सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

"पुरुष-सूक्त" : मेरी पाँच कविताएँ

पुरुष - सूक्त
© - डॉ. कविता वाचक्नवी
[ अपनी काव्य-पुस्तक "मैं चल तो दूँ" (2005) से उद्धृत ]





१.





श्यामवर्णी बादलों के
वर्तुलों में
झिलमिलाती धूप
फैली थी जहाँ
गाल पर
उन बादलों के स्पर्श
महके जा रहे।






२.





चेतना ने
ठहर
तलुवों से सुघर पद
छू लिए,
आँख में
विश्रांति का
आलोक - आकर
सो गया।






३.






साँझ नंगे पाँव
उतरी थी लजाती
सूर्य का आलोक अरुणिम
बस
तनिक-सा
छू गया।







४.





राग का रवि
शिखर पर जब
चमकता है
मूर्ति, छाया
मिल परस्पर
देर उतनी
एक लगते।






५.






थाम नौका ने
कलाई
लीं पकड़
हाथ से
पतवार दो
कैसे छुटें
और लहरों पर लहर में
खो गए
दोनों सहारे
ताकते ही रह गए
तटबंध सारे।


*****************************************

10 टिप्‍पणियां:

  1. चंद शब्दों में समुद्र सी गहराई, आसमान सी उंचाई, वाह गागर में सागर

    जवाब देंहटाएं
  2. नव बिँब-प्रतीकोँ सँग इस लघु वाटिका मेँ सँपूर्ण घाटी की सुरभि :-)
    उकेरी हुई रेखाओँ ने शब्दोँ को गहरा भाव दिया है । :-)

    जवाब देंहटाएं
  3. चित्रों ने शब्द-बिम्बों कों सहज सुबोध बना दिया है.
    अच्छे चयन के लिए अभिनंदन.

    जवाब देंहटाएं
  4. सांझ नंगे पाँव
    उतरी थी लजाती
    सूर्य का आलोक अरुणिम
    बस
    तनिक-सा
    छू गया ...बस छू ही गया..वाह कविता दी ...सभी सूक्त छू गए..

    जवाब देंहटाएं
  5. गहन भाव संजोये उत्कृष्ट प्रस्तुति..

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सूक्ष्म और सुन्दर अभिव्यक्ति ,संयमित शब्दों की बुनावट .शुभ कामनाओं के साथ बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  7. पाँचों कवितायें बहुत अच्छी लगीं. शब्द चयन व भावाव्यक्ति दोनों ही खूबसूरत.

    जवाब देंहटाएं

आपकी प्रतिक्रियाएँ मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं।
अग्रिम आभार जैसे शब्द कहकर भी आपकी सदाशयता का मूल्यांकन नहीं कर सकती।
आपकी इन प्रतिक्रियाओं की सार्थकता बनी रहे कृपया इसका ध्यान रखें।