुराई तो ले ली लेकिन उनके सरोकार और अच्छी बातें सीखना भूल गए.

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  8. पश्चिम में पत्रकारिता विशुद्ध व साफ सुथरी है, यह तो नहीं कहा जा सकता; किन्तु कुछ मामलों, विशेषतः अपने देश के मामले में इनकी संलग्नता प्रशंसनीय है।
    भारत का लगभग पूरा मीडिया राष्ट्रीय हितों व आचार संहिता के मामले में बहुधा संदिग्ध व अनुत्तरदायी है।

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  9. बहुत बढ़िया कविता जी, और जोर से डाँटना चाहिये था। लेकिन हमारे मीडिया के मालिक कौन है ? सुना है कि 75 प्रतिशत मीडिया विदेशियों के हाथों में है फिर तो वे भारतीयों की ब्रेन वाशिंग में लगे हैं। सबकुछ भारतीय बुरा (जितना बुरा दिखा सको) और सबकुछ विदेशी अच्छा। और हमारे बेचारे गरीब पत्रकार उनकी नौकरी में लगे पड़े हैं... देश तो गया पानी में...

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  10. मिस्टर नवगीत की पाठशाला !
    यह झूठा आपका दंभ किसी काम का नहीं है, जो देश बर्बाद होते देख कर (वस्तुतः बर्बाद हो चुका देखकर) भी मैं मैं करता रहता है। अतीत के गौरवगान के बूते कब तक अपने को व दूसरों को धोखा देते रहेंगे ? आपके अच्छी प्रेमी होने का तो हाल पता ही चल रहा है कि दूसरों की किसी अच्छी बात से आपको अपच हो जाती है।

    रही बात, मीडिया के स्वामित्व की, तो स्वामित्व भले विदेशियों का है, किन्तु बिका कौन है उनके पैसे के लिए ? सारा कामकाज बिके हुए भारतीय ही समहालते हैं, इतनी जानकारी कर लेते तो अपने पर उपकार करते। गरीब पत्रकार का नाम लेकर भावुकता का पुट देने की नाकाम कोशिश मत करें। दुनिया सच जानती है और आप भी। यदि आप नहीं जानते तो भी भगवान आपका भला करे और मोहल्ले में अपने गलत बच्चे का पक्ष लेकर भी तलवारें खींच लेने वाले (वस्तुतः संतान के शत्रु) माता पिता वाली भूमिका से आपको उबारे।

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